"संधि (शरीररचना)": अवतरणों में अंतर

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== संधियों के प्रकार ==
शरीर में विशेषकर तीन प्रकार की संधियाँ पाई जाती हैं: अचल संधि, अर्धचल संधि तथा चल संधि।<br />
=== अचल संधि ===
इन संधियों में अस्थियों के संधिपृष्ठों का संयोग हो जाता है। दोनों अस्थियों के बीच कुछ भी अंतर नहीं होता। इस कारण अस्थियों के संगम स्थान पर किसी प्रकार की गति नहीं हो पाती। दोनों अस्थियाँ तंतु ऊतक द्वारा आपस में जुड़ी रहती हैं। इन संधियों में तीन श्रेणियाँ पाई जाती हैं :
:* (क) सीवनी ( Sutures ) में अस्थियाँ अपने कोरों द्वारा आपस में मिली रहती हैं। यह केवल कपालास्थियों में पाया जाता है।
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:* (ग) तांतव सांध ( Syndesmosis ) में अस्थियों के पृष्ठ अस्थ्यांतरिक स्नायु के द्वारा आपस में जुड़े रहते हैं।
 
=== अर्धचल संधि ===
इन संधियों में अस्थियों के बीच में उपास्थि ( cartilage ) रहती है तथा गति कम होती है। इस श्रेणी में दो भेद पाए जाते हैं।
:* (क) उपास्थि संधि ( Synchodrosis ) में उपास्थि कुछ समय के बाद अस्थि में परिणत हो जाती है और अस्थियों के सिरे एक दूसरे के साथ पूर्णतया जुड़ जाते हैं। पश्चात्कपाल के तलभाग के बीच में इसी प्रकार की संधि होती है। इन संधियों में कुछ भी गति नहीं होती।
:* (ख) तंतूपास्थि संधि ( symphysis ) में अस्थियों के सिरों के बीच में रहनेवाली उपास्थि का शोषण नहीं होता। यह उपास्थि दोनों अस्थियों को एक दूसरे से मिलाए रहती है। उपास्थि के अतिरिक्त कुछ स्नायुएँ भी अस्थियों को जोड़े रहती हैं। इसी कारण इन संधियों में कुछ गति होती है। कशेरुकों के बीच की संधि इसी प्रकार की है।
 
=== चल संधियाँ ===
इन संधियों की गति अबाध होती है। इनमें निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं :
:* इन संधियों में गतियों की बहुरूपता, जिससे सब दिशाओं, दो दिशाओं, एक दिशा, या केवल अक्षों पर ही गति होती है;
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6. '''सरल संधि''' (Plain Joint) - इसके पृष्ठ इस प्रकार ढले होते हैं और स्नायु इत्यादि की स्थिति ऐसी होती है कि अस्थियाँ इधर-उधर कुछ ही सरक सकती है, जैसे कशेरुका संधि।
 
== संधियों की रचना ==
शरीर में संधियों का प्रयोजन गति होता है। इसलिए इनकी रचना भी इस प्रकार की है कि अस्थियाँ गति कर सकें और साथ ही अपने स्थान से च्युत भी न हों। प्रत्येक संधि पर एक तंतुक या स्नायविक कोशिका चढ़ी रहती है, जो संपूर्ण संधियों को ढकती हुई संधि में भाग लेने वाली अस्थियों के सिरों पर लगी रहती है। इस तंतुस्तर के विशेष भागों का विशेष विकास हो जाता है और वे अधिक दृढ हो जाते हैं। इन भागों को स्नायु कहते हैं, जो भिन्न भिन्न संधियों में भिन्न भिन्न संख्या में होती है। तंतुस्तर के भीतर स्नेहकस्तर होता है, जो अस्थियों के ऊपर तक पहुँचकर उन्हें ढक लेता है। जिन संधियों के भीतर संघायक चक्रिका ( articular dise ) रहती है, वहाँ स्नेहक स्तर की एक परत सघायंक चक्रिका के ऊपर भी फैली होती है, जिससे स्नेहक स्तर तथा संघायक चक्रिका के बीच में, स्नेहक कला की खाली में, स्नेहक द्रव्य उपस्थित हो जाता है। यह स्नेहक द्रव्य संधिस्थित अस्थि के भागों को चिकना रखता है और उनको रगड़ से बचाता है।