"ओड़िया साहित्य": अवतरणों में अंतर

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3. आधुनिक युग या स्वातंत्र्य काल; (1850 से वर्तमान समय तक)
 
== आदियुग ==
आदियुग में सारलापूर्व साहित्य भी अंतर्भुक्त है, जिसमें "बौद्धगान ओर दोहा", गोरखानाथ का "सप्तांगयोगधारणम्", "मादलापांजि", "रुद्रसुधानिधि" तथा "कलाश चौतिशा" आते हैं। "बौद्धगान ओ दोहा" भाषादृष्टि, भावधारा तथा ऐतिहासिकता के कारण उड़ीसा से घनिष्ट रूप में संबंधित है। "सप्तांगयोगधारणम्" के गोरखनाथकृत होने में संदेह है। "मादलापांजि" जगन्नाथ मंदिर में सुरक्षित है तथा इसमें उड़ीसा के राजवंश और जगन्नाथ मंदिर के नियोगों का इतिहास लिपिबद्ध है। किंवदंती के अनुसार गंगदेश के प्रथम राजा चोड गंगदेव ने 1042 ई. (कन्या 24 दिन, शुक्ल दशमी दशहरा के दिन) "मादालापांजि" का लेखन प्रारंभ किया था, किंतु दूसरा मत है कि यह मुगलकाल में 16वीं शताब्दी में रामचंद्रदेव के राजत्वकाल में लिखवाई गई थी। "रुद्र-सुधा-निधि" का पूर्ण रूप प्राप्त नहीं है और जो प्राप्त है उसका पूरा अंश छपा नहीं है। यह शैव ग्रंथ एक अवधूत स्वामी द्वारा लिखा गया है। इसमें एक योगभ्रष्ट योगी का वृत्तांत है। इसी प्रकार वत्सादास का "कलाश चौतिशा" भी सारलापूर्व कहलाता है। इसमें शिव जी की वरयात्रा और विवाह का हास्यरस में वर्णन है।
 
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इस युग का अर्जुनदास लिखित "रामविभा" नामक एक काव्यग्रंथ भी मिलता है तथा चैतन्यदासरचित "विष्णुगर्भ पुराण" और "निर्गुणमाहात्म्य" अलखपंथी या निर्गुण संप्रदाय के दो ग्रंथ भी पाए जाते हैं।
 
== मध्ययुग ==
इसके दो विभाग हैं-
 
(क) पूर्वमध्ययुग अथवा भक्तियुग तथा (ख) उत्तरमध्ययुग अथवा रीतियुग।
 
=== पूर्वमध्ययुग ===
इस युग में में पंचसखाओं के साहित्य की प्रधानता है। ये पंचसखा हैं - बलरामदास, जगन्नाथदास, यशोवंतदास, अनंतदास और अच्युतानंददास। चैतन्यदास के साथ सख्य स्थापित करने के कारण ये पंचसखा कहलाए। वे पंच शाखा भी कहलाते हैं। इनके उपास्य देवता थे पुरी के जगन्नाथ, जिनकी उपासना शून्य और कृष्ण के रूप में ज्ञानमिश्रा योग-योगप्रधान भक्ति तथा कायसाधना द्वारा की गई। पंचसखाओं में से प्रत्येक ने अनेक ग्रंथ लिखे, जिनमें से कुछ तो मुद्रित हैं, कुछ अमुद्रित और कुछ अप्राप्य भी।
 
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इसी युग में शिशुशंकरदास, कपिलेश्वरदास, हरिहरदास, देवदुर्लभदास, तथा प्रतापराय की क्रमश : "उषाभिलाष", "कपटकेलि", "चद्रावलिविलास", "रहस्यमंजरी" और "शशिसेणा" नामक कृतियाँ भी उपलब्ध हैं।
 
=== रीतियुग ===
इस युग में में पौराणिक और काल्पनिक दोनों प्रकार के काव्य हैं। नायिकाओं में सीता और राधा का नखशिख वर्णन किया गया है। इस युग का काव्य, शब्दालंकार, क्लिष्ट शब्दावली और श्रृंगाररस से पूर्ण है। काव्यलक्षण, नायक-नायिका-भेद आदि को विशेष महत्व दिया गया। उपेंद्रभंज ने इसको पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया, अत: इस युग का नाम भंजयुग पड़ गया, किंतु यह काल इसके पहले शुरू हो गया था। उपेंद्रभंज के पूर्व के कवि निम्नांकित हैं :
 
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इस क्रम में प्रधानतया और दो व्यक्ति पाए जाते हैं : (1) ब्रजनाथ बडजेना और (2) भीमभोई। ब्रजनाथ बडजेना ने "गुंडिचाविजे" नामक एक खोरता (हिंदी) काव्य भी लिखा था। उनके दो महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं : "समरतंरग" और "चतुरविनोद"। भीमभोई जन्मांध थे और जाति के कंध (आदिवासी) थे। वे निरक्षर थे, लेकिन उनके रचित "स्तुतिचिंतामणि", "ब्रह्मनिरूपण गीता" और अनके भजन पाए जाते हैं। उड़िया में वे अत्यंत प्रख्यात हैं।
 
== आधुनिक युग ==
यद्यपि ब्रिटिश काल से प्रारंभ होता है, किंतु अंग्रेजी का मोह होने के साथ ही साथ प्राचीन प्रांतीय साहित्य और संस्कृत से साहित्य पूरी तरह अलग नहीं हुआ। फारसी और हिंदी का प्रभाव भी थोड़ा बहुत मिलता है। इस काल के प्रधान कवि [[राधानाथ राय]] हैं। ये स्कूल इंस्पेक्टर थे। इनपर अंग्रेजी साहित्य का प्रभाव स्पष्ट है। इनके लिखे "पार्वती", "नंदिकेश्वरी", "ययातिकेशरी", आदि ऐतिहासिक काव्य हैं। "महामात्रा" प्रथम अमित्राक्षर छंद में लिखित महाकाव्य है, जिस पर मिल्टन का प्रभाव है। इन्होंने मेघदूत, वेणीसंहार और तुलसी पद्यावली का अनुवाद भी किया था। इनकी अनेक फुटकल रचानाएँ भी हैं। आधुनिक युग को कुछ लोग राधानाथ युग भी कहते हैं।
[[चित्र:Fakir Mohan.gif|right|300px|thumb|ओड़िया उपन्यास सम्राट '''फकीर मोहन सेनापति''']]
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इसके बाद '''प्रगतियुग''' या अत्याधुनिक युग आता है। सच्चिदानंद राउतराय इस युग के प्रसिद्ध लेखक हैं। इनकी रचनाओं में "पल्लीचित्र", "पांडुलिपि" आदि प्रधान हैं। आधुनिक समय में उपन्यासकार गोपीनाथ महांति, कान्हुचरण महांति, नित्यानंद महापात्र, कवि राधामोहन गडनायक, क्षुद्रगाल्पिक, गोदावरीश महापात्र आदि हैं।
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[ओड़िया भाषा]]