"ओखाहरन्": अवतरणों में अंतर

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= ओखहरन - भगवान [[शिव्शिव]] ओर पार्वती की पुत्री (ओखा) की कहानी =
 
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ब्रह्मा जी सृष्टी करता उनके बेटे मारीच । मारीच के बेटे कश्यप उनके दो बेटे हरीन्यकश्यप और हीरानाक्ष । हरीन्यकश्यप का बेटा वीषणूं भक्त प्रह्लाद उसका बेटा वीरोचन और उसका बेटा बली । बली का बेटा [[बानासुर]] और उसकी बेटी ओखा
 
= '''[[बानासुर]] का तप और शीवशिव का दीयादिया हुआ वरदान''' =
बानासुर बड़ा शीव भक्त था.
एक दीन उनके गुरु शुक्र जी से वो मीला तब उसने तप के महिमा के बरे मे पूछा .
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= '''बानासुर पुरीपूरी प्रिथ्वीपृथ्वी का अधीपतीअधिपति बना'''=
वरदान पा कर बानासुर शोणितपुर मे वापिस गया । तब उसे देख कर सब पशु पंखी डरने लगे और जैसे कोई जाड चला आ रहा हो ऐसा लग रहा था । जब वो अपने नगर के नजदीक आया तो सिर्फ उसके प्रधान ने ही उसको पहचाना ।
उसके बाद उसकी शादी हुए और उसके बाद उसने एक के बाद एक सभी देश को जीतना शुरू कर दीया , उसने पाताल लोक को भी नही छोड़ा अब उसको स्वर्ग जीतने की इच्छा हुयी और वो स्वर्ग जीतने गया और उसके डर से सभी देवता वहा से चले गए । उसने सूर्य तक को भी जीत लीया । जब वो सूर्य को जीत कर वापिस जा रहा था तब उसे नारद जी मेले और वो [[नारद्जी]] को प्रणाम करके बोला ओ नारदजी अब एक भी योदधां नही है अब मे के करू ?
<br />'''नारद जी बोल'''े : तो सुन बानासुर राय जिसने तुझको हजारो हाथ दीये उसी शीव से जाके संग्राम कर .
 
='''बानासुर शीव्जीशिवजी के साथ युद्ध कर्नेकरने के लीयेलिये गया'''=
 
कैलाश पर्वत पर जाके उसने उसको हीलाना शुरू कीया यह देख कर पार्वती जी डर गयी और शिवजी के पास जा कर बोली अरे अरे शीवराय जिसको आपने शोनीतपुर का राज्य दीया हजारो हाथ दीए अब वो यहा क्या मांगने वापिस आया है?
<br />'''बनासुर बोला''' : आपने मुजे हजारो हाथ दीए यह अत्या है पर अब लड़ने के लिए मुजे कोई समर्थ योदधां भी दीजीये और मेरे साथ युद्ध कीजीये।
<br />'''शिवजी बोलबोले''' : यह तेरी जीद छोड़ दे वरना बहोतबहुत पछ्तायेंगा ।
 
='''शिवजी ने बानासुर को श्राप दिया'''=
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यह वरदान ले कर बानासुर वापिस अपने शोणितपुर मे आ गया |
 
='''भगवान [[श्री गनेशगणेश]] और ओखा की उत्प्तीउत्पत्ति'''=
 
एक दीन महादेव जी को तप करने जाने का मन हुआ । यह सुनकर पार्वती जी बहोत रोने लगी और बोली अरे शिवजी मेरा यह जन्म कैसे कटेगा और मुजे एक भी संतान भी नही है । तब महादेव ने वरदान देते हुए कहा आप एक पुत्र और एक पुत्री उपजाए । वरदान देकर महादेव जी वन मे तप करने के लीये चले गए । उमीय जी नाहने के लीये बैठे और उन्होंने सोचा की शीव के घर बड़े देखकर कोई भी आता जाता रहेता है , तो क्यों न मे बालक को दरवाजे पर रखु तो वो बैठे बैठे देखे । उन्होंने अपने दकिशनं अंग से मेल ले कर अघड़ रूप बनाया । हाथ पाव,और टूँका कद बनाया ,चार भुजा और बड़ा पेट ,जो देख ने मे लगे विशाल,उसकी शोभा का तो क्या कहेना? उनके कंठ मे घूघर माला.उनके पहले कर मे जल्कमंड़ल,दूसरे कर मे मोदक आहार ,तीसरे कर मे फर्सी शोभे और चोथे कर मे जपमाला । गणेश को उपजा कर पार्वती जी बोले उसके पास अगर कोई हो तो वो बैठे बैठे बाते करे । यह सोच कर उन्होंने वाम अंग से मेल लेके एक लड़की बनाई उसकी शोभा का तो वरणनं ही नही कर सकते । अब दोनों भाई बहन खेलने लगे ।
 
='''शिवजी ने गणपतीगणपति का शीरोछेदनशीरोच्छेदन कीयाकिया'''=
देवी जब नाहने के लीये बैठे तब नारद जी वहा आए . उन्होंने दो बालक वहा बैठे हुए देखे तो वोह वहा से चले गए और जहा शिवजी थे वहा पर गए , मधुवन मे आकर
<br />'''नारद जी बोले :''' ओरे शिवजी ओरे शिवजी नाफ्फट भुन्ड़ी आपकी टेव । वन्वाग्ड़े मे फीरते हो शीर पर डाली धूल आंक,धतूरो वीजया खाओ । आप रे वन मे और आप के घर मे चला घर्सुत्र । आप के बीना उमिया जी ने
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तब् शीव को होश आया ,मैंने तो दीया था वरदान । ये तो वो नारद का काम हो गणपती ,उसने जूठ बोला.उसने सब जूठी बात कही और मे तप से उठ के आया । मैंने मारा आपको ये कैसा निकला आज दींन ?
 
='''शिवजी ने गणेश जी को दीयावरदान हुआ वर्दानदिया'''=