"सत्येन्द्रनाथ बोस": अवतरणों में अंतर

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'''सत्येन्द्र नाथ बोस''' (1894-1974) [[गणितज्ञ]] और [[भौतिक शास्त्री]] थे। [[भौतिक शास्त्र]] में दो प्रकार के अणु माने जाते हैं - [[बोसान]] और [[फर्मियान]]। इनमे से बोसान सत्येन्द्र नाथ बोस के नाम पर ही हैं।
 
== जीवनी ==
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उन्होंने एक लेख लिखा- "प्लांक्स लॉ एण्ड लाइट क्वांटम" इसे भारत में किसी पत्रिका ने नहीं छापा तो सत्येन्द्रनाथ ने उसे सीधे आइंस्टीन को भेज दिया। उन्होंने इसका अनुवाद जर्मन में स्वयं किया और प्रकाशित करा दिया। इससे सत्येन्द्रनाथ को बहुत प्रसिद्धि मिली। उन्होंने यूरोप यात्रा के दौरान आइंस्टीन से मुलाकात भी की थी। सन्‌ १९२६ में सत्येन्द्रनाथ बोस भारत लौटे और [[ढाका विश्वविद्यालय]] में १९५० तक काम किया। फिर [[शांतिनिकेतन]] में [[विश्व भारती विश्वविद्यालय]] के कुलपति बने। उनका निधन ४ फरवरी, १९७४ को हुआ। अपने वैज्ञानिक योगदान के लिए वह सदा याद किए जाएँगे।
== अन्य जानकारी ==
 
कलकत्ता विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में विज्ञान के नए विषयों पर लिखी पुस्तकें नहीं थीं। बोस और साहा को डॉ. ब्रुह्ल के बारे में पता चला जिनके पास ये पुस्तकें थीं। डॉ. ब्रुह्ल आस्ट्रिया के रहने वाले थे। उनका विषय जीव-विज्ञान था। आस्ट्रिया में स्वास्थ्य खराब रहने की वजह से चिकित्सकों ने सलाह दी वे ऐसी जगह जाकर रहें जहाँ का मौसम गर्म हो। इसलिए भारतीय पौधों का अध्ययन करने के लिए डॉ. ब्रुह्ल भारत आ गए थे। कलकत्ता में रहते हुए डॉ. ब्रुह्ल का विवाह हो गया और उन्हें नौकरी आवश्यक हो गई। इस प्रकार वे बंगाल कॉलेज में शिक्षक बन गए। डॉ. ब्रुह्ल का विषय वनस्पति विज्ञान था परंतु वह भौतिकी पढ़ाने का कार्य अच्छी तरह से करते थे। डॉ. ब्रुह्ल के पास बहुत सारी अच्छी पुस्तकें थीं जो बोस और साहा ने पढ़ने के लिए उनसे प्राप्त कीं।
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== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.thehindu.com/opinion/open-page/article1073376.ece?homepage=true&sms_ss=facebook&at_xt=4d293f1d9ba26fe0%2C0 Satyen Bose, the unsung hero]
 
{{भारतीय विज्ञान}}