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'''आसफ़ुद्दौला''' ( {{Lang-ur|نواب آصف الدولہ}}) ([[२३ सितंबर]] [[१७४८]]-[[२१ सितंबर]] [[१७९७]]) १७७५ से १७९७ के बीच [[अवध के नवाब वज़ीर]] और [[शुजाउद्दौला]] के बेटे थे, उनकी माँ और दादी अवध की बेग़में थी। अवध की लूट ही [[वारेन हेस्टिंग्स]] के खिलाफ़ इल्ज़ामों में से प्रमुख था।
 
== शासनकाल ==
 
[[शुजाउद्दौला]] जब मरे तो उन्होंने अपने [[ज़नाना|ज़नाने]] में २० लाख [[पाउंड स्टर्लिंग]] दफ़नाए हुए छोड़े हुए थे। मृत राजकुमार की विधवा व उनकी माँ ने इस एक ऐसी वसीयत के आधार पर पूरे खजाने की मालिकियत का दावा किया, जो कभी सामने आई ही नहीं। जब [[वार्रन हास्टिंग्स|वारेन हेस्टिंग्स]] ने नवाब से [[ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी]] को बकाया रकम की माँग की, तो उन्होंने अपनी माँ से २६ लाख रुपए का उधार माँगा, और इसके एवज में उन्होंने उनको इसके चार गुना दाम की [[जागीर]] दी। इसके बाद पूर्ण रिहाई के एवज में ३० लाख और प्राप्त किए, साथ ही जागीरों में आजीवन कंपनी द्वारा कोई हस्तक्षेप न होने का वादा भी किया गया। बाद में बेगम का चाय सिंह के विद्रोह में सहयोग देने के आरोप में ये जागीरें जब्त कर ली गईं, बाद में इस सहयोग का दस्तावेज़ी प्रमाण भी मिला। अभी मिले प्रमाणों से यह प्रतीत होता है कि [[वार्रन हास्टिंग्स|वारेन हेस्टिंग्स]] ने नवाब को अपनी अक्षमताओं से बचाने की पूरी कोशिश की थी, और वे बेगमों के प्रति भी काफ़ी नरम थे।
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उस समय अवध को भारत का अन्न भण्डार माना जाता था जो कि दोआब कहलाए जाने वाले गंगा नदी और यमुना नदी के बीच की उपजाऊ ज़मीन के क्षेत्र पर नियंत्रण करने के लिए कूटनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था। यह बहुत ही धनवान राज्य था और यह मराठों, अंग्रेज़ों और अफ़ग़ानों से अपनी स्वतंत्रता बनाए रख पाया था। सन १७३२ में अवध के [[सआदत अली खान प्रथम|नवाब सआदत अली खान]] ने अवध के स्वतन्त्र होने की घोषणा कर दी थी। रोहिल्ला ने भी स्वतन्त्र रोहेलखण्ड की स्थापना की, रोहिल्लो का राज्य सन १७७४ तक चला जब तक कि अवध के नवाब ने अंग्रेज़ों की ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद से उन्हें हरा नहीं दिया। आसफ़ुद्दौला के पिता, अवध के तीसरे नवाब [[शुजाउद्दौला]] ने बंगाल के बाग़ी नवाब मीर क़ासिम के साथ मिल कर अंग्रेज़ों के खिलाफ़ सन्धि कर ली थी जिसके कारण अंग्रेज़ [[शुजाउद्दौला|नवाब शुजाउद्दौला]] के विरोधी हो गए थे।
 
== राजधानी का स्थानांतरण ==
 
१७७५ में वे अवध की राजधानी [[फ़ैज़ाबाद]] से [[लखनऊ]] ले गए और वहाँ उन्होंने [[बड़ा इमामबाड़ा]] सहित कई इमारतें बनवाईं।
 
== वास्तुशिल्प में योगदान ==
नवाब आसफ़ुद्दौला को [[लखनऊ]] का मुख्य वास्तुशिल्पी माना जाता है। मुग़ल वास्तुशिल्प से भी अधिक चकाचौंध की चाहत में उन्होंने कई इमारतें बनवाईं और लखनऊ शहर को वास्तुशिल्प का एक अनोखा नमूना बना दिया। इनमें से कई इमारतें आज भी मौजूद हैं, इनमें मशहूर [[आसफ़ी इमामबाड़ा]] शामिल है जहाँ आज भी सैलानी आते हैं, और [[लखनऊ]] शहर का क़ैसरबाग़ इलाका, जहाँ हज़ारों लोग प्राचीन नवीनीकृत इमारतों में रहते हैं।
 
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नवाब अपनी दरियादिली के लिए इतने मशहूर हुए कि आज भी [[लखनऊ]] में एक जानी मानी कहावत है कि ''जिसको दे न मौला, उसको दे आसफ़ुद्दौला''।
 
== मृत्यु ==
 
उनका [[२१ सितंबर]] [[१७९७]] में लखनऊ में देहांत हुआ, और इस समय उनकी कब्र [[बड़ा इमामबाड़ा]], लखनऊ में है।
 
== दीर्घा ==
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Image:asif_palace_lucknow.jpg|लखनऊ में आसफ़ुद्दौला के महल का एक दृष्य, १७९३
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== समयचक्र ==
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== संदर्भ ==
* ''इस लेख के कुछ हिस्से ''[[इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका, ११वाँ संस्करण]]'' से लिए गए हैं, यह प्रकाशन अब [[सार्वजनिक रूप से उपलब्ध]] है।''
* [http://lucknow.nic.in/Asaf.htm एनआईसी जालस्थल]
* [http://india.mapsofindia.com/culture/monuments/bada-imambada.html बड़ा इमामबाड़ा का मानचित्र मैप्स ऑफ़ इंडिया से]
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[क्लॉड मार्टिन]]
* [[मीर ताक़ी मीर]]
* [[एंतोइन पोलियर]]
* [[अवध]]
* [[उत्तर प्रदेश का इतिहास]]
* [[लखनऊ]]
 
{{अवध के नवाब}}