"साहिब सिंह वर्मा": अवतरणों में अंतर

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राजनीतिक कैरियर /कार दुर्घटना में मृत्यु
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==राजनीतिक कैरियर==
सन 1977 में वे पहली बार दिल्ली नगर निगम के पार्षद चुने गये। पार्षद के पद की शपथ उन्होंने [[भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम]] सेनानी गुरु राधा किशन के नाम पर ली थी। प्रारम्भ में उन्होंने [[जनता पार्टी]] के टिकट पर चुनाव जीता था लेकिन जनता पार्टी के टूटने के बाद वे भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी की हैसियत से चुनाव जीते। [[मदन लाल खुराना]] की सरकार में उन्हें सन 1993 में शिक्षा और विकास मन्त्रालय का महत्वपूर्ण मन्त्रीपद सौंपा गया जिस पर रहते हुए उन्होंने कई अच्छे कार्य किये। इसका यह परिणाम हुआ कि1996 में जब भ्रष्टाचार के आरोप में मदनलाल खुराना ने त्याग पत्र दिया तो दिल्ली प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान साहिब सिंह को ही दी गयी।<ref>[http://www.hinduonnet.com/2004/02/12/stories/2004021207250400.htm The Hindu]
</ref> न्यायालय द्वारा खुराना को भ्रष्टाचार के आरोप से मुक्त कर दिये जाने के बावजूद साहिब सिंह लगभग ढाई वर्ष तक मुख्यमन्त्री बने रहे। इससे खुराना के मन में उनके प्रति प्रतिशोध की भावना जागृत हुई।<ref name=zee>
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| title = Sahib Singh Verma dies in road accident
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| date = June 30, 2007
| accessdate = 2007-07-04
}}</ref> आगे चलकर जब दिल्ली में प्याज के दामों में बेतहाशा बृद्धि हुई और उस पर नियन्त्रण नहीं हुआ तो साहिब सिंह को मुख्यमन्त्री पद से हटाकर [[सुषमा स्वराज]] को उस कुर्सी पर बिठाया। साहिब सिंह ने सरकारी आवास तत्काल खाली कर दिया और डी०टी०सी० की बस में बैठकर पूरे परिवार सहित अपने गाँव मुण्डका चले गये।
 
उनके इस कार्य से जनता में उनकी लोकप्रियता का ग्राफ काफी तेजी से बढा और 1999 का लोकसभा चुनाव उन्होंने बाहरी दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से दो लाख से अधिक मतों के अन्तर से जीता।<ref>{{cite news|url=http://www.tribuneindia.com/1999/99oct10/edit.htm|title=Editorial|publisher=Tribune India|date=October 10, 1999|first=Harihar|last=Swarup
|title=Long-standing rivals now compete for Cabinet berths}}</ref>
2002 में [[अटल बिहारी वाजपेयी]] ने एनडीए गवर्नमेण्ट में उन्हें श्रम और नियोजन मन्त्रालय का दायित्व सौंपा। उन्होंने ब्यूरोक्रेसी के पेंच कसते हुए कर्मचारी भविष्य निधि पर ब्याज की दरों को कम करने से रोका। उनके इस कार्य को मीडिया ने ''ए बुल इन चाइना शॉप'' कहकर सराहना की।<ref name="zee"/> इतना सब होने के वाबजूद निर्धारित समय से 5 माह पूर्व कराये गये 2004 के लोकसभा चुनाव में साहिब सिंह भी हार गये।
 
दिल्ली के शिक्षक समुदाय में साहिब सिंह काफी लोकप्रिय थे। हरीभूमि के नाम से प्रकाशित होने वाला एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक समाचार पत्र उन्हीं के स्वामित्व में निकलता था।
 
==कार दुर्घटना में मृत्यु==
असाधारण रूप से ऊपर जाते हुए उनकी लोकप्रियता के ग्राफ को अचानक उस दिन ब्रेक लग गया जब 30 जून 2007 को [[सीकर जिला]] स्थित नीम का थाना में एक विद्यालय की आधारशिला रखकर वे टाटा सफारी कार से दिल्ली वापस लौट रहे थे। उनकी कार में एक ट्रक ने टक्कर मार दी जिससे उनकी कार बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गयी। उन्हें उपचार हेतु [[जयपुर]] के एक प्राइवेट अस्पताल में ले जाया गया जहाँ काफी प्रयास के बावजूद भी उन्हें बचाया न जा सका। जो व्यक्ति जनता को प्यारा था वह भगवान को भी प्यारा हो गया।<ref>
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==सन्दर्भ==
<references/>