"श्वसनीशोथ": अवतरणों में अंतर

छो Robot: Adding ms:Bronkitis
छो Bot: अंगराग परिवर्तन
पंक्ति 1:
[[चित्र:Acute-bronchitis.jpg|right|thumb|250px|तीव्र ब्रोंकाइटिस से ग्रस्त रोगी के फेफड़े की दशा]]
 
[[फेफड़ा|फेफड़ों]] के अंदर स्थित [[श्वसनी]] के श्लेष्मकला के प्रदाह (inflammation) को '''श्वसनीशोथ''' या '''ब्रोंकाइटिस''' (Bronchitis) कहते है। [[श्वासनली]] (Trachea) से फेफड़ों में वायु ले जाने वाली नलियों को [[श्वसनी]] (Bronchi / bronchus का बहुबचन) कहते हैं।
 
इसमें श्वसनी की दीवारें इन्फेक्शन व सूजन की वजह से अनावश्यक रूप से कमजोर हो जाती हैं जिसकी वजह से इनका आकार नलीनुमा न रहकर गुब्बारेनुमा या फिर सिलेंडरनुमा हो जाता है। सूजन के कारण सामान्य से अधिक [[बलगम]] बनता है। साथ ही ये दीवारें इकट्ठा हुए बलगम को बाहर ढकेलने में असमर्थ हो जाती हैं।
पंक्ति 7:
इसका परिणाम यह होता है कि श्वास की नलियों में गाढ़े बलगम का भयंकर जमाव हो जाता है, जो नलियों में रुकावट पैदा कर देता है। इस रुकावट की वजह से नलियों से जुड़ा हुआ फेफड़े का अंग बुरी तरह क्षतिग्रस्त व नष्ट होकर सिकुड़ जाता है या गुब्बारेनुमा होकर फूल जाता है। क्षतिग्रस्त भाग में स्थित फेफड़े को सप्लाई करने वाली धमनी व गिल्टी भी आकार में बड़ी हो जाती है। इन सबका मिला-जुला परिणाम यह होता है कि क्षतिग्रस्त फेफड़ा व श्वास नली अपना कार्य सुचारू रूप से नहीं कर पाते और मरीज के शरीर में तरह-तरह की जटिलताएँ पैदा हो जाती हैं।
 
== परिचय ==
श्वसनीशोथ दो प्रकार का होता है। यह तीव्र (acute) हो सकता है अथवा दीर्घकालिक (chronic)। दोनो के कारण, लक्षण और चिकित्सा अलग-अलग हैं।
 
नासिका से वायु के फेफड़े तक पहुँचाने के साथ ही वायु से जीवाणु तथा अन्य संक्रामी पदार्थों को, जो नासिका की श्लेष्माकला द्वारा नहीं रोके जा सकते, श्वासनली रोकती है। श्लेष्माकला की भीतरी सतह पक्ष्माभिकामय उपकला होती है। ये पक्ष्माभिका एक लहर के रूप में गतिशील होते हैं तथा बाह्य पदार्थों को ऊपर की ओर प्रेरित करते हैं। श्लेष्माग्रंथि, जो चिपचिपा पदार्थ अर्थात्‌ श्लेष्मा उत्पन्न करती हैं, उसमें जीवाणु तथा बह्य पदार्थ चिपक जाते हैं तथा पक्ष्माभिका की सहायता से बाहर आते हैं। खाँसी भी एक सुरक्षात्मक कार्य है। बाह्य पदार्थ जब श्लेष्माकला के संपर्क में आते हैं तो तंत्रिका या स्नायु को उत्तेजना प्राप्त होती है तथा मांसपेशियों के एकाएक संकुचन से वायु का एक तीव्र झोंका फेफड़े से बाहर निकलता है तथा निरर्थक पदार्थ को बाहर कर देता है।
 
== उग्र श्वसनीशोथ (Acute bronchitis) ==
{{मुख्य|उग्र श्वसनीशोथ}}
 
पंक्ति 19:
इन पदार्थों के क्षोभ द्वारा श्लेष्माकला की रुधिरनलिकाएँ फैल जाती हैं तथा उनसे रुधिर और द्रव पदार्थ बाहर निकल आते हैं। श्लेष्मस्राव से बाहर आते हैं। अत्यधिक क्षोभ होने पर कोशिकाओं की सतह नष्ट हो सकती है। अधिक श्लेष्मा एकत्र हो जाने पर श्वास की गति बढ़ जाती है।
 
=== लक्षण ===
बुखार, ठंड लगना, शरीर में दर्द, नाक से स्राव, वक्ष में कसावट महसूस होना, खाँसी पहले सूखी, फिर बलगम के साथ तथा साँस फूलना आदि। न्युमोनिया होने का भय रहता है।
 
=== चिकित्सा ===
विश्राम करना, द्रव भोजन, तथा कारण दूर करना। खाँसी की दवाइयाँ - यदि सूखी खाँसी है तो कोडीन जैसी दवाइयाँ, यदि कफ निकलता है तो अमोनियम कार्बोनेट, टिंचर इपिकाक इत्यादि कफोत्सारक ओषधियाँ देनी चाहिए। भाप में साँस लेना भी कफ निकलने में सहायता करता है। पेनिसिलिन, सल्फोनामाइड, तथा अन्य जीवाणुनाशक ओषधियों का प्रयोग भी आवश्यक है।
 
== दीर्घकालिक श्वसनीशोथ (Chronic bronchitis) ==
{{मुख्य|दीर्घकालिक श्वसनीशोथ}}
जब श्वसनी की श्लेष्माकला का प्रदाह अधिक समय तक बना रहता है तथा श्वसनी में अन्य दोष उत्पन्न कर देता है तो वह दीर्घकालिक श्वसनीशोथ कहलाता है।
पंक्ति 33:
इस रोग में श्वसनी की श्लेष्माकला को अत्यधिक क्षति पहुंचती है। कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं, पक्ष्माभिका समाप्त हो जाते हैं। श्वसनी टेढ़ी मेढ़ी हो जाती है तथा स्राव अधिक होता है। अन्य रोग, जैसे वातस्फीति, सूत्रण रोग, दमा आदि, हो सकते हैं।
 
=== लक्षण ===
दीर्घकालिक खाँसी तथा कफ। खाँसी ताप के आकस्मिक परिवर्तन तथा जाड़े में बढ़ जाती है। कभी कभी तीव्र श्वसनलीशोथ का रूप ले लेती है।
 
=== चिकित्सा ===
कफोत्सारक ओषधियाँ या खाँसी दूर करनेवाली ओषधियाँ आवश्यकतानुसार दी जाती हैं। यदि श्वसनलिकाएँ संकुचित हो जाती हैं, तो ऐफेड्रीन, ऐमिनोफाइलीन नामक दवाएँ दी जाती है। जब रोग तीव्र रूप धारण करे तो जीवाणुनाशक दवाओं का प्रयोग तथा जाड़े में गर्म, शुष्क वातावरण लाभप्रद होगा।