"अश्विनी": अवतरणों में अंतर

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नक्षत्रों में सबसे पहला नक्षत्र(जिसमें तीन तारे होते हैं)एक अप्सरा जो बाद में अश्विनी कुमारों की माता मानी जोने लगी सूर्य पत्नी जो कि घोड़ी के रूप में छिपी हुई थी। सूर्य की पत्नी अश्विनी के यमराज पुत्र। जीवन को व्यवस्थित करने के लिए यदि हम अंतरिक्ष का सहारा लेते हैं, ग्रह-नक्षत्रों पर आश्रित होतें हैं तो इसी परा ज्ञान को ज्योतिष विद्या कहते हैं। मानव शरीर दस अवस्थाओं में विभक्त है भ्रूण शिशु किशोर तरूण गृहस्थ प्रवासी भृतक प्रौढ जरठ एवं मुमूर्षु। इन विभिन्न अवस्थाओं से होता हुआ यही शरीर पूर्णता को प्राप्त होता है। जन्मकाल में ग्रह-गोचर जिस स्थिति में होते हैं वैसा ही फल हमें सारे जीवन भोगना पड़ता है। नवग्रह- सूर्य चन्द्र मंगल बुध बृहस्पति शुक्र शनि राहु केतु हमारे नियामक है इन्हें मार्ग निर्धारक, प्रेरक, नियोजक, द्रष्टा, विधाता, स्वामी इत्यादि शब्दों में पिरोया जा सकता है। ये ग्रह बारह राशियों में विचरण करते रहते हैं मेष वृष मिथुन कर्क सिंह कन्या तुला वृश्चिक धनु मकर कुम्भ और मीन में तब इनके अपने पृथक् पृथक् ,स्वभाव एवं प्रभाव के वशीभूत होकर ग्रह अलग-अलग फल देते हैं।
== परिचय ==
नक्षत्रों की चर्चा करें तो इनकी व्यापकता अपार है इनके प्रत्येक चरण का पृथक आख्यात है। वैदिक साहित्य में नक्षत्रों का बड़ा सूक्ष्म विश्लेषण है।
प्रयोगात्मक दृष्टि से वैज्ञानिकों की अनुसंधानिक उत्सुकता की शान्ति के लिए इसमें पर्याप्त भण्डार है, वैदिक ज्योतिष के मूलाधार में नक्षत्र ही हैं वेद में नक्षत्रों को उडू, रिक्ष, नभ, रोचना, तथा स्त्री पर्याय भी कहा गया है। ऋग्वेद के अनुसार 01.50.2 तथा 6.67.6 में जिस लोक का कभी क्षय नहीं होता उसे नक्षत्र कहा गया है, यजुर्वेद में नक्षत्रों को चन्द्रमा की अप्सरा कहा गया है। तैत्रीय ब्राह्मण का कथन है कि सब नक्षत्र देव ग्रह हैं, जो यह जानता है वह गृही और सुखी होता है ये रोचन है, शोभन है, तथा आकाश को अलंकृत करते हैं। इनके मध्य में सूक्ष्म जल का समुद्र है, ये उसे तरते हैं, तारते हैं, इसीलिये तारा और तारक कहे जाते हैं।
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== देखिये ==
* [[नक्षत्र|नक्षत्र सूची]]
 
== स्रोत ==