"संगीतरत्नाकर": अवतरणों में अंतर

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'''संगीतरत्नाकर''' (13 वीं सदी) [[शार्ङ्गदेव]] द्वारा रचित संगीतशास्त्रीय ग्रंथ है। यह [[भारत]] के सबसे महत्वपूर्ण संगीतशास्त्रीय ग्रंथों में से है जो [[हिन्दुस्तानी संगीत]] तथा [[कर्नाटक संगीत]] दोनो द्वारा समादृत है। इसे 'सप्ताध्यायी' भी कहते हैं क्योंकि इसमें सात अध्याय हैं।
 
इस ग्रंथ के प्रथम छःअध्याय - स्वरगताध्याय, रागविवेकाध्याय, प्रकीर्णकाध्याय, प्रबन्धाध्याय, तालाध्याय तथा वाद्याध्याय [[संगीत]] और वाद्ययंत्रों के बारे में हैं। इसका अन्तिम (सातवाँ) अध्याय 'नर्तनाध्याय' है जो [[नृत्य]] के बारे में है।
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शार्ङ्गदेव यादव राजा 'सिंहण' के राजदरबारी थे। सिंहण की राजधानी [[दौलताबाद]] के निकट [[देवगिरि]] थी।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://books.google.co.in/books?id=83v8Co2rqMkC&printsec=frontcover&source=gbs_atb#v=onepage&q&f=true संगीत रत्नाकर : एक अध्ययन] (गूगल पुस्तक ; लेखक - श्रीराज्येश्वर मिश्र)
 
[[en:Sangita Ratnakara]]
 
[[श्रेणी:संगीत]]
[[श्रेणी:संस्कृत ग्रंथ]]
 
[[en:Sangita Ratnakara]]