"सुदर्शनाचार्य": अवतरणों में अंतर

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| image =Jagdguru Swami Sudarshnacharya-14 jpg.jpg
| image_size =200px
| name = जगद्गुरु सुदर्शनाचार्य<br /> (1937-2007)
| birth_date = 27 मई 1937
| birth_name = शिवदयाल शर्मा
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सिद्धदाता आश्रम में आज भी उनके भक्तों का [[मेला]] लगा रहता है। यहाँ आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या [[सम्प्रदाय]] का हो, बिना किसी भेदभाव के प्रवेश की अनुमति है। वर्तमान में स्वामी पुरुषोत्तम आचार्य यहाँ आने वाले श्रद्धालु भक्तों की समस्या सुनते हैं और सिद्धपीठ की आज्ञानुसार उसका समाधान सुझाते हैं। यह [[आश्रम]] आजकल देश विदेश से आने वाले लाखों लोगों के लिये एक [[तीर्थ|तीर्थस्थल]] बन चुका है।
 
== संक्षिप्त जीवनी ==
सुदर्शनाचार्य जी का [[जन्म|प्रादुर्भाव]] 27 मई 1937 को राजस्थान की पावन [[भूमि|अवनी]] में सवाई माधोपुर मण्डलान्तर्गत पाड़ला [[ग्राम]] के एक सम्पन्न कृषक [[ब्राह्मण]] परिवार में हुआ। उनके बचपन का नाम शिवदयाल शर्मा था।
 
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गोस्वामी [[तुलसीदास]] के वचनों को हृदयंगम करते हुए उन्होंने [[भानगढ़]] के बीहड़ जंगलों में बारह वर्षो तक कठोर तपस्या की। तपस्या के दौरान उन्हें तन्त्र-मन्त्रों की प्रत्यक्ष अनुभूति हुई। इस प्रकार लोकोपकार की उदात्त भावना लेकर वे सांसारिक जीवों के बीच जा पहुँचे।
== सिद्धदाता आश्रम की स्थापना ==
परोपकारी सन्त परिवेश में [[अरावली]] पर्वतमाला पर घूमते हुए सुदर्शनाचार्यजी [[फरीदाबाद]] के समीप तव्यास पहाड़ी पर आश्रम निर्माण के लिये प्रवृत्त हुए। 1989 में यह महत्वपूर्ण कार्य प्रारम्भ हुआ। इस भूखण्ड के अधिग्रहण के विषय में भी एक रोचक किन्तु भावपूर्ण किंवदन्ती जुड़ी हुई है। फरीदाबाद से [[दिल्ली]] की ओर जाते समय अचानक गाड़ी रुकने के कारण जून की प्रचण्ड दोपहरी में उन्हें अचानक जल का चमकता हुआ [[स्रोत]] दिखाई दिया। वाहन रोक कर निरीक्षण बुद्धि से देखने पर कुछ भी दिखाई नही दिया। परन्तु कुछ अव्यक्त [[वाणी]] सुनाई दी, जिसे प्रमाण मानकर उन्होंने उसी स्थान पर आश्रम बनाने की इच्छा प्रकट की। इसे कार्यरूप देने के लिये प्रारम्भिक गतिरोध के बावजूद वे इस महान कार्य में सफल हुए और आश्रम निर्माण का कार्य सम्पन्न हुआ।
 
इसके बाद में भगवदाज्ञा को स्वीकार करते हुए श्री [[लक्ष्मी नारायण]] दिव्यधाम निर्माण का कार्य 1996 में [[विजयदशमी]] के पावन पर्व पर आरम्भ किया गया। प्रारम्भिक गतिरोध के बाद इस कार्य में भी वे सफल हुए और दिव्यधाम के निर्माण का कार्य सम्पन्न हुआ। महाराजजी के अहर्निश अनथक परिश्रम एवं सभी भक्तजनों द्वारा की गयी [[सेवा|कार सेवा]] के परिणामस्वरूप चार वर्ष के अत्यल्प समय में ऐसे तीर्थ स्थल का निर्माण किया गया जिसके दर्शन मात्र से ही यहाँ आने वाले श्रद्धालु जन पुण्य लाभ प्राप्त कर अनन्त काल तक अपना जीवन सफल बनाते रहेंगे। यहाँ पर समस्त भक्तजनों की श्रद्धानुसार उनकी सभी मनोकामनाएँ तो पूर्ण होती ही हैं इसके अतिरिक्त उन्हें [[धर्म]], [[अर्थ]]; [[काम]] और [[मोक्ष]] की प्राप्ति भी होती है।
 
== जगद्गुरु की प्रतिष्ठा और गोलोकवास ==
सुदर्शनाचार्यजी महाराज के विलक्षण वैभव व गुणों से प्रभावित होकर [[वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव समुदाय]] ने 1998 के [[हरिद्वार]] महाकुम्भ में पतित पावनी [[गंगा]] किनारे समस्त जगद्गुरुओं, पीठाधीश्वरों, त्रिदण्डी स्वामियों, आचार्यो तथा समस्त वैष्णव समुदाय के समक्ष उन्हें जगद्गुरु रामानुजाचार्य के पद पर विभूषित कर, इस पद की गरिमा का पदोचित सम्मान किया।
 
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* [[रामानुजाचार्य]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.totalbhakti.com/guru-profiles/sudarshanacharya-profile.php जगद्गुरु सुदर्शनाचार्य का अधिकृत जालस्थल]
* [http://www.shrisidhdataashram.org/index.php?option=com_content&view=article&id=167&Itemid=182&lang=hi पूज्य गुरुदेव बैकुण्ठवासी स्वामी श्री सुदर्शनाचार्य जी महाराज]
{{हिन्दू धर्म}}