"अधिक मास": अवतरणों में अंतर

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वास्तव में यह स्थिति स्वयं ही उत्त्पन्न हो जाती है , क्योंकि जिस चंद्रमास में सूर्य-संक्रांति नहीं पड़ती , उसी को "अधिक मास" की संज्ञा दे दी जाती है तथा जिस चंद्रमास में दो सूर्य संक्रांति का समावेश हो जाय , वह "क्षयमास" कहलाता है । क्षयमास केवल [[कार्तिक]] , [[मार्गस्शीर्ष|मार्ग]] व [[पौस]] मासों में होता है । जिस वर्ष क्षय-मास पड़ता है , उसी वर्ष अधि-मास भी अवश्य पड़ता है परन्तु यह स्थिति १९ वर्षों या १४१ वर्षों के पश्चात् आती है । जैसे विक्रमी संवत २०२० एवं २०३९ में क्षयमासों का आगमन हुआ तथा भविष्य में संवत २०५८ , २१५० में पड़ने की संभावना है ।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/2008/calender.htm भारतीय कैलेंडर की विकास यात्रा] - गुणाकर मुले
* [http://www.bhartiyapaksha.com/?p=3422 भारतीय कालगणना में नूतनसंवत्सरारम्भ]
* [http://hindi.webdunia.com/religion/occasion/gudipadva/0903/25/1090325113_1.htm नव-संवत्सर की शुरुआत] (वेबदुनिया)
* [http://webprakash.com/blog/?p=1 हिन्दु कालगणना - सूक्ष्मतम से विराट तक]
 
 
 
[[श्रेणी:मापन|मास, अधिक]]