"संस्कृत के प्राचीन एवं मध्यकालीन शब्दकोश": अवतरणों में अंतर

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==निघंटु : आर्यभाषा का प्रथम शब्दकोश ==
[[संस्कृत]] के पुरातनतम उपलब्ध [[शब्दकोश]] वैदिक '[[निघंटु]]' है । उसका रचनाकाल कम से कम ७०० या ८०० ई० पू० है । वैदिक शब्दों (केवल विरल या क्लिष्ट शब्द) के संग्रह को '[[निघंटु]]' कहते थे । '[[यास्क]]' का [[निरुक्त]] वैदिक निघंटु का [[भाष्य]] है । यास्क से पूर्ववर्ती निघंटुओं में एकमात्र यही निघंटु उपलब्ध है पर 'निरुक्त' से जान पड़ता है के 'यास्क' के पूर्व अनेक निघंटु बन चुके थे । अत: कह सकते हैं कि कम से कम ई० पू० १००० से ही निघंटु कोशों का संपादन होने लगा था ।
 
विस्तृत जानकारी के लिये '''[[निघण्टु]]''' तथा '''[[निरुक्त]]''' देखें ।
 
== निघंटु के पश्चात कोशों की परम्परा ==
वैदिक निघंटुकोशों और 'निरुक्त ग्रंथों' के अनंतर संस्कृत के प्राचीन और मध्यकालीन कोश हमें उपलब्ध होते हैं । इस संबंध में 'मेक्डानल्ड' ने माना है कि संस्कृत कोशों की परंपरा का उद्भव (निघटु ग्रंथों के अनंतर) [[धातुपाठ|धातुपाठों]] और [[गणपाठ|गणपाठों]] से हुआ है । पाणिनीय [[अष्टाध्यायी]] के पूरक पारिशिष्ट रूप में धातुओं और गणशब्दों का व्याकरणोपयोगी संग्रह इन उपर्युक्त पाठों में हुआ । पर उनमें अर्थनिर्देश न होने के कारण उन्हे केवल धातुसूची और गणसूची कहना अधिक समीचीन होगा ।
 
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संस्कृत कोशों का ऐतिहासिक सिंहावलोकन करने से हमें इस विषय को सामान्य जानकारी प्राप्त हो सकती है । इस संबंध में विद्वानों ने 'अमरसिंह' द्वारा रचित और सर्वाधिक लोकप्रिय 'नामलिंगानुशासन' (अमरकोश) को केंद्र में रखकर उसी आधार पर संस्कृत कोशों को तीन कालखंडों में विभाजित किया है-
* (१) अमरकोश-पूर्ववर्ती संस्कृत कोश,
* (२) अमरकोशकाल तथा
* (३) अमरकोशपरवर्ती संस्कृत कोश ।
 
== प्राचीन (अमरकोश पूर्ववर्ती) संस्कृत कोश ==
'अमरसिंह' के पूर्ववर्ती कोशों का उनके नामलिंगानुशासन' में उल्लेख नहीं मिलता है । परंतु 'समाहृत्यान्यतन्त्राणि' के ध्वन्यार्थ का आधार लेकर 'अमरकोश' की रचना में पूर्ववर्ती कोशों के उपयोग का अनुमान किया जा सकता है । 'अमरकोश' की एक टीका में लब्ध 'कात्य' शब्द के आधार पर 'कात्य' या 'कात्यायन' नामक 'अमर'—पूर्ववर्ती कोशकार का और पाठांतर के आधार पर व्याडि नामक कोशाकार का अनुमान होता है । 'अमरकोश' के टीकाकार 'क्षीरस्वामी' के आधार पर 'धन्वतंरि' के 'धन्वतरपिनिघंटु' नामक वैद्यक निघंटु (कोश) का संकेत मिलता है । 'महाराष्ट्र शब्दकोश' की भूमिका में 'भागुरि' केकोश को भी—जिसका 'त्रिकांडकोश' था—'अमर—पूर्ववती' बताया गया है । यह कोश दक्षिण भारत की एक ग्रथसूची में आज भी उल्लिखित है । 'रंति या 'रंतिदेव' और 'रसभ' या 'रसभपाल' को भी (महाराष्ट्र शब्दकोश की भूमिका के आधार पर) 'अमर—पूर्ववर्ती' कोशकार कहा गाय है ।
 
'सर्वानंद' ने 'अमरकोश की अपनी टीका में बताया है कि 'व्याडि' और 'वररुचि' आदि के कोशों में केवल लिंगों का संग्रह है और 'त्रिकांड' एवं 'उत्पलिनी' में केवल शब्दों का । परंतु 'अमरकोश' में दोनों की विशेषताएँ एकत्र संमिलित हैं । इस प्रकार 'व्याडि', 'वररुचि' (या कात्य) 'भागुरि' और 'धन्वंतरि' आदि अनेक कोशकारों का क्षीरस्वामी ने अमर—पूर्ववर्ती कोशकारों और 'त्रिकांड', 'उत्पलिनी', 'रत्नकोश' और 'माला' आदि अमर—पूर्ववर्ती कोशग्रोथों का परिचय दिया है ।
 
== अमरकोशकाल (रचनाकाल—लगभग चौथी पाँचवी शती) ==
[[अमरकोश]] की महता के कुछ कारण हैं । यद्यपि तत्पूर्ववर्ती कोश ('धन्वतरिनिघंटु' तथा पांडुलिपिसूची में उल्लिखित एकाध अन्य ग्रंथ को छोड़कर) आज उपलब्ध नहीं हैं तथापि यह अनुमान किया जाता है कि प्राचीन कोशों में दो प्रकार की शैलियाँ (कदाचित्, प्रचलित थीं—
 
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यह कोशग्रंथ मुख्यतः पर्यायवाची ही है । फिर भी तृतीय कांड के द्वार, जिसे हम आधुनिक पदावली में परिशिष्टांश कह सकते हैं, इस कोश की पूर्ण और व्यापक तथा उपयोगी बनाया गया है ।
 
== अमरकोशपरवर्ती काल के संस्कृत कोश ==
अमरपरवर्ती काल में संस्कृत कोशों की अनेक विधाएँ लक्षित होती हैं -
* कुछ कोश मुख्यतः केवल नानार्थ कोश के रूप में हमारे सामने आते है,
* कुछ को समानार्थक शब्दकोश और
* कुछ को अशंतः पर्यायवाची कोश कह सकते हैं ।
 
इन विधाओं के अतिरिक्त ऐसे कोश भी मिलते हैं जिनमें क्रमशः एकाक्षर, द्वायक्षर, त्यक्षर और नानाक्षर शब्दों का योजनाबद्ध रूप से संकलन हुआ है । 'द्विरूप' कोश भी बने है ।
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'''मेदिनिकर''' का समय लगभग १४ वी शताब्दी के आसापास या उससे कुछ पूर्ववती काल माना गया है । एक मत से ११७५ ई० के पूर्व भी इनका समय बताया जाता है । इनके कोश का नाम '[[नानार्थशब्दकोश]]' है पर '[[मेदिनिकोष]]' नाम से वह अधिक विख्यात है । इसकी पद्धति और शैली पर 'विश्वकोश' की रचना का पर्याप्त प्रभाव है । उसके अनेक श्लोक भी यहाँ उदधुत् है । ग्रंथारंभ के परिभाषात्मक अंश पर 'अमरकोश' की इतनी गहरी छाप है कि इसमें 'अमरकोश' के श्लोक तक शब्दशः ले लिए गए हैं । इसमें कोई खास विशेषता नही है ।
 
=== मेदिनीकोश के अनन्तर के लघुकोश ===
मेदीनी के अनंतर के लघुकोश न तो बारबार उद्धृत् हुए है और न पूर्वकोशों के समान प्रमाणरूप में मान्य है । परंतु इनमें कुछ ऐसे प्राचीनतर और प्रामाणिक कोशों का उपयोग हुआ है जो आज उपलब्ध नहीं हैं अथवा और अशुद्ध रूप में अंशतः उपलब्ध हैं ।
 
* (१) 'जिनभद्र सुरि' का कोश है अपवर्गनाममाला— जिसका नाम 'पंचवर्गपरिहारनाममाला भी है । इनका काल संभवतः १२ वीं शताब्दी के आस पास है ।
 
* (२) 'शब्दरत्नप्रदीप'—संभवतः यह कल्याणमल्ल का शब्दरत्नप्रदीप नामक पाँच कांडोवाला कोश है । (समय लगभग १२९५ ई०)।
 
* (३) महीप का शब्दरत्नाकर—कोश है जिसके नानार्थभाव का शीर्षक है—अनेकार्थ या नानार्थतिलक; समय है लगभग १३७४ ई०।
 
* (४) पद्यगदत्त के कोश का नाम 'भूरिक- प्रयोग है । इसका समय लगभग वही है । इस कोश का पर्यायवाची भाग छोटा है और नानार्थ भाग बड़ा। *(५) रामेश्वर शर्मा की शब्दमाला भी ऐसी ही कृति है ।
 
* (६) १४ वी शताब्दी के विजयनगर के राजा हरिहरगिरि की राजसभा में भास्कर अथवा दंमडाधिनाथ थे । उन्होने नानार्थरत्नमाला बनाया ।
 
* (७) अभिधानतंत्र का निर्माण जटाधर ने किया ।
 
* (८) 'अनेकार्थ' या नानार्थकमंजरी'— 'नामांगदसिंह' का लघु नानार्थकारी है ।
 
* (९) रूपचंद्र की रूपमंजरी—नाममाला का समय १६ वी शती है ।
 
* (१०) शारदीय नाममाला 'हर्षकीर्ति' कृत है (१६२४ ई०)।
 
* (११) शब्दरत्नाकर के कर्ता 'वर्मानभट्ट वाण' हैं ।
 
* (१२) नामसंग्रहमाला की रचना अप्पय दीक्षित ने की है । इनके अतिरिक्त
 
* (१३) नामकोश (सहजकीर्ति) का (१६२७) और
 
* (१४) पंचचत्व प्रकाश (१६४४) सामान्य कोश हैं ।
 
* (१५) '''कल्पद्रु कोश''' केशवकृत है । नानार्थर्णवसक्षेपकार 'केशवस्वामी' से ये भिन्न हैं । यह ग्रंथ संस्कृत का बृहत्तम पर्यायवाची कोश है । इसमें नानार्थ का प्रकरण या विभाग नहीं है । इसमें पर्यायों की संख्या सर्वाधिक है, यथा—पृथ्वी के १६४ तथा अग्नि के ११४ पर्याय इत्यादि । 'मल्लिनाथी' टीका में उदधृत वचन के आधार पर 'केशव नामक' तृतीय कोशकार भी अनुमानित है । तीन स्कंधों के इस कोश की श्लोकसंख्या लगभग चार हजार है । स्कंधों के अंतर्गत अनेक प्रकांड हैं । लिंगबोध के लिये अनेक संक्षिप्त संकेत हैं । पर्यायों की स्पष्टता और पूर्णता के लिये अनेक प्रयोग तथा प्रतिक्रियाएँ दी हुई हैं । इसमें कात्य, वाचस्पति, भागुरि, अमर, मंगल, साहसांक, महेश और जिनांतिम (संभवतः हेमचंद्र) के नाम उल्लिखित हैं । चतुर्थ श्लोक से नवम श्लोक तक—कोश में विनियुक्त पद्धति का निर्देश किया गया है । रचनकाल १६६० ई० माना जाता है । केशवस्वामी के नानार्थर्णव कोश से यह भिन्न है ।
 
* (१६) शब्दरत्नावली के निर्माता मथुरेश है (समय १७वी शताब्दी) । इनके अतिरिक्त कुछ और भी साधारण परवर्ती कोश हैं ।
 
* (१७) कोशकल्पतरु—विश्वनाथ;
 
* (१८) नानार्थपदपीठिका तथा शब्दलिंगार्थचंद्रिका—सुजन (दोनों ही नानार्थकोश हैं) । इनमें प्रथम में—अंत्यव्यंजनानुसारा क्रम है और द्वितीय में तान कांड हैं जिसमें क्रमशः एक, दो और तीन लिंगों के शब्द हैं) ।
 
* (१९) पर्यायपदमंजरी और शब्दार्थमंजूषा—प्रसिद्ध कोश हैं ।
 
* (२०) महेश्वर के कोश का नाम 'पर्यायरत्नमाला' है— संभवतः पर्यायवाची कोश विश्वप्रकाश' के निर्माता महेश्वर से भिन्न हैं । पर्यांयशब्दरत्नाकर के कर्ता धनंजय भट्टाचाई है ।
 
* (२१) विश्विमेदिनी— सारस्वत भिन्न का है ।
 
* (२२) विश्वकवि का विश्वनिघंटु है ।
 
* (२३) १७८६ और १८३३ के बीच बनारस में संस्कृत- पर्यायवाची श्ब्दों की एक 'ग्लासरी' 'एथेनियन' ने अपने एक ब्राह्मण मित्त द्बारा अपने निर्देशन में बनवाई थी । इसमें मूल शब्द सप्तमी विभक्ति के थे और पर्याय—कर्ता कारक (प्रथमा) के परंतु संभवतः इसमें बहुत सा अंश आधारहीनता अथवा दिषपूर्ण विनियोग के कारण संदिग्ध रहा । 'बोथलिंक' का संक्षिप्त शब्दकोश भी 'ग्यलनास' के अनेक उद्धरणों से युक्त है ।
 
इनके अलाव क्षेमेंद्र का लोकप्रकाश, महीप की अनेकार्थमाला का हरिचरणसेन की पर्यामुक्तावली, वेणीप्रसाद का पंचनत्वप्रकाश, अने- कार्थनिलक, राघव खांड़ेकर का केशावतंस, 'महाक्षपणक की अनेकार्थ- ध्वनिमंजरी आदि साधारण शब्दकोश उपलब्ध है । भट्टमल्ल की आख्यातचीन्द्रिक (क्रियाकोश), हर्ष का लिंगानुशाषन, अनिरुद्ध का शब्दभेदप्रकाश और शिवदत्त वेद्य का शिवकोश (वैद्यक), गणितार्थ नाममाला, नक्षत्नकोश आदि विशिष्ट कोश है । लौकिक न्याय की सूक्तियाँ के भी अनेक संग्रह है । इनमें भुवनेश की लैकिकन्यायसाहसी के अलाबा लौकिक न्यायसंग्रह, लौकिक न्याय मुक्तावली, लौकिकन्यायकोश आदि है । दार्शनिक विषयों के भी कोश— जिन्हें हम परिभाषिक कहते है— पांडुलिपि की सूचियों में पाए जाते है ।
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[कोश]]
* [[संस्कृत के आधुनिक कोश]]
* [[पालि, प्राकृत और अपभ्रंश का कोश वाङ्मय]]
* [[शब्दकोशों का इतिहास]]
 
[[श्रेणी:संस्कृत]]