"इन्द्रप्रस्थ": अवतरणों में अंतर

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== शहर का निर्माण ==
[[महाभारत]] (पुस्तक १, अध्याय २०९) में इस शहर का विवरण दिया है, कि कैसे पांडवों ने यह शहर बनाया और बसाया।
[[चित्र:Indraprasta.jpg|right|thumb|500px| [[कृष्ण]] और [[अर्जुन]] द्वारा एक ऊंचे टीले से इंद्रप्रस्थ शहर का विहंगम दृश्य]]
पांडवों की [[पांचाल राज्य|पांचाल]] राजा [[द्रुपद]] की पुत्री [[द्रौपदी]] से विवाह उपरांत मित्रता के बाद वे काफ़ी शक्तिशाली हो गए थे। तब [[हस्तिनापुर]] के महाराज [[धृष्टराष्ट्र]] ने उन्हें राज्य में बुलाया। धृष्टराष्ट्र ने [[युधिष्ठिर]] को संबोधित करते हुए कहा, “ हे कुंती पुत्र! अपने भ्राताओं के संग जो मैं कहता हुं, सुनो। तुम [[खांडवप्रस्थ]] के वन को हटा कर अपने लिए एक शहर का निर्माण करो, जिससे कि तुममें और मेरे पुत्रों में कोई अंतर ना रहे। यदि तुम अपने स्थान में रहोगे, तो तुमको कोई भी क्षति नहीं पहुंचा पाएगा। पार्थ द्वारा रक्षित तुम खांडवप्रस्थ में निवास करो, और आधा राज्य भोगो।“