"थेरगाथा": अवतरणों में अंतर

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अधिकांश गाथाओं में सीधे निर्वाण के प्रति संकेत है। कुछ गाथाओं में साधकों की साधना को सफल बनाने में सहायक प्रेरणाओं का उल्लेख है। कुछ गाथाओं में परमपद को प्राप्त थेरों द्वारा ब्रह्मचारियों या जनसाधारण को दिए गए उपदेशों का भी उल्लेख है।
 
== परिचय ==
थेरगाथा में [[भगवान् बुद्ध]] द्वारा स्थापित संघ का एक सुंदर चित्र मिलता है। उसमें एक ओर दीनदुखियों की कुटियों से निकले साधारण कोटि के लोग थे; दूसरी ओर कपिलवस्तु, देवदह, वैशाली, राजगृह, श्रावस्ती आदि राजधानियों के राजमहलों और प्रासादों से निकले उच्च कोटि के लोग थे। तथागत की शरण में आकर वे सब एक हो गए थे। संघ में लौकिक धन, बल तथा पद का मान नहीं था। केवल शील, समाधि तथा प्रज्ञा का मान था। वे संसार की विषमताओं से परे हो आध्यात्मिक समता को प्राप्त हुए थे। इसी कारण एक ही स्वर में उनकी हृदयतंत्रियों से विमुक्तिसुख के मधुर गीत निकलते थे।
 
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संतसाहित्य में थेरगाथा का विशेष स्थान है। इन गाथाओं में वे महान् साधक अपने जीवन के अनुभव हमारे लिये छोड़ गए हैं। उनसे आर्यमार्ग के पथिक को बोधिचित्त के विकास के लिये, निमीलित धर्मचक्षु के उन्मीलन के लिये पर्याप्त प्रेरणा मिलती है।
 
== कुछ थेरों का उदाहरण ==
सत्यदर्शन से प्राप्त परमानंद की ओर संकेत करते हुए महाकस्सप थेर कहते हैं : "सम्यक् रूप से धर्म के दर्शन से (योगी को), जो आनंद प्राप्त होता है, वह पंच तूर्यों से भी संभव नहीं।"
 
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चित्तक थेर मोर की आवाज से उठकर गाते हैं : "नील ग्रीवा और शिखावाले मोर करवीय वन में गाते हैं। शीतल वायु से प्रफुल्लित हो मधुर गीत गानेवाले वे सोये हुए योगी को जगाते हैं।"
 
== इन्हें भी देखे ==
* [[थेरीगाथा]]
* [[थेरवाद]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.accesstoinsight.org/canon/sutta/khuddaka/theragatha/index.html The Theragatha] ([[Access to Insight]])
 
[[श्रेणी:बौद्ध धर्म]]