"परब्रह्म": अवतरणों में अंतर

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'''परब्रह्म''', जो ब्रह्म से भी परे हें !
वास्तव में केवल इतनी परिभाषा ही सम्भव हो सकती हे कियोंकि समस्त जगत ब्रह्म के अंतर्गत माना गया हे मन विचार बुद्धि आदि ! उत्तम से अतिउत्तम विचार, भाव,वेद, शास्त्र मंत्र, तन्त्र,आधुनिक विजान योतिष आदि किसी भी माध्यम से उसकी परिभाषा नही हो सकती! वह गुणातीत, भावातीत, माया, प्रक्रति और ब्रह्म से परे और परम है। वह एक ही है दो या अनेक नहीं है। मनीषियों ने कहा है कि ब्रह्म से भी परे एक सत्ता है जिसे वाणी के द्वारा व्यक्त नही किया जा सकता। वेदों में उसे नेति -नेति (ऐसा भी नहीं -ऐसा भी नही) कहा है। वह सनातन है, सर्वव्यापक है, सत्य है, परम है। वह समस्त जीव निर्जीव समस्त अस्तित्व का एकमात्र परम कारण सर्वसमर्थ सर्वज्ञानी है। वह वाणी और बुद्धि का विषय नहीं है उपनिषदों ने कहा है कि समस्त जगत ब्रह्म पे टिका हे और ब्रह्म परब्रह्म पे टिका है। the ultimate
 
[[श्रेणी:भारतीय दर्शन]]