"कंचनजंघा": अवतरणों में अंतर
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| Photo = Kanchenjunga.JPG
| Caption = <small>चौदा फेरी, [[सिक्किम]] से कंचनजंघा के दर्शन</small>
| Elevation = {{convert|8586|m|ft|0}} <ref>Figures regarding the exact height of Kangchenjunga differ. Heights of {{convert|8598|m|ft|0}} and {{convert|8586|m|ft|0|abbr=on}} are often given. On official 1:50,000 Nepalese mapping, the lower height is given, so this is given on this page also.</ref> <br /><small>तृतीय स्थान</small>
| Location = {{flagicon|NEP}} [[Nepal]] {{flagicon|IND}} [[भारत]]
| Range = [[हिमालय]]
| Prominence = {{convert|3922|m|ft|0|abbr=on}} <small>[[List of peaks by prominence|२९ वां दर्जा]]</small>
| Coordinates = {{Coord|27|42|09|N|88|08|54|E|type:mountain|display=inline,title}}
| First ascent = २५ मई, १९५५<br />{{flagicon|UK}} जो ब्राउन<br />{{flagicon|UK}} जॉर्ज बैण्ड
| Easiest route = हिमनद/हिम/बर्फ़ क्लाइम्ब
| Listing = एट-थाउसैंडर<br />[[List of countries by highest point|देश का सर्वोच्च शिखर]]<br />[[Ultra prominent peak|अल्ट्रा]]
| pushpin_map = नेपाल
| pushpin_label_position = left
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}}
'''कंचनजंघा''' ([[नेपाली भाषा|नेपाली]]:कञ्चनजङ्घा ''Kanchanjaŋghā''), ([[लिम्बू]]: '''सेवालुंगमा''')
== नाम की उत्पत्ति ==
'''कंचनजंघा''' नाम की उत्पत्ति तिब्बती मूल के चार शब्दों से हुयी है, जिन्हें आमतौर पर कांग-छेन-दजों-ङ्गा या यांग-छेन-दजो-ङ्गा लिखा जाता है । [[सिक्किम]] में इसका अर्थ '''विशाल हिम की पाँच निधियाँ ''' लगाया जाता है । [[नेपाल]] में यह कुंभकरन लंगूर कहलाता है ।
== भौगोलिक स्थिति ==
यह विश्व तीसरा सबसे ऊंचा पहाड़ है । इसकी ऊंचाई 8,586 मीटर है । यह [[दार्जिलिंग]] से 74 की.मी. उत्तर -पश्चिमोत्तर में स्थित है । साथ ही यह
== पौराणिक कथाओं में ==
पौराणिक कथाओं और स्थानीय निवासियों के धार्मिक अनुष्ठानों में इस पर्वत का महत्वपूर्ण स्थान है । इसकी ढलान किसी प्राथमिक सर्वेक्षण से सदियों पहले चरवाहों और व्यापारियों के लिए जानी-पहचानी थी ।
== इतिहास ==
कंचनजंगा का पहला मानचित्र 19 वीं शताब्दी के मध्य में एक विद्वान अन्वेषणकर्ता रीनजिन नांगयाल ने इसका परिपथात्मक मानचित्र तैयार किया था । [[1848]] व [[1849]] में एक वनस्पतिशास्त्री सर जोजेफ हुकर इस क्षेत्र में आने वाले और इसका वर्णन करने वाले पहले यूरोपीय थे । [[1899]] में अन्वेषणकर्ता -पर्वतारोही डगलस फ्रेशफ़ील्ड ने इस पर्वत की परिक्रमा की । [[1905]] में एक एंग्लो-स्विस दल ने प्रस्तावित यालुंग घाटी मार्ग से जाने का प्रयास किया और इस अभियान में हिंसखलन होने से दल के चार सदस्यों की मृत्यु हो गयी ।
बाद में पर्वतारोहियों ने इस पर्वत समूह के अन्य हिस्सों की खोज की । [[1929]] और [[1931]] में पोल बोएर के नेतृत्व में एक बाबेरियाई अभियान दल ने जेमु की ओर से इसपर चढ़ाई का असफल प्रयास किया । [[1930]] में गुंटर वो डीहरेन फर्थ
== सन्दर्भ ==
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