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मानव और पशु अथवा पक्षी संयुक्त भारतीय कला का एक अभिप्राय। इसकी कल्पना अति प्राचीन है। शतपथ ब्राह्मण (7.5.2.32) में अश्वमुखी मानव शरीरवाले किन्नर का उल्लेख है। बौद्ध साहित्य में किन्नर की कल्पना मानवमुखी पक्षी के रूप में की गई है। मानसार में किन्नर के गरुड़मुखी, मानवशरीरी और पशुपदी रूप का वर्णन है। इस अभिप्राय का चित्रण भरहुत के अनेक उच्चित्रणों में हुआ है।
== पौराणिक ग्रन्थों और साहित्य में किन्नर ==
पौराणिक ग्रन्थों, वेदों-पुराणों और साहित्य तक में किन्नर हिमालय क्षेत्र में बसने वाली अति प्रतिष्ठित व महत्वपूर्ण आदिम जाति है जिसके वंशज वर्तमान जनजातीय जिला किन्नौर [http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A8%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A5%88%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B6] के निवासी माने जाते हैं। संविधान में भी इन्हें किन्नौरा और किन्नर से संबोधित किया गया है। किन्नौर वासियों को जब जनजाति का प्रमाण पत्र दिया जाता है तो उसमें स्पष्ट लिखा होता है – ‘the people of Kinnaur District belongs to Kinnaura or Kinnar Tribe which is recognized as Scheduled Tribe under the Scheduled Tribes List(modification) order 1956 and the State of Himachal Pradesh Act, 1970’.
नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा १२ खण्डों में प्रकाशित हिन्दी विश्वकोश(१९६३) के तीसरे खण्ड पृष्ठ-८ पर किन्नर की जो व्याख्या दी गई है वह इस प्रकार है-
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महापंडित [[राहुल सांकृत्यायन]] ने किन्नौर जिसे वे प्रमाण के साथ प्राचीन ‘किन्नर देश’ मानते हैं, इस क्षेत्र की अनेक यात्राएँ की हैं और कई पुस्तकें लिखी हैं। किन्नर देश और किन्नर जाति का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व समझने के लिए उनकी बहुचर्चित पुस्तकें ‘किन्नर देश’ और ‘हिमाचल’ है। उनके अनुसार ‘यह किन्नर देश है। किन्नर के लिए किंपुरुष शब्द भी संस्कृत में प्रयुक्त होता है, अतः इसी का नाम किंपुरुष या किंपुरुषवर्ष भी है। किन्नर या किंपुरुष देवताओं की एक योनि मानी जाती थी। किन्नर देशियों को आजकल किन्नौर में किन्नौरा कहते है। पहले किन्नौर या किन्नर क्षेत्र बहुत विस्तृत था। कश्मीर से पूर्व नेपाल तक प्रायः सारा ही पश्चिमी हिमालय तो निश्चित ही किन्नर जाति का निवास था। चन्द्रभागा(चनाव) नदी के तट पर आज भी किन्नौरी-भाषा बोली जाती है। सुत्तपटिक के ‘विमानवत्थु (ईसापूर्व द्वितीय तृतीय सदी) में लिखा है- “चन्द्रभागानदी तीरे अहोसिं किन्नर तदा” -जिससे स्पष्ट है कि पर्वतीय भाग के चनाव के तट
महाभारत के दिग्विजय पर्व में अर्जुन का किन्नरों के देश में जाने का वर्णन आता है। ‘पराक्रमी वीर अर्जुन धवलगिरि को लांघ कर द्रुमपुत्र के द्वारा सुरक्षित किम्पुरुष देश में गए जहाँ किन्नरों का वास था। उन्होंने क्षत्रिय का भारी संग्राम के द्वारा विनाश करके उस देश को जीता था। चन्द्र चक्रवती ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘लिटरेरी हिस्टरी आफ एन्शियंट इंडिया’ में लिखा है कि किन्नर कुल्लू घाटी, लाहुल और रामपुर में सतलुज के पश्चिमी किनारे पर तिब्बत की सीमा के साथ रहते हैं। अजन्ता के भित्ति चित्रों में गुहृयकों किरातों तथा किन्नरों के चित्र भी हैं। इन चित्रों का ऐतिहासिक महत्व हैं जो ईसा की तृतीय से अष्टम शताब्दी के मध्य की धार्मिक तथा सामाजिक झाँकी प्रस्तुत करते हैं। किन्नरों के वर्णन बौद्ध ब्रन्थों में भी आते हैं। चन्द किन्नर जातक में बोधिसत्व के हिमालय प्रदेश में किन्नर योनि में जन्म लेने की बात कही गयी है। इस सन्दर्भ में इस ग्रन्थ में किन्नर और किन्नरियों की कई कथाएँ वर्णित है।
महाकवि कालीदास ने अपने अमर ग्रन्थ कुमार सम्भव (प्रथम सर्ग, श्लोक ११, १४) में किन्नरों का मनोहारी वर्णन किया है जिसका हिन्दी अनुवाद है—‘जहाँ अपने नितम्बों और स्तनों के दुर्वह भार से पीड़त किन्नरियाँ अपनी स्वाभाविक मन्दगति को नहीं त्यागतीं यद्यपि मार्ग, जिस पर शिलाकार हिम जम गया है, उनकी अंगुलियों व एड़ियों को कष्ट दे रहा है।’ पुराणों में किन्नरों को दैवी गायक कहा गया है। वे कश्यप की सन्तान हैं और हिमालय में निवास करते हैं। वायुपुराण के अनुसार किन्नर अश्वमुखों के पुत्र थे। उनके अनेक गण थे और वे गायन और नृत्य में पारंगत थे। हिमालय में स्थित अनेक स्थान पर किन्नरों के लगभग सौ शहर थे। वहाँ की प्रजा बड़ी प्रसन्न तथा समृद्धशाली थी। इन राज्यों के अधिपति राजा द्रुम, सुग्रीव, सैन्य, भगदत आदि थे जो बहुत शक्तिशाली माने जाते थे। किन्नरों का हिमालय के बहुत बड़े क्षेत्रों पर अधिकार था। किन्नौर के गेजेटियर में भी किन्नर का विस्तार से ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उल्लेख किया गया है।
इसके अतिरिक्त अनेक विद्वानों और साहित्यकारों ने अपने शोधग्रन्थों, यात्रा-पुस्तकों, आलेखों और कविताओं में किन्नर देश और किन्नौर में रहने वाली किन्नर जनजाति का उल्लेख किया है। इनमें न केवल हिमाचल के विद्वान-लेखक शामिल है बल्कि देश-विदेश के लेखक भी हैं। पिछले दिनों किन्नौर निवासी शोधकर्ता व लेखक टेसी छेरिंग नेगी की दो पुस्तकें उल्लेखनीय है। पहली पुस्तक “किन्नरी सभ्यता और साहित्य” दिल्ली साहित्य अकादमी ने प्रकाशित की है। हाल ही में उनकी दूसरी पुस्तक भी प्रकाशित हुई है जिसका शीर्षक है “किन्नर देश का इतिहास”। इसका विमोचन मुख्यमन्त्री महोदय श्री वीरभद्र सिंह ने ठीक उसी दौरान किया जब मधुर भंडारकर की फिल्म पर प्रतिबंध लगा था। श्री शरभ नेगी की पुस्तक “हिमालय पुत्र किन्नरों की लोक गाथाएं” किन्नर लोक गाथाओं पर पहली प्रमाणिक पुस्तक है।
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आजकल हिजड़ों [http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE] के लिए भी किन्नर शब्द का प्रयोग किया जाता है ।
[[श्रेणी:भारत के लोग]]
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