"सम्पत्ति": अवतरणों में अंतर

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पूर्वी तथा पश्चिमी समाजों द्वारा '''संपत्ति''' का प्रयोग सामाजिक संगठन तथा सामाजिक रहन-सहन के लिए एक अत्यावश्यक वस्तु के रूप में होता रहा है। संपत्ति शब्द का आशय, इससे संबंधित अन्य विचारों से, जिन्हें "वस्तु" या "रेस" (res), "डोमस" (Domus) तथा "स्वामी" (प्रोप्रायटर) आदि शब्दों से व्यक्त किया गया, विकसित हुआ।
 
== संपत्ति शब्द की व्युत्पत्ति ==
[[भाषाविज्ञान]] के अनुसार संपत्ति शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन क्रियाविशेषण "प्राप्टर" (propter) से हुई है। इसका विकास "प्रोप्राइर्टस" नामक शब्द से हुआ। प्रोप्राइटैस शब्द रोमन विधिज्ञों द्वारा बौद्धिक स्तर पर प्रयोग में लाया जाने लगा तथा फ्रांस की बोलचाल की भाषा में इसका व्यवहार होने लगा। धीरे धीरे संपत्ति शब्द का उपयोग भूमि, धन तथा अन्य मूल्यवान वस्तुओं के लिए होने लगा।
 
== "संपत्ति" के अभिप्राय का विकास ==
"संपत्ति" शब्द का अर्थ तब निश्चित है जब इस शब्द का प्रयोग एक परिवार और उसके सदस्यों से संबंधित वस्तुओं का संबंध व्यक्त करने के लिए किया जाने लगा। बाद में सामाजिक परिस्थितियों द्वारा व्यक्तियों की वस्तुओं के अभिग्रहण और संरक्षण की प्रवृत्ति को मान्यता प्राप्त हुई तथा उसके मूल का औचित्य और आवश्यकता देखते हुए संपत्ति का समर्थन किया जाने लगा। वह सम्मान की वस्तु बन गई तथा उसका विकास सामाजिक विशिष्टताओंवाली संस्था के रूप में होने लगा।
 
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मनुस्मृति के टीकाकारों के मतानुसार आर्यों में संपत्ति का आशय पूरे परिवार से संबद्ध होता था जिसमें पुत्र, पुत्री, पत्नी तथा दास भी सम्मिलित थे। समाज के विकास के साथ पुत्र, पुत्री तथा पत्नी को संपत्ति की वस्तु या संपत्ति का अंग न समझकर उन्हें संपत्ति से पृथक् अस्तित्व की मान्यता दी गई।
 
== संपत्ति का प्रत्यय (concept of property) ==
भारतीय कानून में सपात्त का विधिक प्रत्यय वैसा ही होता है जैसा [[अंग्रेजी न्यायशास्त्र]] में। अंग्रेजी कानून बहुत कुछ रोमन कानून से प्रभावित है। "संपत्ति" शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं यथा स्वामित्व या स्वत्व, अर्थात् स्वामी को प्राप्त संपूर्ण अधिकार। कभी कभी इसका अर्थ रोमन "रेस" होता है जिसे अंतर्गत स्वामित्व के अधिकार का प्रयोग होता है जिसके अंतर्गत स्वामित्व के अधिकार का प्रयोग होता है अर्थात् स्वयं वह वस्तु जो उक्त अधिकार का विषय या पात्र है। "रेस" अथवा "वस्तु" का मानव से संबध बतानेवाला अर्थ संपत्ति के स्वरूप के विकास में सहायक हुआ है। इस प्रकार "रेस" अथवा "वस्तु" पर अधिकार का संबोध और स्वयं "रेस" या "वस्तु" का संबोध सपत्ति संबंधी प्रत्यय से जटिल तथा गहरे रूप से संबद्ध है अर्थात् दोनों एक दूसरे के पूरक और सहायक है।
 
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रेस या वस्तु के पार्थिव और अपार्थिव वर्गीकरण तथा वस्तु या अधिकारों के स्वरूप के अनुसार संपत्ति का वर्गीकरण विभिन्न प्रकार से हुआ है जैसे, पार्थिव या अपार्थिव; चल या अचल तथा वास्तविक या व्यक्तिगत। संपत्ति के साथ अन्य विशिष्ट शब्दों जैसे व्यक्तिगत या सार्वजनिक, पैतृक, दाययोग्य, संयुक्त पारिवारिक, समाधिकारिक आदि के संयुक्त कर देने से संपत्ति के स्वरूप के साथ संबंध व्यक्त होता है।
 
== संपत्ति की वैधानिक व्याख्या ==
संपत्ति की वैधानिक व्याख्या के अनुसार इसके कई अर्थ है। संपत्ति के अंतर्गत किसी व्यक्ति के द्वारा किए गए शारीरिक तथा मानसिक परिश्रम के फल भी आते हैं। कोई भी व्यक्ति अपनी किसी वस्तु के बदले में जो कुछ भी पाता है, जो कुछ भी उसे दिया जाता है और जिसे कानून द्वारा उस व्यक्ति का माना जाता है अथवा उसे प्रयोग करने, भोग करने तथा व्यवस्था करने का अधिकार प्रदान किया जाता है, वह सब उस व्यक्ति की व्यक्तिगत संपत्ति कहलाती है। परंतु कानून द्वारा मान्यता न प्राप्त होने पर उसे संपत्ति नहीं कहा जा सकता और तब विधिक परिणाम की दृष्टि से व्यक्ति और वस्तु के बीच कोई संबंध नहीं रह जाता है।
 
== वाह्य सूत्र ==
* [http://www.4lawschool.com/property/property.htm Property Law Case Summaries]
* [http://www.hooverdigest.org/012/pipes.html Private Property, Freedom, and the Rule of Law]
* [http://www.iep.utm.edu/p/property.htm "Right to Private Property"], Tibor Machan, Internet Encyclopedia of Philosophy
* [http://www.mises.org/fullstory.aspx?Id=1646 "The Ethics and Economics of Private Property"], Hans-Hermann Hoppe, van Mises Institute
 
 
[[श्रेणी:अर्थशास्त्र]]