"दशलक्षण पर्व": अवतरणों में अंतर

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जैन धर्म के दस लक्षण होते है । कहते है जो इन दस लक्षणों का अच्छी तरह से पालन कर ले उसे इस संसार से मुक्ति मिल सकती है । पर सांसारिक जीवन का निर्वाह करने में हर समय इन नियमों का पालन करना मुश्किल हो जाता है और बहुत शुभ और अशुभ कर्मों का बन्ध हो जाता है । इन कर्मो का प्रक्षालन करने के लिए श्रावक उत्तम क्षमा आदि धर्मों का पालन करते है । जैन धर्म के दस लक्षण इस प्रकार है:- १)उत्तम क्षमा ,२)उत्तम मार्दव , ३) उत्तम आर्जव , ४)उत्तम शौच , ५ )उत्तम सत्य ,६)उत्तम संयम ,७) उत्तम तप,८) उत्तम त्याग , ९) उत्तम अकिंचन्य, १०) उत्तम ब्रहमचर्य ।
 
इन दस लक्षणों का पालन करने हेतु जैन धर्म में साल में तीन बार दसलक्षण पर्व मनाया जाता है । १) चैत्र शुक्ल ५ से १४ तक २)भाद्र शुक्ल ५ से १४ तक और ३) माघ शुक्ल ५ से १४ तक ।
भाद्र महीने में आने वाले दशलक्षण पर्व को लोगो द्वारा ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है । इन दस दिनों में श्रावक अपनी शक्ति अनुसार व्रत उपवास आदि करते है । ज्यादा से ज्यादा समय भगवन की पूजा अर्चना में व्यतीत किया जाता है ।