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अमरकोश में साधारण संस्कृत शब्दों के साथ-साथ असाधारण नामों की भरमार है। आरंभ ही देखिए- देवताओं के नामों में '''लेखा''' शब्द का प्रयोग अमरसिंह ने कहाँ देखा, पता नहीं। ऐसे भारी भरकम और नाममात्र के लिए प्रयोग में आए शब्द इस कोश में संगृहीत हैं, जैसे--देवद्रयंग या विश्द्रयंग (3,34)। कठिन, दुलर्भ और विचित्र शब्द ढूंढ़-ढूंढ़कर रखना कोशकारों का एक कर्तव्य माना जाता था। नमस्या ([[नमाज]] या प्रार्थना) [[ऋग्वेद]] का शब्द है (2,7,34)। द्विवचन में नासत्या, ऐसा ही शब्द है। मध्यकाल के इन कोशों में, उस समय प्राकृत शब्द भी संस्कृत समझकर रख दिए गए हैं। मध्यकाल के इन कोशों में, उस समय प्राकृत शब्दों के अत्यधिक प्रयोग के कारण, कई प्राकृत शब्द संस्कृत माने गए हैं; जैसे-छुरिक, ढक्का, गर्गरी ( प्राकृत गग्गरी), डुलि, आदि। बौद्ध-विकृत-संस्कृत का प्रभाव भी स्पष्ट है, जैसे-बुद्ध का एक नामपर्याय अर्कबंधु। बौद्ध-विकृत-संस्कृत में बताया गया है कि अर्कबंधु नाम भी कोश में दे दिया। बुद्ध के 'सुगत' आदि अन्य नामपर्याय ऐसे ही हैं। इस कोश में प्राय: दस हजार नाम हैं, जहाँ मेदिनी में केवल साढ़े चार हजार और हलायुध में आठ हजार हैं। इसी कारण पडितों ने इसका आदर किया और इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई।
 
== संरचना ==
अमरकोष तीन खण्डों से मिलकर बना है-
# स्वर्गादिखण्ड
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# सामान्यादिखण्ड
 
== टीकाएँ ==
अमरकोष पर आज तक ४० से भी अधिक टीकाओं का प्रणयन किया जा चुका है । उनमें से कुछ प्रमुख टीकाएँ निम्नलिखित हैं –
 
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इसी सिद्धान्त का पालन करते हुए भानुजि दीक्षित ने अमरकोष में परिगणित शब्दों का निर्वचन किया है । वे भी सभी शब्दों को धातुज मानते हुए उनका निर्वचन करते हैं ।
 
== वाह्य सूत्र ==
* [http://sanskrit.jnu.ac.in/amara/index.jsp ऑनलाइन बहुभाषी '''अमरकोश''']
* [http://sanskritdocuments.org/all_sa/amarfin1_sa.html अमरकोष, खण्ड-१]