"उपसहसंयोजक यौगिक": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Cisplatin-3D-balls.png|right|thumb|300px|सिसप्लेटिन, PtCl2(NH3)2 इसमें एक प्लेटिनम परमाणु के साथ चार संलग्नी (लिगण्ड) हैं।]]
 
[[रसायन विज्ञान]] में '''उपसहसंयोजक यौगिक''' (coordination complex या metal complex) उन यौगिकों को कहते हैं जिनमें कोई परमाणु या आयन (प्रायः धात्विक) उसको घेरे हुए अणुओं या धनायनों के व्यूह (array ) से जुड़ा हो। बहुत से धातु-युक्त यौगिक उपसहसंयोजक यौगिक ही हैं।
 
'उपसहसंयोजक यौगिक' का और अधिक व्यापक परिभाषा यह है -
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देता है वह दाता (donor) है और दूसरा वाला ग्राही (acceptor) है। इसे प्राय: तीर द्वारा (->) प्रदर्शित किया जाता है। हाइड्रोजन पराक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड, हाइड्रोनियम आयन, फेरोसायनाइड आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।
 
== परिचय ==
ऐल्फ्रडे वेर्नर ने धातुओं की सामान्य बंधुता को 'प्राथमिक' बंधुता कहा। कुछ धातुओं में प्राथमिक बंधुता के अतिरिक्त एक और बंधुता होती है, जिसे 'द्वितीयक' बंधुता कहते हैं। इस द्वितीयक बंधुता को ही 'उपसहसंयोजकता' का और ऐसे बने यौगिकों की 'उपसहसंयोजक-यौगिक' का नाम दिया। ऐसे यौगिकों को वेर्नर ने उच्च वर्ग यौगिक कहा है।
 
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रासायनिक संयोग का बनना ऐसे बने यौगिकों के रंग, विलेयता, और अन्य गुणों की विभिन्नता से जाना जाता है। ऐसे बने प्लैटिनम के यौगिक में न प्लैटिनम के और न क्लोरीन के ही परीक्षक लक्षण पाए जाते हैं। जिन समूहों में असाझी इलेक्ट्रॉन रहते हैं, वे हैं अमोनिया (NH3), जल (H2O), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), नाइट्रिक ऑक्साइड (NO), ऐल्किल ऐमिन (RNH2), डाइऐल्किल ऐमिन (R2NH), ट्राइऐल्किल ऐमिन (R3N), ऐल्किल सल्फाइड (RSR), साइआनाइड (CN), थायोसाइआनाइड (SCN) आदि।
 
== उपसहसंयोजकता ==
यौगिकों में दो, या दो से अधिक, किस्म के दाता रह सकते हैं। केंद्र स्थित धात्विक आयनों में दाता समूहों की संख्या प्रत्येक धात्विक आयन के लिए निश्चित रहती है। ऐसी संख्या को उपसहसंयोजकता-संख्या (Coordination Number) कहते हैं। सिजविक (Sidgwick) के अनुसार यह संख्या तत्वों की परमाणु संख्या पर निर्भर करती है। यह दो से आठ तक हो सकती है। हाइड्रोजन की उपसहसंयोजकता संख्या दो है और भारी धातुओं की आठ। यदि दाता समूह या परमाणु में एक जोड़े से अधिक असाझी इलेक्ट्रॉन विद्यमान हों, तो ऐसे समूह या परमाणु दो धात्विक आयनों से संयुक्त हो सकते हैं। इस रीति से द्विनाभिक संमिश्र (dinuclear complex) बनते हैं। ऐसा ही एक द्विनाभिक संमिश्र डाइओल ऑवटेमिन डाइकोबाल्टिक सल्फेट (di-ol octamin dicobaltic sulphate) है:
 
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ऐल्फा-ऐमिना अम्ल अनेक धातुओं के हाइड्रॉक्साइडों से अधिक क्रिया कर बहुत स्थायी योगिक बनाता है। इनमें अम्ल और ऐमिनो दोनों समूह धातु से संयुक्त होकर, कीलेट वलय बनाते हैं। यदि उपसहसंयोजकता-संख्या बंधुता से दुगुनी है, तो ऐसे यौगिक अनायनित (non-ionic) होते हैं और इन्हें 'आंतर लवण' (Inner salt) कहते हैं। ऐसे आंतर लवण कुछ हाइड्रॉक्सी अम्लों और डाइकीटोनों से भी बनते हैं। ऐसे यौगिक जल में अविलेय होने पर, कार्बनिक विलायकों में विलेय होते हैं। ये भाप में वाष्पशील भी होते हैं। कच्चे चमड़े पर क्रोमियम लवणों से चर्मशोधन में कुछ ऐसी ही क्रिया क्रोमियम लवण और चमड़े के पॉलिपेप्टाइडों के बीच होती है। चर्म का शोधन होना ऐसे ही आंतर लवण बनने के कारण समझा जाता है।
 
== संरचना ==
{| class="wikitable"
|-
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== समावयवता (Isomerism) ==
उपसहसंयोजकता-यौगिकों में कई किस्म की समावयवता पाई गई है। इनमें अधिक महत्व की समावयवता निम्नलिखित प्रकार की है:
 
=== बहुलकीकरण (Polymerisation) समावयवता ===
इसकी आणविक संरचना में सरलतम संरचना के गुणक होते हैं। हेक्सामिन कोबाल्टिक हेक्सानाइट्रो कोबाल्टेड [Co(NH<sub>3</sub>)<sub>6</sub>] [Co(NO<sub>2</sub>)<sub>6</sub>] अनायनित ट्राइनाइट्रो ऐमिन कोबाल्ट [Co(NH<sub>3</sub>)<sub>3</sub> (NO<sub>2</sub>)<sub>3</sub>] का बहुलक है।
 
=== संरचना (Structural) समावयवता ===
नाइट्राइट आयन के नाइट्रोजन और ऑक्सीजन दोनों के परमाणुओं में असाझी इलेक्ट्रॉन होते हैं, अत: ये कोबाल्टिक आयन से दो रीतियों से, एक ऑक्सीजन द्वारा और दूसरा नाइट्रोजन द्वारा, संबद्ध हो सकते हैं। इससे दो समावयव
 
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प्राप्त होते हैं।
 
=== उपसहसंयोजकता (Coordination) समावयवता ===
इसमें घनात्मक और ऋणात्मक दोनों आयन होते हैं, पर उनका वितरण विभिन्न प्रकार का होता है, जैसे
 
[Co (NH<sub>3</sub>)<sub>6</sub>] [Cr (CN)<sub>6</sub>] और [Cr (NH<sub>3</sub>)<sub>6</sub>] [Co (CN)<sub>6</sub>]
 
=== आयनन (Ionisation) समावयवता ===
इसमें दोनों के संघटन एक से होते हैं, पर विलयन में ये विभिन्न आयनों में वियोजित होते हैं। कोबाल्टिक ब्रोमोपेंटामिन सल्फेट
 
[Co(NH<sub>3</sub>)<sub>5</sub> Br] SO<sub>4</sub>, सल्फेट आयन के और कोबाल्टिक सल्फेटो पेंटामिन ब्रोमाइड, [Co (HN<sub>3</sub>)<sub>3</sub>SO<sub>4</sub>]Br, ब्रोमीन आयन की अधिक्रिया देते हैं।
 
=== हाइड्रेट (Hydrate) समावयवता ===
यह समावयवता क्रोमिक क्लोराइड के हेक्सा-हाइड्रेट में देखी जाती है। एक समावयव धूसर बैंगनी रंग का और दो हरे रंग के होते हैं। एक से सिल्वर नाइट्रेट विलयन द्वारा क्लोरीन तीनों परमाणु का, दूसरे से केवल दो क्लोरीन परमाणु का और तीसरे से केवल एक क्लोरीन परमाणु का, तत्काल अवक्षेपण होता है। इन तीनों के सूत्र इस प्रकार हैं:
 
[Cr(H<sub>2</sub>O)<sub>6</sub>] Cl<sub>3</sub>; [Cr (H<sub>2</sub>O)<sub>5</sub>Cl<sub>2</sub>H<sub>2</sub>O और [Cr (OH<sub>2</sub>)<sub>4</sub> Cl<sub>2</sub>] Cl<sub>2</sub> H<sub>2</sub>O*
 
=== त्रिविम समावयता (Stereo-isomerism) ===
उपसहसंयोजकता बंध सदिश (directional) होते हैं। इसकारण उपसहसंयोजकता समूह केंद्र स्थित होते हैं। प्लैटिनम आयन की चारों संयोजकताएँ (convalences) एक तल पर होती है। अत: इसके यौगिक प्लैटिनम डाइऐमिन डाइक्लोराइड दो रूप में, सिस रूप और ट्रैंस रूप में, प्राप्त हुए हैं।
 
इन दोनों के रंग, विलेयता और रासायनिक व्यवहार में भिन्नता होती है। ऐसा केवल प्लैटिनम के साथ ही नहीं होता, अन्य धातुओं, जैसे पेलैडियम, निकल, कैडमियम, पारद आदि के साथ भी ऐसा देखा जाता है। यदि उपसहसंयोजकता समूह छह हैं और उनमें दो अन्य चार समूहों से भिन्न हैं, तो उनके भी दो रूप, सिस और ट्रैंस हो सकते हैं। डाइक्लोरो-टेट्रामिन कोबाल्टिक क्लोराइड दो रूपों में पाया गया है। एक का रंग बैंगनी और दूसरे का हरा होता है।
 
=== प्रकाशिक (optical) समावयवता ===
जब केंद्रित घात्विक आयन पर उपसहसंयोजक समूह चार, छह या अधिक असममित रूप से व्यवस्थित रहें, तो ऐसी संरचनाएँ प्राप्त हो सकती हैं जिनमें एक-दूसरे का दर्पण प्रतिबिंब हो। यदि धात्विक आयन कीलेट वलय बनाता है, तो ऐसा सरलता से संपन्न होता है। ऐसे यौगिकों में प्रकाशिक समावयवता हो सकती है। कुछ यौगिकों में ऐसी प्रकाशिक सक्रियता निश्चित रूप से पाई गई है।
 
== रंग ==
उपसहसंयोजक यौगिक भांति-भांति के रंगों वाले हैं। इसी कारण वे प्रायः [[वर्णक|वर्णकों]] (pigments) के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।
 
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|}
 
== वियोजन ==
उपसहसंयोजक यौगिक प्रायः जटिल आयन होते हैं। इनमें से अधिकांश के जलीय विलयन आयनित नहीं होते और इस कारण विद्युत-अपघट्य नहीं होते। किन्तु इसके विपरीत, प्लेटिनम के निम्नलिखित उपसहसंयोजक यौगिक जल में वियोजित होकर जटिल आयन उत्पन्न करते हैं।
 
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K<sub>2</sub>[PtCl<sub>6</sub>] → 2 K<sup>+</sup> + [PtCl<sub>6</sub>]<sup>2–</sup>
 
== उपयोग ==
उपसहसंयोजक-यौगिक अनेक प्रकार के होते हैं। इनमें से कुछ बड़े उपयोगी सिद्ध हुए हैं। इनका उपयोग उत्तरोत्तर बढ़ रहा है। भारी धातुओं के ऐसे ही संमिश्र साइआनाइड विद्युत लेपन में काम आते हैं। अनेक ऐसे यौगिक महत्व के वर्णक हैं। प्रशीयन ब्ल्यू, हीमोग्लोबिन, क्लोरोफिल आदि ऐसे ही वर्णक हैं। कुछ यौगिक, विशेषत: अंतराल लवण, धातुओं को पहचानने, पृथक्‌ करने तथा उनकी मात्रा निर्धारित करने आदि में काम आते हैं।