"श्रीधराचार्य": अवतरणों में अंतर

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उनके बारे में हमारी जानकारी बहुत ही अल्प है। उनके समय और स्थान के बारे में निश्चित रुप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। किन्तु ऐसा अनुमान है कि उनका जीवनकाल ८७० ई से ९३० ई के बीच था; वे वर्तमान [[हुगली]] जिले में उत्पन्न हुए थे; उनके पिताजी का नाम बलदेवाचार्य औरा माताजी का नाम अच्चोका था।
 
== कृतियाँ तथा योगदान ==
इन्होंने 750 ई. के लगभग दो प्रसिद्ध पुस्तकें, [[त्रिशतिका]] (इसे 'पाटीगणितसार' भी कहते हैं) , [[पाटीगणित]] और [[गणितसार]], लिखीं। इन्होंने [[बीजगणित]] के अनेक महत्वपूर्ण आविष्कार किए। [[वर्ग समीकरण|वर्गात्मक समीकरण]] को पूर्ण वर्ग बनाकर हल करने का इनके द्वारा आविष्कृत नियम आज भी 'श्रीधर नियम' अथवा 'हिंदू नियम' के नाम से प्रचलित है।
 
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इससे प्रतीत होता है कि श्रीधर ने [[बीजगणित]] पर भी एक वृहद् ग्रन्थ की रचना की थी जो अब उपलब्ध नहीं है। भास्कर ने ही अपने बीजगणित में [[वर्ग समीकरण|वर्ग समीकरणों]] के हल के लिए श्रीधर के नियम को उद्धृत किया है -
 
'''चतुराहतवर्गसमै रुपैः पक्षद्वयं गुणयेत''' <br />
'''अव्यक्तवर्गरुयैर्युक्तौ पक्षौ ततो मूलम्‌'''
 
* अन्य सभी भारतीय गणिताचार्यों की तुलना में श्रीधराचार्य द्वारा प्रस्तुत '''शून्य''' की व्याख्या सर्वाधिक स्पष्ट है। उन्होने लिखा है- ''यदि किसी संख्या में शून्य जोड़ा जाता है तो योगफल उस संख्या के बराबर होता है; यदि किसी संख्या से शून्य घटाया जाता है तो परिणाम उस संख्या के बराबर ही होता है; यदि किसी शून्य को सकिसी भी संख्या से गुणा किया जाता है तो गुणनफल शून्य ही होगा। उन्होने इस बारे में कुछ भी नहीं कहा है कि किसी संख्या में शून्य से भाग करने पर क्या होगा।
 
* किसी संख्या को [[भिन्न]] (fraction) द्वारा भाजित करने के लिये उन्होने बताया है कि उस संख्या में उस भिन्न के व्युत्क्रम (reciprocal) से गुणा कर देना चाहिये।
 
* उन्होने बीजगणित के व्यावहारिक उपयोगों के बारे में लिखा है और बीजगणित को [[अंकगणित]] से अलग किया।
 
* वर्ग समीकरण का हल प्रस्तुत करने वाले आरम्भिक गणितज्ञों में श्रीधराचार्य का नाम अग्रणी है।
 
== वर्ग समीकरण हल करने की श्रीधराचार्य विधि ==
 
'''ax<sup>2</sup> + bx + c = 0'''
 
4a<sup>2</sup>x<sup>2</sup> + 4abx + 4ac = 0 ; '' ( 4a से गुणा करने पर ) ''
 
4a<sup>2</sup>x<sup>2</sup> + 4abx + 4ac + b<sup>2</sup> = 0 + b<sup>2</sup> ; ''(दोनों पक्षों में b<sup>2</sup> जोड़ने पर)''
 
(4a<sup>2</sup>x<sup>2</sup> + 4abx + b<sup>2</sup> ) + 4ac = b<sup>2</sup>
 
(2ax + b)(2ax + b) + 4ac = b<sup>2</sup>
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(2ax + b)<sup>2</sup> = b<sup>2</sup> - 4ac
 
(2ax + b)<sup>2</sup> = (√D)<sup>2</sup> ; ''( D = b<sup>2</sup>-4ac )''
 
अतः '''x''' के दो मूल (रूट) निम्नलिखित हैं-
 
पहला मूल α = (-b - √(b<sup>2</sup>-4ac)) / 2a
 
दूसरा मूल β = (-b + √(b<sup>2</sup>-4ac)) / 2a
 
Ġx2+y2'''''तिरछे अक्षर'''''
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[वर्ग समीकरण]]
* [[पूर्ण वर्ग बनाना]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.scribd.com/doc/80225294/Patiganita-Trishatika पाटीगणित] (सम्पूर्ण पाठ)
{{भारतीय गणित}}
 
[[श्रेणी:भारतीय गणितज्ञ]]
 
{{भारतीय गणित}}
 
[[en:Sridhara]]