छो Bot: अंगराग परिवर्तन
पंक्ति 1:
[[जैन धर्म|जैन]] दृष्टिकोण से भी आगमों का विचार कर लेना समीचीन होगा। जैन साहित्य के दो विभाग हैं, '''आगम''' और आगमेतर। केवल ज्ञानी, मनपर्यव ज्ञानी, अवधि ज्ञानी, चतुर्दशपूर्व के धारक तथा दशपूर्व के धारक मुनियों को आगम कहा जाता है। कहीं कहीं नवपूर्व के धारक को भी आगम माना गया है। उपचार से इनके वचनों को भी आगम कहा गया है। जब तक आगम बिहारी मुनि विद्यमान थे, तब तक इनका इतना महत्व नहीं था, क्योंकि तब तक मुनियों के आचार व्यवहार का निर्देशन आगम मुनियों द्वारा मिलता था। जब आगम मुनि नहीं रहे, तब उनके द्वारा रचित आगम ही साधना के आधार माने गए और उनमें निर्दिष्ट निर्देशन के अनुसार ही जैन मुनि अपनी साधना करते हैं।
 
== वर्गीकरण ==
आगम साहित्य भी दो भागों में विभक्त है: '''अंगप्रविष्ट और अंगबाह्म'''।
 
=== अंग ===
अंगों की संख्या 12 है। उन्हें गणिपिटक या द्वादशांगी भी कहा जाता है:
 
पंक्ति 17:
इनमें दृष्टिवाद का पूर्णत: विच्छेद हो चुका है। शेष ग्यारह अंगों का भी बहुत सा अंग विच्छित हो चुका है।
 
=== अंगबाह्म ===
इसके अतिरिक्त जितने आगम हैं वे सब अंगबाह्म हैं; क्योंकि अंगप्रविष्ट केवल गणधरकृत आगम ही माने जाते हैं। गणधरों के अतिरिक्त श्रुत केवली , पुर्वधर आदि ज्ञानी पुरुषों द्वारा रचित आगम अंगबाह्म माना जाता है।
 
पंक्ति 23:
इसका मूल कारण ये है की श्वेताम्बर परंपरा अनुसार आचार्य देवर्धिगनीक्षमा श्रमण ने 84 आगमों को लिपिबद्ध किया था किन्तु समय के साथ कई आगम स्वतः नष्ट हो गए , कुछ मुग़ल शासकों के राज में नष्ट कर दिए गए एवं कई आगम इतने प्रभावशाली थे की उनके स्मरण से देवतागण आ जाते थे , अतः ऐसी विद्या के दुरूपयोग से बचने हेतु गीतार्थ साधुओं ने उसे भंडारस्थ कर दिया.
 
== विषय के आधार पर आगमों का वर्गीकरण ==
[[महावीर स्वामी|भगवान्‌ महावीर]] से लेकर आर्यरक्षित तक आगमों का वर्गीकरण नहीं हुआ था। प्रवाचक आर्यरक्षित ने शिष्यों की सुविधा के लिए विषय के आधार पर आगमों को चार भागों में वर्गीकृत किया।
 
पंक्ति 46:
भारतीय जीवन के आध्यात्मिक, सामाजिक तथा तात्विक पक्ष का आकलन करने के लिए जैनागमों का अध्ययन आवश्यक ही नहीं, किंतु दृष्टि देनेवाला है।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://jainsquare.com/2011/11/01/jain-dharm-ka-sankshipt-parichay/ जैन धर्मग्रंथों का संक्षिप्त परिचय]
* [http://www.AtmaDharma.com/jainbooks.html www.AtmaDharma.com/jainbooks.html] Original Jain Scriptures (Shastras) with Translations into modern languages such as English, Hindi and Gujarati. Literature such as Kundkund Acharya's Samaysaar, Niyamsaar, Pravachansaar, Panchastikay, Ashtphaud and 100's of others all in downloadable PDF format.