"इज़राइल का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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[[इज़रायल]] का [[इतिहास]] संसार के [[यहूदी]] धर्मावलंबियों के प्राचीन राष्ट्र का नया रूप है। इज़रायल का नया राष्ट्र 14 मई, सन् 1948 को अस्तित्व में आया। इज़रायल राष्ट्र, प्राचीन [[फ़िलिस्तीन]] अथवा पैलेस्टाइन का ही बृहत् भाग है।
 
== आदि काल ==
यहूदियों के धर्मग्रंथ "पुराना अहदनामा" अनुसार यहूदी जाति का निकास पैगंबर हज़रत अबराहम (इस्लाम में इब्राहिम, ईसाइयत में Abraham) से शुरू होता है। अबराहम का समय ईसा से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व है अबराहम के एक बेटे का नाम इसहाक और पोते का याकूब (ईसाईयत में Jacob) था। याकूब का ही दूसरा नाम इज़रायल था। याकूब ने यहूदियों की 12 जातियों को मिलाकर एक किया। इन सब जातियों का यह सम्मिलित राष्ट्र इज़रायल के नाम के कारण "इज़रायल" कहलाने लगा। आगे चलकर इबरानी भाषा में इज़रायल का अर्थ हो गया---"ऐसा राष्ट्र जो ईश्वर का प्यारा हो"।
 
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यहूदियों के प्रारंभिक इतिहास का पता अधिकतर उनके धर्मग्रंथें से मिलता है जिनमें मुख्य बाइबिल का वह पूर्वार्ध है जिसे "पुराना अहदनामा" (ओल्ड टेस्टामेंट) कहते हैं। पुराने अहदनामे में तीन ग्रंथ शामिल हैं। सबसे प्रारंभ में "तौरेत" (इबरानी थोरा) है। तौरेत का शब्दिक अर्थ वही है जो "धर्म" शब्द का है, अर्थात् धारण करने या बाँधनेवाला। दूसरा ग्रंथ "यहूदी पैगंबरों का जीवनचरित" और तीसरा "पवित्र लेख" है। इन तीनों ग्रंथों का संग्रह "पुराना अहदनामा" है। पुराने अहदनामें में 39 खंड या पुस्तकें हैं। इसका रचनाकाल ई.पू. 444 से लेकर ई.पू. 100 के बीच है। पुराने अहदनामे में सृष्टि की रचना, मनुष्य का जन्म, यहूदी जाति का इतिहास, सदाचार के उच्च नियम, धार्मिक कर्मकांड, पौराणिक कथाएँ और यह्वे के प्रति प्रार्थनाएँ शामिल हैं।
 
=== अब्राहम और मूसा ===
[[ईसाई धर्म]], [[इस्लाम]] तथा [[यहूदी धर्म]] को संयुक्त रूप से ''इब्राहिमी धर्म'' भी कहते हैं क्योंकि इब्राहम तीनों धर्म के मूल में हैं ।
 
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यहूदियों की इस स्थिति को देखकर असुरिया के राजा शुलमानु अशरिद पंचम ने सन् 722 ई.पू. में इज़रायल की राजधानी समरिया पर चढ़ाई की और उसपर अपना अधिकार कर लिया। अशरिद ने 27,290 प्रमुख इज़रायली सरदारों को कैद करके और उन्हें गुलाम बनाकर असुरिया भेज दिया और इज़रायल का शासनप्रबंध असूरी अफसरों को सपुर्द कर दिया। सन् 610 ई.पू. में असुरिया पर जब खल्दियों ने आधिपत्य कर लिया तब इज़रायल भी खल्दी सत्ता के अधीन हो गया।
 
== हख़ामनी राजवंश ==
सन् 550 ई.पू. में ईरान सुप्रसिद्ध हख़ामनी राजवंश का समय आया। इस कुल के सम्राट् कुरुश ने जब बाबुल की खल्दी सत्ता पर विजय प्राप्त की तब इज़रायल और यहूदी राज्य भी ईरानी सत्ता के अंतर्गत आ गए। आसपास के देशों में उस समय ईरानी सबसे अधिक प्रबुद्ध, विचारवान् और उदार थे। अपने अधीन देशों के साथ ईरानी सम्राटों का व्यवहार न्याय और उदारता का होता था। प्रजा के उद्योग धंधों को वे संरक्षा देते थे। समृद्धि उनके पीछे-पीछे चलती थी। उनके धार्मिक विचार उदार थे। ईरानियों का शासनकाल यहूदी इतिहास का कदाचित् सबसे अधिक विकास और उत्कर्ष का काल था। जो हजारों यहूदी बाबुल में निर्वासित और दासता में पड़े थे उन्हें ईरानी सम्राट् कुरु ने मुक्त कर अपने देश लौट जाने की अनुमति दी। कुरु ने जेरूसलम के मंदिर के पुराने पुरोहित के एक पौत्र योशुना और यहूदी बादशाह दाऊद के एक निर्वासित वंशज जेरुब्बाबल को जरूसलम की वह संपत्ति देकर, जो लूटकर बाबुल लाई गई थी, वापस जेरूसलम भेजा और अपने खर्च पर जेरूसलम के मंदिर का फिर से निर्माण कराने की आज्ञा दी। इज़रायल और यहूदा के हजारों घरों में खुशियाँ मनाई गईं। शताब्दियों के पश्चात् इज़रायलियों को साँस लेने का अवसर मिला।
 
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इज़रायली धर्मग्रंथों में शायद सबसे सुंदर पुस्तक "दाऊद के भजन" हैं। पुराने अहदनामे की यह सबसे अधिक प्रभावोत्पादक पुस्तक समझी जाती है। जिस प्रकार दाऊद के भजन भक्तिभावना के सुंदर उदाहरण हैं उसी प्रकार सुलेमान की अधिकांश कहावतें हर देश और हर काल के लिए कीमती हैं और सचाई से भरी हैं। एक तीरा यहूदी धर्मग्रंथ "प्रचारक" (एक्लज़िएस्टेस) इन ग्रंथों के बाद का लिखा हुआ है।
 
== हख़ामनी साम्राज्य का अंत ==
सन् 330 ई.पू. में सिकंदर ने ईरान को जीतकर वहाँ के हख़ामनी साम्राज्य का अंत कर दिया। सन् 320 ई.पू. में सिकंदर के सेनापति तोलेमी प्रथम ने इज़रायल और यहूदा पर आक्रमण कर उसपर अपना अधिकर कर लिया। बाद में सन् 198 ई.पू. में एक दूसरे यूनानी परिवार सेल्यूकस राजवंश का अंतिओकस चतुर्थ यहूदियों के देश का अधिराज बना। जेरूसलम के बलवे से रुष्ट होकर अंतिओकस ने उसके यहूदी मंदिर को लूट लिया और हजारों यहूदियों का वध करवा दिया, शहर की चहारदीवारी को गिराकर जमीन से मिला दिया और शहर यूनानी सेना के सपुर्द कर दिया।
 
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क़ब्बालह की पुस्तकों में योग की विविध श्रेणियों, शरीर के भीतर के चक्रों और अभ्यास के रहस्यों का वर्णन है।
 
== यहूदियों की राजनीतिक स्वाधीनता का अंत ==
यहूदियों की राजनीतिक स्वाधीनता का अंत उस समय हुआ जब सन् 66 ई.पू. में रोम के जनरल पांपे ने तीन महीने के घेरे के पश्चात् जेरूसलम के साथ-साथ सारे देश पर अधिकार कर लिया। इतिहासलेखकों के अनुसार हजारों यहूदी लड़ाई में मारे गए और 12,000 यहूदी कत्ल कर दिए गए।
 
इसके बाद सन् 135 ई. में रोम के सम्राट् हाद्रियन ने जेरूसलम के यहूदियों से रुष्ट होकर एक-एक यहूदी निवासी को कत्ल करवा दिया। वहाँ की एक-एक ईंट गिरवा दी और शहर की समस्त जमीन पर हल चलवाकर उसे बराबर करवा दिया। इसके पश्चात् अपने नाम एलियास हाद्रियानल पर ऐंलिया कावितोलिना नामक नया रोमी नगर उसी जगह निर्माण कराया और आज्ञा दे दी कि कोई यहूदी इस नए नगर में कदम न रखे। नगर के मुख्य द्वार पर रोम के प्रधान चिह्न सुअर की एक मूर्ति कायम कर दी गई। इस घटना के लगभग 200 वर्ष बाद रोम के पहले ईसाई सम्राट् कोंस्तांतीन ने नगर का जेरूसलम नाम फिर से प्रचलित किया।
 
== अरबों का अधिकार ==
छठी ई. तक इज़रायल पर रोम और उसके पश्चात् पूर्वी रोमी साम्राज्य बीज़ोंतीन का प्रभुत्व कायम रहा। खलीफ़ा अबूबक्र और खलीफ़ा उमर के समय अरब और रोमी(Bizantine) सेनाओं में टक्कर हुई। सन् 636 ई. में खलीफ़ा उमर की सेनाओं ने रोम की सेनाओं को पूरी तरह पराजित करके फ़िलिस्तीन पर, जिसमें इज़रायल और यहूदा शामिल थे, अपना कब्जा कर लिया। खलीफ़ा उमर जब यहूदी पैगंबर दाऊद के प्रार्थनास्थल पर बने यहूदियों के प्राचीन मंदिर में गए तब उस स्थान को उन्होंने कूड़ा कर्कट और गंदगी से भरा हुआ पाया। उमर और उनके साथियों ने स्वयं अपने हाथों से उस स्थान को साफ किया और उसे यहूदियों के सपुर्द कर दिया।
 
== जेरुसलम पर इसाइयों का अधिकार ==
इज़रायल और उसकी राजधानी जेरूसलम पर अरबों की सत्ता सन् 1099 ई. तक रही। सन् 1099 ई. में जेरूसलम पर ईसाई धर्म के जाँनिसारों ने अपना कब्जा कर लिया और बोलोन के गाडफ्रे को जेरूसलम का राजा बना दिया। ईसाइयों के इस धर्मयुद्ध में 5,60,000 सैनिक काम आए, किंतु 88 वर्षों के शासन के बाद यह सत्ता समाप्त हो गई।
 
== क्रूसेड या क्रूस युद्ध ==
{{मुख्य|क्रूसेड}}
 
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13वीं और 14वीं शताब्दी में हुलाकू और उसके बाद तैमूर लंग ने जेरूसलम पर आक्रमण करके उसे नेस्तनाबूद कर दिया। इसके पश्चात् 19वीं शताब्दी तक इज़रायल पर कभी मिस्री आधिपत्य रहा और कभी तुर्क। सन् 1914 में जिस समय पहला विश्वयुद्ध हुआ, इज़रायल तुर्की के कब्जे में था।
 
== ब्रिटेन के अधीनता एवं नये राष्ट्र का उदय ==
[[चित्र:PalestinePost Israel is born.jpg|thumb|right|600px|पलेस्टाइन पोस्ट में इसरायल के जन्म की ख़बर]]
सन् 1917 में ब्रिटिश सेनाओं ने इस पर अधिकार कर लिया। 2 नवंबर, सन् 1917 को ब्रिटिश विदेश मंत्री बालफ़ोर ने यह घोषणा की कि इज़रायल को ब्रिटिश सरकार यहूदियों का धर्मदेश बनाना चाहती है जिसमें सारे संसार के यहूदी यहाँ आकर बस सकें। मित्रराष्ट्रों ने इस घोषण की पुष्टि की। इस घोषणा के बाद से इज़रायल में यहूदियों की जनसंख्या निरंतर बढ़ती गई। लगभग 21 वर्ष (दूसरे विश्वयुद्ध) के पश्चात् मित्रराष्ट्रों ने सन् 1948 में एक इज़रायल नामक यहूदी राष्ट्र की विधिवत् स्थापना की।
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यहूदियों ने ही पश्चिमी धर्मों में नबियों और पैगंबरों तथा इलहामी शासनों का आरंभ और प्रचार किया। उनके नबियों ने, विशेषकर छठी सदी ई.पू. के नबियों ने जिस साहस और निर्भीकता से श्रीमानों और असूरी सम्राटों को धिक्कारा है और जो बाइबिल की पुरानी पोथी में आज भी सुरक्षित है, उसका संसार के इतिहास में सानी नहीं। उन्होंने ही नेबुखदनेज्ज़ार की अपनी बाबुली कैद में बाइबिल के पुराने पाँच खंड (पेंतुतुख) प्रस्तुत किए। इसी से बाबुल के संबध से ही संभवत: बाइबिल का यह नाम पड़ा।
 
== स्वतंत्रता ==
सन्‌ 1948 ई. से पहले फिलिस्तीन (इज़रायल जिसका आजकल एक भाग है) ब्रिटेन के औपनिवेशिक प्रशासन के अंतर्गत एक अधिष्ठित (मैनडेटेड) क्षेत्र था। यहूदी लोग एक लंबे अरसे से फिलिस्तीन क्षेत्र में अपने एक निजी राष्ट्र की स्थापना के लिए प्रयत्नशील थे। इसी उद्देश्य को लेकर संसार के विभिन्न भागों से आकर यहूदी फिलिस्तीनी इलाके में बसने लगे। अरब राष्ट्र भी इस स्थिति के प्रति सतर्क थे। फलत: 1947 ई. में अरबों और यहूदियों के बीच युद्ध प्रारंभ हो गया। 14 मई, 1948 ई. को अधिवेश (मैनडेट) समाप्त कर दिया गया और इज़रायल नामक एक नए देश अथवा राष्ट्र का उदय हुआ। युद्ध जनवरी, 1949 ई. तक जारी रहा। न तो किसी प्रकार की शांतिसंधि हुई, न ही किसी अरब राष्ट्र ने इज़रायल से राजनयिक संबंध स्थापित किए। अलबत्ता संयुक्त राष्ट्रसंघीय युद्धविराम--पर्यवेक्षक--संगठन इस क्षेत्र में शांति स्थापना का कार्य करता है।
 
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फरवरी, 1969 ई. में लेवी एश्कोल की मृत्यु हो जाने पर श्रीमती गोलडा मायर इज़रायल की प्रधानमंत्री नियुक्त हुईं और अक्टूबर, 1969 ई. के चुनाव में उन्हें पुन: प्रधानमंत्री चुन लिया गया। युद्ध--विराम--रेखा पर और विशेष रूप से अधिकृत स्वेज़ क्षेत्र में इज़रायलियों तथ अरब राष्ट्रों एवं फिलिस्तीनी गुरिल्ला संगठन के बीच छोटी मोटी झड़पें चलती रहीं जिनका अंत अगस्त, 1970 ई. में हुए युद्धविराम समझौते के बाद ही हुआ। किंतु मध्यपूर्व की वर्तमान स्थिति तब तक विस्फोटक बनी रहेगी, जब तक यहाँ की समस्याओं का कोई स्थायी राजनीतिक समाधान नहीं खोज लिया जाता।
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन]] (PLO)
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.namasteisrael.com/israel.html स्वतंत्रता के पश्चात इजराइल का इतिहास]