"नरेन्द्र देव": अवतरणों में अंतर

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'''आचार्य नरेंद्रदेव''' (1889-1956) [[भारत]] के प्रमुख स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, पत्रकार, साहित्यकार एवं शिक्षाविद थे। विलक्षण प्रतिभा और व्यक्तित्व के स्वामी आचार्य नरेन्द्रदेव अध्यापक के रूप में उच्च कोटि के निष्ठावान अध्यापक और महान् शिक्षाविद् थे। काशी विद्यापीठ के आचार्य बनने के बाद से यह उपाधि उनके नाम का ही अंग बन गई। देश को स्वतंत्र कराने का जुनून उन्हें स्वतंत्रता आन्दोलन में खींच लाया और भारत की आर्थिक दशा व गरीबों की दुर्दशा ने उन्हें समाजवादी बना दिया।
 
== जीवन वृत्त ==
आचार्य नरेंद्रदेव का जन्म संवत् 1949 (सन् 1890 ई.) में कार्तिक शुक्ल अष्टमी को [[उत्तर प्रदेश]] के [[सीतापुर]] में हुआ था, देहांत मद्रास राज्य में एरोड में 19 फरवरी, 1956 को। उनके पिता श्री बलदेवप्रसाद जी अपने समय के बड़े वकीलों में थे। वे धार्मिक वृत्ति के थे। कांग्रेस और सोशल कानफरेंस के कामों में भी थोड़ी बहुत दिलचस्पी लेते थे। इस नाते उपदेशक, संन्यासी और पंडित उनके घर आया करते थे। इस तरह बचपन में ही [[स्वामी रामतीर्थ]], पंडित [[मदनमोहन मालवीय]], पं. दीनदयालु शर्मा आदि के संपर्क में आने का मौका मिला। पिता जी के प्रभाव से आचार्य जी (तब अविनाशीलाल) के मन में भारतीय संस्कृति के प्रति अनुराग उपजा। इसी कारण आगे चलकर आपने एम.ए. में संस्कृत ली। इसके पूर्व [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] से बी.ए. किया। बी.ए. पास कर पुरातत्व पढ़ने काशी के क्वींस कालेज में आए। सन् 1913 में एम.ए. पास किया। घरवालों ने वकालत पढ़ने का आग्रह किया। नरेंद्रदेव जी को यह पेशा पसंद नहीं था। किंतु वकालत करते हुए राजनीति में भाग ले सकने की दृष्टि से कानून पढ़ा। 1915-20 तक पाँच वर्ष [[फैजाबाद]] में वकालत की। इसी बीच असहयोग आंदोलन प्रारंभ हुआ। असहयोग आंदोलन के शुरू होने के बाद श्री जवाहरलाल नेहरू की सूचना और अपने मित्र श्री शिवप्रसाद गुप्त के आमंत्रण पर नरेंद्रदेव जी विद्यापीठ आए।
 
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1934 में आपने श्री [[जयप्रकाश नारायण]], डाक्टर [[राममनोहर लोहिया]] तथा अन्य सहयोगियों के साथ कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। 1934 ई. में हुए प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष आचार्य जी ही थे। कांग्रेस से बाहर आने पर 1948 में सोशलिस्ट पार्टी का जो सम्मेलन पटना में हुआ उसकी अध्यक्षता भी आचार्य जी ने ही की। समाजवादी आंदोलन में आचार्य नरेंद्रदेव का वही स्थान रहा है जो एक परिवार में पिता का होता है या व्यक्ति में आत्मा का होता है। आचार्य जी माक्र्सवादी समाजवादी थे, किंतु बराबर कहा करते थे कि इस युग की दो मुख्य प्रेरणाएँ राष्ट्रीयता और समाजवाद है और राष्ट्रीय परिस्थितियों और आकांक्षाओं की दृष्टि से ही समाजवाद का अर्थ करने पर जोर देते रहे। इस दृष्टि से आचार्य जी किसानों के सवाल पर विशेष जोर देते थे, और किसानों की भूमिका का विशेष मान करते थे, जब कि माक्र्सवादी परंपरा के अनुसार किसान की भूमिका प्रतिक्रियावादी ही हो सकती है। भारत में समाजवाद को राष्ट्रीयता और किसानों के सवाल से जोड़ना, आचार्य जी की भारतीय समाजवाद को एक स्थायी देन है।
 
== लेखन एवं रचनाएँ ==
राजनीति के अलावा, दूसरी प्रवृत्ति, उन्हीं के शब्दों में, "लिखने पढ़ने की ओर" रही है। इस दिशा में आचार्य नरेंद्रदेव जी का योगदान अत्यंत महत्व का है। विद्यापीठ के द्वारा पिछले वर्षों में राष्ट्रीय शिक्षा के क्षेत्र में जो महत्व का काम हुआ है, उसकी आज भी, जबकि राष्ट्रीय शिक्षाप्रणाली की खोज ही चल रही है, विशेष उपयोगिता है। [[काशी विद्यापीठ]] के अध्यापक, आचार्य और कुलपति की हैसियत से आपने अपनी विद्वत्ता, उदारता और चरित्र के द्वारा अध्यापन और प्रशासन का जो उच्च आदर्श् कायम किया है, वह अनुकरणीय है। अपने सहयोगी श्री [[संपूर्णानंद]] जी के आग्रह पर आचार्य जी ने संयुक्त प्रांत के फिर नाम बदल जाने पर, उत्तर प्रदेश की माध्यमिक शिक्षा समिति की अध्यक्षता की थी। इस समिति के जरिए कई एक महत्वपूर्ण सुझाव आपने दिए थे। इसके अलावा, [[संस्कृत]] वाङ्मय के अध्ययन और अनुसंधान को बढ़ाने पर आप बराबर जोर देते थे।
 
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आचार्य नरेंद्रदेव जी ने "विद्यापीठ" त्रैमासिक पत्रिका, "समाज" त्रैमासिक, "जनवाणी" मासिक, "संघर्ष" और "समाज" साप्ताहिक पत्रों का संपादन किया। इनमें जो लेख, टिप्पणियाँ वगैरह समय-समय पर प्रकाशित हुए हैं, उनके संग्रह हैं : राष्ट्रीयता और समाजवाद, समाजवाद : लक्ष्य तथा साधन, सोशलिस्ट पार्टी और मार्क्सवाद, भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास, युद्ध और भारत, किसानों का सवाल आदि।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.kurmisamaj.com/index.php/ourproud/literature-poets/60-dr-narendradev-verma.pdf आचार्य नरेन्द्र देव वर्मा]