"देवीमाहात्म्य": अवतरणों में अंतर
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'''दुर्गा सप्तशती''' हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का सर्वमान्य ग्रन्थ है। इसे '''देवी महात्म्य''' के नाम से भी जाना जाता है। यह [[मार्कण्डेय पुराण]] का अंश है। इसमें ७०० [[श्लोक]] होने के कारण इसे 'सप्तशती' कहते हैं। इसमें [[सृष्टि]] की प्रतीकात्मक व्याख्या की गई है। जगत की सम्पूर्ण शक्तियों के दो रूप माने गये है - संचित और क्रियात्मक। [[
इस रचना का विशेष संदेश है कि विकास-विरोधी दुष्ट अतिवादी शक्तियों को सारे सभ्य लोगों कि सम्मिलित शक्ति "सर्वदेवशरीजम" ही परास्त कर सकती है, जो रास्ट्रीय एकता का प्रतीक है। इस प्रकार आर्यशक्ति अजय है। इसमे गमन (इसका भेदन ) दुष्कर है। इसलिए यह दुर्गा है। यह [[अतिवादी|अतिवादियों]] के ऊपर संतुलन - शक्ति (stogun) सभ्यता के विकास कि सही पहचान है।
== परिचय ==
सुरथ नाम के एक राजा का राज्य छीन जाने और जन पर संकट आ जाने पर वह राजा भाग कर जंगल चला जाता है! ज्ञानी राजा को अपनी परिस्थति का सही ज्ञान है. वह निश्चित रूप से समझता है कि उसे पुनः अपना राज्य अथवा कोई सम्पति वापस नहीं मिलने वाली है! किन्तु फिर भी उसे बार-बार उन्ही वस्तुओं, व्यक्तियों और खजाने अदि की चिंता सताती रहती है. राजा जिसे निरर्थक समझता है और मुक्त रहना चाहता है, उसके विपरीत उसका मन उसके ज्ञान की अवहेलना कर बस उन्ही बस्तुओ की ओर खीचा जाता है| ज्ञानी राजा सुरथ अपनी असाधारण शंका को लेकर परम ज्ञानी मेघा ऋषि के पास जाते है। ऋषि उन्हें बताते है की वह विशेख शक्ति भगवन की क्रियाशील शक्ति तर को से परे महामाया है जो गारे संसार को जोड़ती है, पूरी सृष्टि को संचालित, संघृत और नियंत्रित करती है। सारे जीव-जन्तु उसी की प्रेरणा से कार्य करते है |
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सृष्टि की इन्ही तीन अवस्थाओं को सर्वसाधारण के लिए बोधगम्य रूप में प्रस्तुत किया गया है| पहली अवस्था में सृष्टि रचना के कर्ता ब्रम्हा को मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस मार लाना चाहते थे| क्रमश: तमोगुणी और रजोगुणी ये दोनों अतिवादी शक्तियाँ विकास के लिए संकट है| ब्रह्म ने महामाया से रक्षा की गुहार की| महामाया की प्रेरणा से विष्णु योग्निन्द्रा त्याग कर आए और राक्षसों को मार डाला| ब्रह्म की सृष्टि-रचना का कार्य आगे बढ़ जाता है। दूसरी अवस्था सभ्यता की प्रारंभिक अवस्था-गंगा सिन्धु के मैदान की तत्कालीन जंगली अवस्था का प्रतीकात्मक वर्णन है। जानवरों से शारीरिक बल में अपेक्षाकृत कमजोर मानव समूह -आर्यशक्ति को विना विकसित हथियार के केवल बुधि विवेक के बल पर जंगली भैंसे (महिषासुर) आदि भयानक जंगली जानवरों के बीच से अपनी सभ्यता की गाड़ी आगे निकलने की चुनोती थी, जिसमे वह सफल हुई। तीसरी अवस्था सभ्यता की विकसित अवस्था है, जहाँ आर्यसक्ति को शुंभ और निशुंभ के रूप में दो अतिवादी सक्तियों रजोगुण और तमोगुण अथवा प्रगतिवादी और प्रतक्रियावादी शक्तियों का सामना सदा करना पड़ता है।
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://sanskritdocuments.org/all_sa/durga700_sa.html '''दुर्गा सप्तशती''' का मूल पाठ]
* [http://sanskritdocuments.org/all_sa/durga700_meaning_sa.html '''दुर्गा सप्तशती ''' का अंग्रेजी अनुवाद]
[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]
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