[[imageचित्र:Selaginella-sp.jpg|thumb|right|संजीवनी पौधे के वंश की एक प्रजाति का चित्र]]'''संजीवनी''' एक वनस्पति का नाम है जिसका उपयोग चिकित्सा कार्य के लिये किया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम ''सेलाजिनेला ब्राहपटेर्सिस'' है और इसकी उत्पत्ति लगभग तीस अरब वर्ष पहले कार्बोनिफेरस युग से मानी जाती हैं। [[लखनऊ]] स्थित वनस्पति अनुसंधान संस्थान में संजीवनी बूटी के [[जीन]] की पहचान पर कार्य कर रहे पाँच वनस्पति वैज्ञानिको में से एक डॉ. पी.एन. खरे के अनुसार संजीवनी का सम्बंध [[पौधा|पौधों]] के टेरीडोफिया समूह से है जो पृथ्वी पर पैदा होने वाले संवहनी पौधे थे। उन्होंने बताया कि नमी नहीं मिलने पर संजीवनी मुरझाकर पपड़ी जैसी हो जाती है लेकिन इसके बावजूद यह जीवित रहती है और बाद में थोड़ी सी ही नमी मिलने पर यह फिर खिल जाती है। यह पत्थरों तथा शुष्क सतह पर भी उग सकती है।<ref name="Sah">Sah N K et al., 2005, Indian herb ‘Sanjeevani’ (Selaginella bryopteris) can promote growth and protect against heat shock and apoptotic activities of ultra violet and oxidative stress. [[Journal of Bioscience]] , 30, 499–505. http://www.ias.ac.in/jbiosci/sep2005/499.pdf</ref> इसके इसी गुण के कारण वैज्ञानिक इस बात की गहराई से जाँच कर रहे है कि आखिर संजीवनी में ऐसा कौन सा जीन पाया जाता है जो इसे अन्य पौधों से अलग और विषेष दर्जा प्रदान करता है। हालाँकि वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी असली पहचान भी काफी कठिन है क्योंकि जंगलों में इसके समान ही अनेक ऐसे पौधे और वनस्पतियाँ उगती है जिनसे आसानी से धोखा खाया जा सकता है। मगर कहा जाता है कि चार इंच के आकार वाली संजीवनी लम्बाई में बढ़ने के बजाए सतह पर फैलती है।
यह उत्तरप्रदेश उत्तराखंड और उड़ीसा सहित भारत के लगभग सभी राज्यों में पाई जाती है। [[बाबा रामदेव]] के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने संजीवनी को द्रोणगिरी की पहाड़ियों पर १५,००० फुट की ऊँचाई पर भी पाया।<ref>{{cite web |url= http://khabar.josh18.com/news/3921/9|title=पतंजलि पीठ का दावा, मिल गई संजीवनी बूटी