"अर्धनारीश्वर": अवतरणों में अंतर
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सृष्टि के निर्माण के हेतु [[शिव]] ने अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक किया| शिव स्वयं पुरूष लिंग के द्योतक हैं तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग की द्योतक| पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्धनरनारीश्वर हैं| जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनायं अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जायंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। गहन विचार के उपरांत भी वो किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच पाय। तब अपने समस्या के सामाधान के हेतु वो शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने शिव को प्रसन्न करने हेतु कठोर तप किया। ब्रह्मा की कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्मा के समस्या के सामाधान हेतु शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रगट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में शिवा। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजन्नशिल प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदा की। साथ ही साथ उन्होंने पुरूष एवं स्त्री के सामान महत्व का भी उपदेश दिया। इसके बाद अर्धनारीश्वर भगवान अंतर्धयान हो गए।
== शिव और शक्ति का संबंध ==
शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं। शिव नर के द्योतक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दुसरे के पुरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं।
[[चित्र:Ardhanari.png|150px|right|thumb|११वीं शताब्दी की [[चोल]] मूर्ति]]
* शिव कारण हैं; शक्ति कारक।
* शिव संकल्प करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी।
* शक्ति जागृत अवस्था हैं; शिव सुशुप्तावस्था।
* शक्ति मस्तिष्क हैं; शिव हृदय।
* शिव ब्रह्मा हैं; शक्ति सरस्वती।
* शिव विष्णु हैं; शक्त्ति लक्ष्मी।
* शिव महादेव हैं; शक्ति पार्वती।
* शिव रुद्र हैं; शक्ति महाकाली।
* शिव सागर के जल सामन हैं। शक्ति सागर की लहर हैं।
[[चित्र:Ardhanari.jpg|150px|right|thumb|११वीं शताब्दी की [[चोल]] मूर्ति]]
शिव सागर के जल के सामान हैं तथा शक्ति लहरे के सामान हैं। लहर है जल का वेग। जल के बिना लहर का क्या अस्तित्व है? और वेग बिना सागर अथवा उसके जल का? यही है शिव एवं उनकी शक्ति का संबंध। आएं तथा प्रार्थना करें शिव-शक्ति के इस अर्धनारीश्वर स्वरूप का इस अर्धनारीश्वर स्तोत्र द्वारा ।
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