"घना पक्षी अभयारण्य": अवतरणों में अंतर

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सर्दी की ऋतु में सेंकडों वर्षों से करीब ३६५ प्रजातियों के प्रवासी पक्षी अफगानिस्तान, तुर्की, चीन और सुदूर साइबेरिया तक से हजारों किलोमीटर का सफर तय कर के घना पहुँचते आये हैं, इसका उल्लेख [[मुग़ल]] सम्राट [[बाबर]](February 23 [अन्य स्रोत फरवरी, 14] 1483 — जनवरी 5 [अन्य स्रोत दिसंबर 26, 1530] 1531)] के ग्रन्थ [[बाबरनामा]] में भी आता है.
 
[[Fileचित्र:गोल्डन बैक्ड वूड्पेकर.jpg|right|thumb|250px|गोल्डनबैक्ड वूड्पेकर : छाया : हे. शे. ]]
 
महान पक्षीविज्ञानी [[सालिम अली]] के अनुसार पक्षियों का यह अंतर्राष्ट्रीय प्रवास, एक अनसुलझी गुत्थी,'एक रहस्य' है.
शीतकाल में पक्षी विशेषज्ञों और पर्यावरण प्रेमियों के लिए ये जगह एक तरह से स्वर्ग बन जाती है, जब लगभग २३० से ज्यादा स्थानीय प्रजातियों के अलावा विदेशी परिंदे, जिनमें '''साइबेरियन क्रेन''' सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं, यहां निर्द्वन्द्व दाना चुगते, घोंसले बनाते, प्रजनन करते देखे जा सकते हैं.
 
== इतिहास ==
इस पक्षीविहार का निर्माण लगभग २५० वर्ष पहले किया गया था, जैसा ऊपर अंकित है, इसका नाम केवलादेव (शिव)मंदिर के नाम पर रखा गया था जो इसी पक्षी विहार के परिसर में स्थित है। प्राकृतिक ढाल होने के कारण, यहाँ वर्षा के दौरान अक्सर बाढ़ का सामना करना पड़ता था। इसलिए भरतपुर के शासक महाराज सूरजमल ने अपने शासन काल (१७२६ से १७६३ के दौरान ) यहाँ 'अजान बाँध' का निर्माण करवाया, जो दो नदियों गँभीरी और बाणगंगा के संगम पर बनवाया गया था।
 
संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किये जाने से पहले सन १८५० ईस्वी से रियासत काल में केवलादेव का इलाका भरतपुर राजाओं की निजी शिकारगाह हुआ करता था, जहाँ वे और उनके शाही मेहमान मुर्गाबियों का शिकार किया करते थे। अंग्रेज़ी शासन के दौरान कई वायसरायों और प्रशासकों ने यहां हजारों की तादाद में बत्तखों और मुर्गाबियों का संहार किया था. ''[[लोर्ड लिलिनथगो]] जैसे अंग्रेजों ने १९३८ में एक दिन की शूट में यहां चार हज़ार दो सौ तिहत्तर परिंदों को गोली का निशाना बनाया था, ये शर्मनाक तथ्य आज भी यहां अंकित पत्थर के एक शिलालेख पर अंकित है !''भारत की स्वतंत्रता के बाद भी १९७२ तक भरतपुर के पूर्व राजा को उनके क्षेत्र में शिकार करने की अनुमति थी, लेकिन १९८२ से उद्यान से घास काटने और हरा चारा लेने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया, जो यहाँ के किसानों, स्थानीय गुर्जर समुदाय और सरकार के बीच हिंसक झडपों का कारण बना क्यों कि अभयारण्य के भीतर और आसपास कई पुराने गांव आबाद हैं।
 
== भरतपुर पहुँचने के मार्ग ==
भरतपुर, आगरा के एकदम पास, बस ३५ किलोमीटर है, जहाँ के हवाई अड्डे से प्रतिदिन दिल्ली, बनारस, लखनऊ और मुम्बई की उड़ानें हैं. भरतपुर दिल्ली-बंबई मार्ग पर बड़ी लाइन की कई रेलगाड़ियों से जुड़ा है. राष्ट्रीय राजमार्ग समेत सड़क मार्गों से भरतपुर का संपर्क देश के कई भागों से है. यहां से दिल्ली (१८४ किलोमीटर) जयपुर(१७५) अलवर (११७) मथुरा (३९) के बीच नियमित बस सेवाएँ हैं.
 
=== घना का भूगोल ===
ब्रज की पौराणिक काल से चली आ रही 'चौरासी कोस परिक्रमा' का ही भाग है भरतपुर, जहाँ की अधिकांश भूमि समतल मैदानी है, पर चार प्रमुख नदियों- रूपारेल, बाणगंगा, गंभीरी और पार्वती के कारण इसका कुछ हिस्सा दलदली/कछारी भी है, और घना के विकास में इन बरसाती जल स्रोतों का बड़ा हाथ है।
 
भरतपुर जिले की उत्तरी सीमाएं हरियाणा के फरीदाबाद, दक्षिण में उत्तर प्रदेश के आगरा और धौलपुर, पश्चिम में करौली अलवर और दौसा जिलों से मिलती हैं। यहां की झीलों और बांधों- मोतीमहल, साही बांध, बारेन बाँध के अलावा बयाना तहसील के बांध बारेठा के आसपास स्वाभाविक तौर पर पक्षियों का निवास है। ९० किलोमीटर दूर करौली जिले के पांचना बांध से भी अभयारण्य को नियमित या अनियमित तौर पर जलापूर्ति की जाती रही है. मिट्टी आम तौर पर कछारी है। 27°10'उत्तर ,और 77°31'पूर्व के बीच स्थित यह अभयारण्य लगभग २९ वर्गकिलोमीटर में फैला हुआ है। साल भर सिर्फ एक से दो मीटर गहरा झील का पानी झील के सिर्फ १० वर्ग किलोमीटर में रहता है, पर इतने पानी से ही उत्पन्न जलीय वनस्पतियां मछलियों की बहुत बड़ी तादाद पैदा करती है, जिन्हें अपना भोजन बनाने के लिए कई प्रजातियों के जल-पक्षी अपना स्थाई डेरा इस अभयारण्य को बनाना पसंद करते हैं। हाँ,चिलचिलाती गर्मियों में घना का जंगल पूरा सूख जाता है, तब ट्यूबवेलों का सहारा लिया जाता है। परिंदों के दिन ग्रीष्म ऋतु में मुश्किल से निकलते हैं, पर वर्षा के आगमन के साथ ही रौनकें लौट आती हैं, और सारा वन, एक दफा फिर पक्षियों की कलरव से गूंजने लगता है!
 
== जलवायु ==
यहां की जलवायु शुष्क है, ग्रीष्म में बेहद गर्मी शीतकाल में बहुत ठण्ड रहती है। फरवरी-मार्च से जून तक का समय तापमान में लगातार बढोत्तरी का है। वर्षा का सालाना औसत ६६.३९ सेंटीमीटर है।
 
=== प्रमुख 'निवासी' और 'प्रवासी' पक्षी ===
अभयारण्य के पक्षियों की सूची में परिंदों के आमफहम नाम और लेटिन जीववैज्ञानिक नाम निम्न प्रकार हैं. (''इनका हिन्दीकरण शायद उचित न हो क्योंकि अंग्रेज़ी नाम ही बहुप्रचलित हैं जो हिन्दी नामों की बजाय पक्षीविज्ञान पुस्तकों में सरलता से देखे जा सकते हैं।)''''''''Common Name : Zoological Name''''''
 
'''Phasianidae: Francolins, Quails, Partridges and Pheasants'''
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Red-headed Bunting Emberiza bruniceps
 
== घना के अन्य जीव-जंतु ==
सेही, सियार, अजगर, खरगोश, हिरन,...............................................................................
 
== घना की वनस्पतियां ==
सवाना घास के अलावा यहां Cynodon dactylon तथा Dicanthium annulatum किस्म की घास की पैदावार और कई तरह की झाडियाँ कुदरती हैं, जो पक्षियों के लिए उपयुक्त आवास हैं । घना में कदम्ब (Neolamarckia cadamba)और देसी बबूल के अनगिनत पेड हैं, जो पक्षियों के घोंसले बनाने के लिए आदर्श हैं। बरसातों में घना बाढ के पानी से भर जाता है और तुरंत बाद सैंकडों तरह की वनस्पतियां पूरे इलाके में सर उठा कर खडी हो जाती हैं।
 
=== विशेषताएँ ===
 
=== इन्हें भी देखिये ===
 
=== सन्दर्भ ===
 
=== बाहरी कड़ियाँ ===
 
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