छो r2.7.2+) (Robot: Adding mg:Darjeeling
छो Bot: अंगराग परिवर्तन
पंक्ति 28:
दार्जीलिंग शब्द की उत्त्पत्ति दो [[तिब्बती भाषा|तिब्बती]] शब्दौं, दोर्जे (बज्र) और लिंग (स्थान) से हुवा है। इस का अर्थ "बज्रका स्थान है।" <ref name=name>{{cite web
| publisher=Neptune Tours & Travels | url=http://www.exploreindiatours.com/eastern-himalayas.htm | title=Eastern Himalayas DARJEELING : The Queen of Hills | accessdate=2006-05-01
}}</ref> भारत मै [[बेलायती शासन]] के दौरान दार्जीलिंग की टेम्परेट मौसम के कारण से इस जगह को [[हिल स्टेसन]] बनाया गया। बेलायती रेसिडेन्ट्स यहां ग्रीष्म मौसम के गर्मी से छुट्कारा पाने के लिए आते थे।
 
दार्जीलिंग अन्तराष्ट्रिय स्तर पर यहां की [[दार्जीलिंग चाय]] के लिए प्रसिद्ध है। दार्जीलिंग की [[दार्जीलिंग हिमालयन् रेल्वे]] एक [[युनेस्को]] विश्व सम्पदा स्थल तथा प्रसिद्ध स्थल है। यहां की चाय खेती १८०० की मध्य से सुरु हुवा था। यहां की चाय उत्पादकौं ने काली चाय और फ़र्मेन्टिंग प्रविधि का एक समिश्रण तयार किया है जो विश्व के सर्वोत्कृष्ट मै एक है। <ref name=teabest>{{cite news
|url = http://www.deccanherald.com/deccanherald/jun172005/living1150492005616.asp |title = Champagne among teas |work = Deccan Herald |publisher = The Printers (Mysore) Private Ltd. |date = 17 June 2005 |accessdate =2006-07-18 }}</ref> दार्जीलिंग हिमालयन रेल्वे जो दार्जीलिंग नगर को समथर स्थल से जोड्ता है, को विश्व सम्पदा स्थल १९९९ मै घोषित किया गया था। यह वाष्प से संचालित यन्त्र भारत मै ही बहुत कम देख्ने को मिलता है ।
 
पंक्ति 36:
 
== परिचय ==
[[Fileचित्र:Darjeeling St. Andrew's Church.jpg|thumb|250px|St. Andrew's Church, Darjeeling. Built- 1843, Rebuilt- 1873]]
इस स्‍थान की खोज उस समय हुई जब आंग्‍ल-नेपाल युद्ध के दौरान एक ब्रिटिश सैनिक टुक‍ड़ी सिक्किम जाने के लिए छोटा रास्‍ता तलाश रही थी। इस रास्‍ते से सिक्‍िकम तक आसान पहुंच के कारण यह स्‍थान ब्रिटिशों के लिए रणनीतिक रुप से काफी महत्‍वपूर्ण था। इसके अलावा यह स्‍थान प्राकृतिक रुप से भी काफी संपन्‍न था। यहां का ठण्‍डा वातावरण तथा बर्फबारी अंग्रेजों के मुफीद थी। इस कारण ब्रिटिश लोग यहां धीरे-धीरे बसने लगे।
 
प्रारंभ में दार्जिलिंग सिक्किम का एक भाग था। बाद में भूटान ने इस पर कब्‍जा कर लिया। लेकिन कुछ समय बाद सिक्किम ने इस पर पुन: कब्‍जा कर लिया। परंतु 18वीं शताब्‍दी में पुन: इसे नेपाल के हाथों गवां दिया। किन्‍तु नेपाल भी इस पर ज्‍यादा समय तक अधिकार नहीं रख पाया। 1817 ई. में हुए आंग्‍ल-नेपाल में हार के बाद नेपाल को इसे ईस्‍ट इंडिया कंपनी को सौंपना पड़ा।
 
अपने रणनीतिक महत्‍व तथा तत्‍कालीन राजनीतिक स्थिति के कारण 1840 तथा 50 के दशक में दार्जिलिंग एक युद्ध स्‍थल के रुप में परिणत हो गया था। उस समय यह जगह विभिन्‍न देशों के शक्‍ित प्रदर्शन का स्‍थल बन चुका था। पहले तिब्‍बत के लोग यहां आए। उसके बाद यूरोपियन लोग आए। इसके बाद रुसी लोग यहां बसे। इन सबको अफगानिस्‍तान के अमीर ने यहां से भगाया। यह राजनीतिक अस्थिरता तभी समाप्‍त हुई जब अफगानिस्‍तान का अमीर अंगेजों से हुए युद्ध में हार गया। इसके बाद से इस पर अंग्रेजों का कब्‍जा था। बाद में यह जापानियों, कुमितांग तथा सुभाषचंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी की भी कर्मस्‍थली बना। स्‍वतंत्रता के बाद ल्‍हासा से भागे हुए बौद्ध भिक्षु यहां आकर बस गए।
पंक्ति 56:
 
=== माकडोग मठ ===
यह मठ चौरास्‍ता से तीन किलोमीटर की दूरी पर आलूबरी गांव में स्थित है। यह मठ बौद्ध धर्म के योलमोवा संप्रदाय से संबंधित है। इस मठ की स्‍थापना श्री संगे लामा ने की थी। संगे लामा योलमोवा संप्रदाय के प्रमुख थे। यह एक छोटा सा सम्‍प्रदाय है जो पहले नेपाल के पूवोत्तर भाग में रहता था। लेकिन बाद में इस सम्‍प्रदाय के लोग दार्जिलिंग में आकर बस गए। इस मठ का निर्माण कार्य 1914 ई. में पूरा हुआ था। इस मठ में योलमोवा सम्‍प्रदाय के लोगों के सामाजिक, सांस्‍‍कृतिक, धार्मिक पहचान को दर्शाने का पूरा प्रयास किया गया है।
=== जापानी मंदिर (पीस पैगोडा) ===
विश्‍व में शांति लाने के लिए इस स्‍तूप की स्‍थापना फूजी गुरु जो कि महात्‍मा गांधी के मित्र थे ने की थी। भारत में कुल छ: शांति स्‍तूप हैं। निप्‍पोजन मायोजी बौद्ध मंदिर जो कि दार्जिलिंग में है भी इनमें से एक है। इस मंदिर का निर्माण कार्य 1972 ई. में शुरु हुआ था। यह मंदिर 1 नवंबर 1992 ई. को आम लोगों के लिए खोला गया। इस मंदिर से पूरे दार्जिलिंग और कंचनजंघा श्रेणी का अति सुंदर नजारा दिखता है।
 
=== टाइगर हिल ===
टाइगर हिल का मुख्‍य आनंद इस पर चढ़ाई करने में है। आपको हर सुबह पर्यटक इस पर चढ़ाई करते हुए मिल जाएंगे। इसी के पास कंचनजंघा चोटी है। 1838 से 1849 ई. तक इसे ही विश्‍व की सबसे ऊंची चोटी माना जाता था। लेकिन 1856 ई. में करवाए गए सर्वेक्षण से यह स्‍पष्‍ट हुआ कि कंचनजंघा नहीं बल्कि नेपाल का सागरमाथा जिसे अंगेजों ने एवरेस्‍ट का नाम दिया था, विश्‍व की सबसे ऊंची चोटी है। अगर आप भाग्‍यशाली हैं तो आपको टाइगर हिल से कंजनजंघा तथा एवरेस्‍ट दोनों चाटियों को देख सकते हैं। इन दोनों चोटियों की ऊंचाई में मात्र 827 फीट का अंतर है। वर्तमान में कंचनजंघा विश्‍व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है। कंचनजंघा को सबसे रोमांटिक माउंटेन की उपाधि से नवाजा गया है। इसकी सुंदरता के कारण पर्यटकों ने इसे इस उपाधि से नवाजा है। इस चोटी की सुंदरता पर कई कविताएं लिखी जा चुकी हैं। इसके अलावा सत्‍यजीत राय की फिल्‍मों में इस चोटी को कई बार दिखाया जा चुका है।
;शुल्‍क
केवल देखने के लिए नि: शुल्‍क
टावर पर चढ़ने का शुल्‍क 10 रु.
टावर पर बैठने का शुल्‍क 30 रु.
यहां तक आप जीप द्वारा जा सकते हैं। डार्जिलिंग से यहां तक जाने और वापस जाने का किराया 65 से 70 रु. के बीच है।
 
=== घूम मठ (जेलूग्‍पा) ===
टाइगर हिल के निकट ईगा चोइलिंग तिब्‍बतियन मठ है। यह मठ जेलूग्‍पा संप्रदाय से संबंधित है। इस मठ को ही घूम मठ के नाम से जाना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार इस मठ की स्‍थापना धार्मिक कार्यो के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक बैठकों के लिए की गई थी।
 
इस मठ की स्‍थापना 1850 ई. में एक मंगोलियन भिक्षु लामा शेरपा याल्‍तसू द्वारा की गई थी। याल्‍तसू अपने धार्मिक इच्‍छाओं की पूर्त्ति के लिए 1820 ई. के करीब भारत में आए थे। इस मठ में 1918 ई. में बुद्ध की 15 फीट ऊंची मूर्त्ति स्‍थापित की गई थी। उस समय इस मूर्त्ति को बनाने पर 25000 रु. का खर्च आया था। यह मूर्त्ति एक कीमती पत्‍थर का बना हुआ है और इसपर सोने की कलई की गई है। इस मठ में बहुमूल्‍य ग्रंथों का संग्रह भी है। ये ग्रंथ संस्‍कृत से तिब्‍बतीयन भाषा में अनुवादित हैं। इन ग्रंथों में कालीदास की मेघदूत भी शामिल है। हिल कार्ट रोड के निकट समतेन चोलिंग द्वारा स्‍थापित एक और जेलूग्‍पा मठ है।
पंक्ति 79:
 
यहां का मखाला मंदिर काफी आकर्षक है। यह मंदिर उसी जगह स्‍थापित है जहां भूटिया-बस्‍ती-मठ प्रारंभ में बना था। इस मंदिर को भी अवश्‍य घूमना चाहिए।
समय: सभी दिन खुला। केवल मठ के बाहर फोटोग्राफी की अनुमति है।
 
=== तेंजिंगस लेगेसी ===
हिमालय माउंटेनिंग संस्‍थान की स्‍थापना 1954 ई. में की गई थी। ज्ञातव्‍य हो कि 1953 ई. में पहली बार हिमालय को फतह किया गया था। तेंजिंग कई वर्षों तक इस संस्‍थान के निदेशक रहे। यहां एक माउंटेनिंग संग्रहालय भी है। इस संग्रहालय में हिमालय पर चढाई के लिए किए गए कई एतिहासिक अभियानों से संबंधित वस्‍तुओं को रखा गया है। इस संग्रहालय की एक गैलेरी को एवरेस्‍ट संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। इस गैलेरी में एवरेस्‍टे से संबंधित वस्‍तुओं को रखा गया है। इस संस्‍थान में पर्वतारोहण का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
 
प्रवेश शुल्‍क: 25 रु.(इसी में जैविक उद्यान का प्रवेश शुल्‍क भी शामिल है)
टेली: 0354-2270158
समय: सुबह 10 बजे से शाम 4:30 बजे तक (बीच में आधा घण्‍टा बंद)। बृहस्‍पतिवार बंद।
 
=== जैविक उद्यान ===
पंक्ति 96:
इस वानस्‍पतिक उद्यान के निकट ही नेचुरल हिस्‍ट्री म्‍यूजियम है। इस म्‍यूजियम की स्‍थापना 1903 ई. में की गई थी। यहां चिडि़यों, सरीसृप, जंतुओं तथा कीट-पतंगो के विभिन्‍न किस्‍मों को संरक्षत‍ि अवस्‍था में रखा गया है।
 
समय: सुबह 10 बजे से शाम 4: 30 बजे तक। बृहस्‍पतिवार बंद।
 
=== तिब्‍बतियन रिफ्यूजी कैंप ===
तिब्‍बतियन रिफ्यूजी स्‍वयं सहयता केंद्र (टेली: 0354-2252552) चौरास्‍ता से 45 मिनट की पैदल दूरी पर स्थित है। इस कैंप की स्‍थापना 1959 ई. में की गई थी। इससे एक वर्ष पहले 1958 ईं में दलाई लामा ने भारत से शरण मांगा था। इसी कैंप में 13वें दलाई लामा (वर्तमान में14 वें दलाई लामा हैं) ने 1910 से 1912 तक अपना निर्वासन का समय व्‍यतीत किया था। 13वें दलाई लामा जिस भवन में रहते थे वह भवन आज भग्‍नावस्‍था में है।
 
आज यह रिफ्यूजी कैंप 650 तिब्‍बतियन परिवारों का आश्रय स्‍थल है। ये तिब्‍बतियन लोग यहां विभिन्‍न प्रकार के सामान बेचते हैं। इन सामानों में कारपेट, ऊनी कपड़े, लकड़ी की कलाकृतियां, धातु के बने खिलौन शामिल हैं। लेकिन अगर आप इस रिफ्यूजी कैंप घूमने का पूरा आनन्‍द लेना चाहते हैं तो इन सामानों को बनाने के कार्यशाला को जरुर देखें। यह कार्यशाला पर्यटकों के लिए खुली रहती है।
 
=== ट्वॉय ट्रेन ===
[[चित्र:Agony point 1921.jpg|right|thumb|300px|१९२१ मै दार्जीलिंग हिमालयन् रेल्वे]]
इस अनोखे ट्रेन का निर्माण 19वीं शताब्‍दी के उतरार्द्ध में हुआ था। डार्जिलिंग हिमालयन रेलमार्ग, इंजीनियरिंग का एक आश्‍चर्यजनक नमूना है। यह रेलमार्ग 70 किलोमीटर लंबा है। यह पूरा रेलखण्‍ड समुद्र तल से 7546 फीट ऊंचाई पर स्थित है। इस रेलखण्‍ड के निर्माण में इंजीनियरों को काफी मेहनत करनी पड़ी थी। यह रेलखण्‍ड कई टेढ़े-मेढ़े रास्‍तों त‍था वृताकार मार्गो से होकर गुजरता है। लेकिन इस रेलखण्‍ड का सबसे सुंदर भाग बताशिया लूप है। इस जगह रेलखण्‍ड आठ अंक के आकार में हो जाती है।
 
अगर आप ट्रेन से पूरे डार्जिलिंग को नहीं घूमना चाहते हैं तो आप इस ट्रेन से डार्जिलिंग स्‍टेशन से घूम मठ तक जा सकते हैं। इस ट्रेन से सफर करते हुए आप इसके चारों ओर के प्राकृतिक नजारों का लुफ्त ले सकते हैं। इस ट्रेन पर यात्रा करने के लिए या तो बहुत सुबह जाएं या देर शाम को। अन्‍य समय यहां काफी भीड़-भाड़ रहती है।
 
=== चाय उद्यान ===
डार्जिलिंग एक समय मसालों के लिए प्रसिद्ध था। चाय के लिए ही डार्जिलिंग विश्‍व स्‍तर पर जाना जाता है। डॉ. कैम्‍पबेल जो कि डार्जिलिंग में ईस्‍ट इंडिया कंपनी द्वारा नियुक्‍त पहले निरीक्षक थे, पहली बार लगभग 1830 या 40 के दशक में अपने बाग में चाय के बीज को रोपा था। ईसाई धर्मप्रचारक बारेनस बंधुओं ने 1880 के दशक में औसत आकार के चाय के पौधों को रोपा था। बारेन बंधुओं ने इस दिशा में काफी काम किया था। बारेन बंधओं द्वारा लगाया गया चाय उद्यान वर्तमान में बैनुकवर्ण चाय उद्यान ( टेली: 0354-2276712) के नाम से जाना जाता है।
 
चाय का पहला बीज जो कि चाइनिज झाड़ी का था कुमाऊं हिल से लाया गया था। लेकिन समय के साथ यह डार्जिलिंग चाय के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1886 ई. में टी. टी. कॉपर ने यह अनुमान लगाया कि तिब्‍बत में हर साल 60,00,000&nbsp;lb चाइनिज चाय का उपभोग होता था। इसका उत्‍पादन मुख्‍यत: सेजहवान प्रांत में होता था। कॉपर का विचार था कि अगर तिब्‍बत के लोग चाइनिज चाय की जगह भारत के चाय का उपयोग करें तो भारत को एक बहुत मूल्‍यावान बाजार प्राप्‍त होगा। इसके बाद का इतिहास सभी को मालूम ही है।
 
स्‍थानीय मिट्टी तथा हिमालयी हवा के कारण डार्जिलिंग चाय की गणवता उत्तम कोटि की होती है। वर्तमान में डार्जिलिंग में तथा इसके आसपास लगभग 87 चाय उद्यान हैं। इन उद्यानों में लगभग 50000 लोगों को काम मिला हुआ है। प्रत्‍येक चाय उद्यान का अपना-अपना इतिहास है। इसी तरह प्रत्‍येक चाय उद्यान के चाय की किस्‍म अलग-अलग होती है। लेकिन ये चाय सामूहिक रुप से ''डार्जिलिंग चाय' के नाम से जाना जाता है। इन उद्यानों को घूमने का सबसे अच्‍छा समय ग्रीष्‍म काल है जब चाय की पत्तियों को तोड़ा जाता है। हैपी-वैली-चाय उद्यान (टेली: 2252405) जो कि शहर से 3 किलोमीटर की दूरी पर है, आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां आप मजदूरों को चाय की पत्तियों को तोड़ते हुए देख सकते हैं। आप ताजी पत्तियों को चाय में परिवर्तित होते हुए भी देख सकते हैं। लेकिन चाय उद्यान घूमने के लिए इन उद्यान के प्रबंधकों को पहले से सूचना देना जरुरी होता है।
 
== चाय ==
नि:सन्‍देह यहां से खरीदारी के लिए सबसे बढि़या वस्‍तु चाय है। यहां आपको कई प्रकार के चाय मिल जाएंगे। लेकिन उत्तम किस्‍म का चाय आमतौर पर निर्यात कर दिया जाता है। अगर आपको उत्तम किस्‍म की चाय मिल भी गई तो इसकी कीमत 500 से 2000 रु. प्रति किलो तक की होती है। सही कीमत पर अच्‍छी किस्‍म का चाय खरीदने के लिए आप नाथमुलाज माल जा सकते हैं।
 
चाय के अतिरिक्‍त दार्जिलिंग में हस्‍तशिल्‍प का अच्‍छा सामान भी मिलता है। हस्‍तशिल्‍प के लिए यहां का सबसे प्रसिद्ध दुकान 'हबीब मलिक एंड संस' (टेली: 2254109) है जोकि चौरास्‍ता या नेहरु रोड के निकट स्थित है। इस दुकान की स्‍थापना 1890 ई. में हुई थी। यहां आपको अच्‍छे किस्‍म की पेंटिग भी मिल जाएगी। इस दुकान के अलावा आप 'ईस्‍टर्न आर्ट' (टेली: 2252917) जोकि चौरास्‍ता के ही नजदीक स्थित है से भी हस्‍तशिल्‍प खरीद सकते हैं।
नोट: रविवार को दुकाने बंद रहती हैं।
 
पंक्ति 130:
 
;सड़क मार्ग:
यह शहर सिलीगुड़ी से सड़क मार्ग से भी अच्‍छी तरह जुड़ा हुआ है। दार्जिलिंग सड़क मार्ग से सिलीगुड़ी से 2 घण्‍टे की दूरी पर स्थित है। कलकत्ता से सिलीगुड़ी के लिए बहुत सी सरकारी और निजी बसें चलती है।
 
== इतिहास ==
{{main|दार्जीलिंग का इतिहास}}
दार्जीलिंग की इतिहास [[नेपाल]], [[भुटान]], [[सिक्किम]] और [[बंगाल]] से जुडा हुवा है। दार्जीलिंग शब्द तिब्बती भाषा के दो शब्द ''दोर्जे'', जिसका अर्थ ओला या उपल होता है, तथा ''लिंग'' जिसका अर्थ स्थान होता है, से मिलकर बना है । इसका शाब्दिक अर्थ हुआ ''उपलवृष्टि वाली जगह'' जो इसके अपेक्षाकृत ठंडे वातावरण का चित्र प्रस्तुत करता है । १९वी शताब्दी के पूर्व तक इस जगह पर नेपाली और सिक्किमी राज्य राज करते थे,<ref name=urbanmanagement>{{cite web
| last =Khawas | first =Vimal | year =2003 | url = http://www.mtnforum.org/resources/library/khawv03e.htm | title = Urban Management in Darjeeling Himalaya: A Case Study of Darjeeling Municipality. | publisher = The Mountain Forum | accessdate = 2006-05-01 }} Now available in the [[Internet Archive]] in this [http://web.archive.org/web/20041020031749/http://www.mtnforum.org/resources/library/khawv03e.htm URL] (accessed on [[7 June]] [[2006]])</ref> with settlement consisting of a few villages of [[Lepcha]] woodspeople.<ref name=darjteabbc>{{cite web
| url = http://212.58.224.36/dna/ww2/A4056284 | title = Darjeeling Tea | accessdate = 2006-08-17 | date = 2005-05-12 | publisher = [[h2g2]], BBC }}</ref> १८२८ मे एक बेलायती इस्ट इन्डिया कम्पनी की अफ़सरौं की टुकडी ने सिक्किम जाते समय दार्जीलिंग पहुंच गए और इस जगह मै वेलायती सेना के लिए एक स्यानिटरियम बनाने का संकल्प किया। <ref name=History2>{{cite web
पंक्ति 143:
१८४१ मै बेलायतीऔं ने यहां एक प्रायोगिक चाय कृषि कार्यक्रम की संचालन किया। इस प्रयोग के सफ़लता के कारण यहां १९वी शताब्दी के दुसरी भाग मै इस सहर मै चाय बगान लगने लगे। <ref name=teahistory1>{{cite web
| publisher=Darjeelingnews| url=http://www.darjeelingnews.net/darjeeling_tea.html | title= Darjeeling Tea History | accessdate=2006-05-02
}}</ref> दार्जीलिंग को बेलायतीयौं ने सिक्किम से १८४९ मे छिन लिया था<ref name=History2/> इस समय मै प्रवासी विषेश करके नेपाली लोग को बगान, खेती, निर्माण आदि कार्य संचालन के लिए भर्ती किया गया।<ref name=darjnet/> [[स्कटिश]] [[मिसिनरी]]यौं ने यहां विद्यालय की स्थापना और बेलायतीयौं के लिए वेल्फ़ेर सेन्टर की स्थापना किया और यह जगह को विद्या के लिए प्रसिद्ध किया। दार्जीलिंग हिमालयन रेल्वे की १८८१ मे स्थापना के बाद यहां की विकास उच्च गति से हुवा।<ref name=heritageunesco>{{cite web
| publisher=UNESCO World Heritage Centre | url=http://whc.unesco.org/en/list/944 | title=Mountain Railways of India | accessdate=2006-04-30
}}</ref> १८९८ मै दार्जीलिंग मै एक बडा भूकम्प आया (जिसे "दार्जीलिंग डिज्यास्टर" भी कहते है) जिसने सहर और लोगों की बहुत क्षति की।<ref name=disaster1>{{cite web
पंक्ति 193:
-->
== मौसम ==
दार्जीलिंग की टेम्परेट मौसम मै ५ ऋतु होते है: [[बसन्त]], [[गृष्म]], [[शरद]], [[शीत]], और [[मनसून]]।
<!--
Summers (lasting from May to June) are mild, with maximum temperatures rarely crossing 25&nbsp;°[[Celsius|C]] (77&nbsp;°[[Fahrenheit|F]]). The monsoon season from June to September is characterised by intense torrential rains often causing [[landslide]]s that block Darjeeling's land access to the rest of the country. In winter temperature averages 5–7&nbsp;°C (41–44&nbsp;°F). Occasionally the temperatures drop below [[Melting point|freezing]]; snowfalls are rare. During the monsoon and winter seasons, Darjeeling is often shrouded in [[mist]] and [[fog]]. The annual mean temperature is 12&nbsp;°C (53&nbsp;°F); monthly mean temperatures range from 5–17&nbsp;°C (41–62&nbsp;°F).<ref name=weatherbase>{{cite web
पंक्ति 257:
| first = Vinay
| publisher =UCLA Social Sciences Computing
}}</ref> विद्यालय जैसे की [[सेन्ट जोसेफ़ कलेज]] , [[लोरेटो कन्भेन्ट]],[[सेन्ट पलज् स्कूल]] और [[माउन्ट हर्मन स्कूल]] दक्षिण एसिया के बहुत स्थानौं से विद्यार्थीऔं को आकर्षित करते है। बहुत विद्यालय (कुछ सौ साल से भी पुराने) अभी भी बेलायती और कोलोनियल सम्पदाको जीवित कर रहे है। दार्जीलिंग मै ३ कलेज है — [[सेन्ट जोसेफ़ कलेज]], [[लोरेटो कलेज]] और [[दार्जीलिंग सरकार कलेज]] — यह सभी [[उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय]], सिलिगुढी से आबद्ध है।
 
== टिप्पणी ==
{{reflist|2}}
 
== बाहरी सूत्र ==
<div class="references-small">
* {{wikitravel}}