"अरस्तु का विरेचन सिद्धांत": अवतरणों में अंतर

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[[ग्रीक]] के महान राजनीतिक और दार्शनिक चिंतक [[अरस्तु]] ने इस सिद्धांत के द्वारा [[कला]] और [[काव्य]] की महत्ता को पुनर्प्रतिष्ठित करने का सफल प्रयासकिया। अरस्तु के गुरु [[प्लेटो]] ने कवियों और कलाकारों को अपने आदर्श राज्य के बाहर रखने की शिफारिश की थी। उनका मानना था कि काव्य हमारे वासनाओं को पोषित करने और भड़काने में सहायक है इसलिए निंदनिय और त्याज्य है। धार्मिक और उच्च कोटि का नैतिक साहित्य इसका अपवाद है किंतु अधिकांश साहित्य इस आदर्श श्रेणी में नहीं आता है।