"गाथा (अवेस्ता)": अवतरणों में अंतर

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[[अवेस्ता]] में भी '''[[गाथा]]''' का वही अर्थ है जो [[गाथा|वैदिक गाथा]] का है अर्थात् गेय [[मंत्र]] या गति का। ये संख्या में पांच हैं जिनके भीतर 17 मंत्र सम्मिलित माने जाते हैं। ये पांचों छंदों की दृष्टि से वर्गीकृत है और अपने आदि अक्षर के अनुसार विभिन्न नामों से विख्यात है। गाथा अवेस्ता का प्राचीनतम अंश है जो रचना की दृष्टि से भी अत्यंत महनीय मानी जाती है। इनके भीतर [[पारसी धर्म]] के सुधारक तथा प्रतिष्ठात्मक [[जरथुस्त्र]] मानवीय और ऐतिहासिक रूप में अपनी अभिव्यक्ति पाते हैं; यहाँ उनका यह काल्पनिक रूप, जो अवेस्ता के अन्य अंशों में प्रचुरता से उपलब्ध होता है, नितांत सत्ताहीन है। यहाँ वे ठोस जमीन पर चलनेवाले मानव हैं जिनमें जगत् के कार्यों के प्रति आशा निराशा, हर्ष विषाद की स्पष्ट छाया प्रतिबिंबित होती है। एक द्वितीय ईश्वर के प्रति उनकी आस्था नितांत दृढ़ है जो जीवन के गतिशील परिवर्तन में भी अपनी एकता तथा सत्ता दृढ़ता से बनाए रहता है।
 
== अवेस्ता के गाथा की भाषा ==
गाथा की भाषा अवेस्ता के अन्य भागों की भाषा से वाक्यविन्यास, शैली तथा छंद की दृष्टि से नितांत भिन्न है। विद्वानों ने अवेस्ता की भाषा को दो स्तरों मे विभक्त किया है:
 
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इनमें से प्रथम में प्राचीनतम भाषा का परिचय इन गाथाओं के अनुशीलन से ही मिलता है जो अपने वैयाकरण रूपसंपति में आर्ष हैं और इस प्रकार [[वैदिक संस्कृत]] से समानता रखती हैं। द्वितीय भाषा अवांतर काल में विकसित होनेवाली भाषा है जो सामान्य संस्कृत भाषा के समान कही जा सकती है। गाथा की शैली रोचक है। फलत: अवेस्ता के पिछले भागों की पुनरावृत्ति तथा समरसता के कारण उद्वेजक शैली से यह शैली नितांत भिन्न है। [[छंद]] भी वैदिक छंदों के समान ही प्राचीन हैं। विषय धर्मप्रधान होने पर भी पदों के रोचक विन्यास के कारण इन गाथाओं का साहित्यिक सौंदर्य कम नहीं है। नपे-तुले शब्दों में रचित होने के कारण ये गेय प्रतीत होती हैं। पिशल तथा गेल्डनर का मत है कि इन गाथाओं में तार्किक कार्य-कारण-संबंध का अभाव नहीं है। तथापि ये फुटकल हैं और जरथुस्त्र के उपदेशों का सार प्रस्तुत करनेवाले उनके साक्षात् वचन हैं जिन्हें उन्होंने अपने शिष्य, बाख्त्री (बैक्ट्रिया) के शासक राजा विश्ताश्प से कहा था। पैगंबर के अपने वचन होने से इनकी पवित्रता तथा महत्ता की कल्पना स्वत: की जा सकती है।
 
== वर्ण्य विषय ==
जरथुस्त्र ने इन गाथाओं में अनेक देवताओं की भावना की बड़ी निंदा की है तथा सर्वशक्तिमान् ईश्वर के, जिसे वे अहुरमज्द (असुर महान्) के अभिधान से पुकारते हैं, आदेश पर चलने के लिए पारसी प्रजा को आज्ञा दी है। वे [[एकेश्वरवादी]] थे - इतने पक्के कि उन्होंने उस सर्वशक्तिमान् के लिए अहुरमज्द नाम के अतिरिक्त अन्य नामों का सर्वथा निषेध किया है।