"चंपू": अवतरणों में अंतर

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'''चंपू''', [[संस्कृत]] काव्य का एक विशिष्ट प्रकार है। [[गद्य]] तथा पद्य मिश्रित काव्य को "चंपू" कहते हैं। इस मिश्रण का उचित विभाजन यह प्रतीत होता है कि भावात्मक विषयों का वर्णन पद्य के द्वारा तथा वर्णनात्मक विषयों का विवरण गद्य के द्वारा प्रस्तुत किया जाय। परंतु चंपूरचयिताओं ने इस मनोवैज्ञानिक वैशिष्ट्य पर विशेष ध्यान न देकर दोनों के संमिश्रण में अपनी स्वतंत्र इच्छा तथा वैयक्तिक अभिरुचि को ही महत्व दिया है। चम्पूकाव्य परंपरा का प्रारम्भ हमें [[अथर्व वेद]] से प्राप्त होता है।
 
== परिचय ==
गद्य-पद्य का संमिश्रण संस्कृत साहित्य में प्राचीन है, परंतु काव्यशैली में निबद्ध, "चंपू" की संज्ञा का अधिकारी गद्य पद्य का समंजस मिश्रण उतना प्राचीन नहीं माना जा सकता। गद्य पद्य की मिश्रित रचना [[कृष्ण यजुर्वेद|कृष्ण यजुर्वेदीय]] संहिताओं में उपलब्ध होती है। [[पालि]] [[जातक|जातकों]] में भी गद्य में कथानक तथा पद्य (गाथा) में मूल सूत्रात्मक संकेतों की उपलब्धि अवश्य होती है। परंतु काव्यतत्व से विरहित होने के कारण इन्हें हम "चंपू" का दृष्टांत किसी प्रकार नहीं मान सकते। [[हरिषेण]] रचित समुद्रगुप्त की [[प्रयागप्रशस्ति]] (समय 350 ई.) तथा बौद्ध कवि आयंशूर (चतुर्थ शती) प्रणीत जातकमाला चंपू के आदिम रूप माने जा सकते हैं, क्योंकि पहले में [[समुद्रगुप्त]] की दिग्विजय तथा दूसरे में 34 जातक विशुद्ध काव्यशैली का आश्रय लेकर अलंकृत गद्य पद्य में वर्णित हैं। प्रतीत होता है कि चंपू गद्यकाव्य का ही एक परिबृंहित रूप है और इसीलिये गद्यकाव्य के सुवर्णयुग (सप्तम अष्टम शती) के अनंतर नवम शती के आसपास इस काव्यरूप का उदय हुआ।
 
"https://hi.wikipedia.org/wiki/चंपू" से प्राप्त