"चतुर्थ कल्प": अवतरणों में अंतर

छो r2.7.3) (रोबॉट: eu:Laugarren aro की जगह eu:Kuaternario जोड़ रहा है
छो Bot: अंगराग परिवर्तन
पंक्ति 3:
चतुर्थ कल्प का प्रारंभ तृतीय कल्प के प्लायोसीन (Pliocene) युग के बाद होता है। इसके अंतर्गत दो युग आते हैं : एक प्राचीन, जिसे प्लायस्टोसीन (Pleistocene) कहते हैं, और दूसरा आधुनिक, जिसे [[नूतन युग]] (Recent) कहते हैं। प्लायस्टोसीन नाम सर चार्ल्स लायल ने सन्‌ 1839 ई. में दिया था।
 
== विस्तार ==
इस कल्प के शैलसमूहों का विस्तार मुख्य रूप से उत्तरी गोलार्ध में मिलता है। इन सभी जगहों में तृतीय समुद्री निक्षेप, हिमनदज निक्षेप, पीली मिट्टी और नदीय निक्षेपों के ही शैलसमूह मिलते हैं।
 
== चतुर्थ कल्प की विशेषताएँ और भौमिकीय इतिहास ==
इस कल्प की विशेषताओं में हिमनदीय जलवायु और मानवीय विकास मुख्य रूप से आते हैं। इस समय ताप कम होने के कारण समस्त [[उत्तरी गोलार्ध]] बरफ से ढक गया था। इसके प्रमाणस्वरूप यूरोप, एशिया तथा उत्तरी अमरीका में अनेक हिमनदों के अस्तितव के संकेत मिलते हैं। भारत में यद्यपि हिमनदों के होने का कोई सीधा प्रमाण नहीं मिलता, तथापि ऐसे निष्कर्षीय प्रमाण मिलते हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि यहाँ की जलवायु भी अतिशीतोष्ण हो गई थी। भारत के उत्तरी भाग में इन हिमनदों के अस्तित्व के कोई स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं, किंतु दक्षिणी प्रायद्वीप में हिमनदों के अस्तित्व का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता। दक्षिणी प्रायद्वीप में अब भी ऊँची पहाड़ियों पर, जिनमें नीलगिरि, शेवराय, पलनीस और बिहार प्रदेश की पारसनाथ की पहाड़ियाँ हैं, ऐसे जीवजंतु और वनस्पतियाँ मिलती हैं जो आजकल भारत के उत्तरी प्रदेशों (कश्मीर, गढ़वाल इत्यादि) में ही सीमित हैं। विद्वानों का मत है कि शीतोष्ण जलवायु में रहनेवाले ये जीवजंतु किसी भी प्रकार से राजस्थान की गरम और रेतीली जलवायु से होकर इन पहाड़ियों पर नहीं पहुँच सकते थे। अत: उनके आगमन का समय चतुर्थ कल्प की हिमनदीय अवधि ही हो सकती है, जब राजस्थान की जलवायु शीतोष्ण थी ओर इस प्रदेश का कुछ भाग कहीं कहीं बरफ से ढका हुआ था।
 
== वर्गीकरण ==
जलवायु और मानवीय विकास के आधार पर इस कल्प का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जाता है :
 
पंक्ति 32:
गैंडा, शिवाथेरियम आदि।
 
== भारत में चतुर्थ कल्प के निक्षेप ==
चतुर्थ कल्प में भारत में पाए जानेवाले निक्षेपों में कश्मीर के हिमनदीय निक्षेप, जो वहाँ करेवा के नाम से विख्यात हैं, मुख्य हैं। इसके अतिरिक्त उच्च (अपर) सतलज और नर्मदाताप्ती की तलहटी मिट्टी, राजस्थान के रेत के पहाड़, पोटवार प्रदेश के निक्षेप, जो हिमनदों के गलने से लाई हुई मिट्टी और कंकड़ से बने हैं, पंजाब एवं सिंध की पीली मिट्टी और भारत के पूर्वी किनारे पर की मिट्टी भी इसी युग में निक्षिप्त हुई थी। इस प्रकार पूर्व कैंब्रियन के बाद इसी कल्प के निक्षेपों का विस्तार आता है।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.quaternary.stratigraphy.org.uk/ Subcommission on Quaternary Stratigraphy]
* [http://www.quaternary.stratigraphy.org.uk/correlation/chart.html Global correlation tables for the Quaternary]