"उपदंश": अवतरणों में अंतर

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एक विशेष प्रकार का उपदंश जो फिरंग देश में बहुत अधिक प्रचलित था और जब भारतवर्ष में वे लोग आए तो उनके संपर्क से यहाँ भी गंध के समान वह फैलने लगा तो उस समय के वैद्यों ने, जिनमें भाव मिश्र प्रधान हैं, उसका नाम 'फिरंग रोग' रखा दिया। इसे आगंतुज व्याधि बताया गया अर्थात् इसका कारण हेतु जीवाणु बाहर से प्रवेश करता है। निदान में कहा गया है कि फिरंग देश के मनुष्यों के संसर्ग से तथा विशेषकर फिरंग देश की स्त्रियों के साथ प्रसंग करने से यह रोग उत्पन्न होता है। यह दो प्रकार का होता है एक बाह्य एवं दूसरा अभ्यंतर। बाह्य में शिश्न पर और कालांतर में त्वचा पर विस्फोट होता है। आभ्यंतर में संधियों, अस्थियों तथा अन्य अवयवों में विकृति हो जाती है। जब यह बीमारी बढ़ जाती है तो दौर्बल्य, नासाभंग, अग्निमांद्य, अस्थिशोष एवं अस्थिवक्रता आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। वस्तुत: फिरंग रोग उपदंश से भिन्न व्याधि नहीं है बल्कि उसी का एक भेद मात्र है। बहुत लोग इसे पर्याय भी मानने लगे हैं।
 
== परिचय ==
आधुनिक दृष्टि से शिश्न के व्रणों के दो मुख्य भेद हैं-हार्ड शैंकर (hard chanchre) एवं साफ़्ट शैंकर। इसमें प्रथम तो ट्रिपोनिमा पैलिडम (treponema pallidum) जीवाणु से तथा द्वितीय हिमोफ़िलसड्यूकी (haemothilusducreyi) के कारण होता है। इसमें पहले को फिरंग और दूसरे को उपदंश मान सकते हैं। [[सिफ़िलिस]] (syphlilis) तीन अवस्थाएँ होती हैं। प्रदुष्ट स्त्री के साथ संभोग करने पर दस दिन से दस सप्ताह के अंदर शिश्न पर एक छोटे बटन के आकार का कठिन, स्रावयुक्त, वेदनारहित शोथ हो जाता है जो बिना किसी चिकित्सा के भी शांत हो जाता है। तत्संबंधी लसिका ग्रंथियों में भी शोथ हो जाता है; परंतु उसमें भी पाक नहीं होता है। यह रोग की प्रथम अवस्था है। द्वितीय अवस्था उपसर्ग के तीन से छह माह बाद उत्पन्न होती है जिसमें दौर्बल्य, शिर:शूल तथा सामान्य खाँसी के साथ-साथ निम्नांकित चार प्रकार की विकृतियाँ होती हैं :
 
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यह रोग आनुवंशिक भी होता हे। माता पिता में होने से इसके जीवाणु गर्भावस्था में ही गर्भ में प्रविष्ट हो जाते हैं और जन्मजात शिशु में तथा कालांतर में इस रोग के लक्षण उसके अंदर पाए जाते हैं। बच्चा उत्पन्न होते ही बहुत दुर्बल, शुष्क हो सकता है जो शीघ्र ही मर जाता है। जीवित रहने पर त्वचा पर तथा आल्यंतर अवयव में, दाँत, आँख तथा स्नायुओं में विकृति उत्पन्न होती है।
 
== निदान एवं चिकित्सा ==
इस रोग का निदान लक्षणों से तथा विभिन्न स्रावों से जीवाणु के प्रत्यक्षीकरण से, वासरमैन तथा कान विधि से रक्त की परीक्षा करके की जाती है।
 
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इसमें प्रदुष्ट स्त्री से संसर्ग करने से, दो तीन दिन के अंदर लाल रक्तवर्ण का शोथ शिश्न पर हो जाता है। इसमें वेदना, पाक, [[पूय]]निर्माण बहुतायत से होता है। व्रणों की संख्या बहुधा अनेक हो जाती है और वंक्षण प्रदेश (inguinal region) की [[लसीका तंत्र|लसिका ग्रंथियों]] में भी शोथ हो जाता है जिसमें पूय पड़ जाता है। इस प्रकार के लक्षण सिफ़िलिस से बिल्कुल विपरीत होते हैं। इसकी चिकित्सा टेट्रासाइक्लीन, स्ट्रेप्टोमाइसीन एवं क्लोरोफेनिकाल के द्वारा सफलतापूर्वक की जा सकती है।
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{{बीमारियाँ}}
 
[[श्रेणी:रोग]]
 
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{{बीमारियाँ}}
[[en:Syphilis]]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/उपदंश" से प्राप्त