"सहज वृत्ति (इंस्टिंक्ट)": अवतरणों में अंतर

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'''सहज वृत्ति''' , किसी [[व्यवहार प्रक्रिया|व्यवहार]] विशेष की तरफ [[सजीव|[[जीवों]]]] के स्वाभाविक झुकाव को कहते हैं. गतिविधियों के स्थायी पैटर्न भुलाये जाते हैं और वंशानुगत होते हैं. किसी संवेदनशील समय में पड़ी छाप के कारण इसके उत्प्रेरक काफी विविध प्रकार के हो सकते हैं, या आनुवंशिक रूप से निर्धारित भी हो सकते हैं. सहज वृत्ति वाली गतिविधियों के स्थायी पैटर्न को पशुओं के व्यवहार में देखा जा सकता है, जो ऐसी कई गतिविधियों (अक्सर काफी जटिल) में संलग्न रहते हैं जो पूर्व अनुभवों पर आधारित नहीं होती हैं, जैसे कि [[कीट|कीड़ों]] के बीच [[प्रजनन|प्रजनन]] तथा भोजन संबंधी गतिविधियां. समुद्र तट पर प्रजनित समुद्री कछुए स्वतः ही समुद्र की ओर चलने लगते हैं, और मधुमक्खियां नृत्य द्वारा खाद्य स्रोत की दिशा के बारे में बताती हैं; ये किसी औपचारिक शिक्षा के बिना ही होते हैं. अन्य उदाहरणों में जानवरों की लड़ाई, जानवरों का प्रेमालाप संबंधी व्यवहार, बचने के आतंरिक तरीके, और [[घोसला|घोसलों]] का निर्माण शामिल हैं.
इसी अवधारणा के लिए एक और शब्द है 'सहज व्यवहार'.
 
सहज वृत्ति वाली गतिविधियों - शिक्षण आधारित गतिविधियों के विपरीत, जो स्मृति पर आधारित होती हैं और अनुभवों के आधार पर व्यक्तिगत रूप से संग्रहीत सफल प्रतिक्रियाएं प्रदान करती हैं - में कोई प्रशिक्षण शामिल नहीं होता है, वे अन्तर्निहित होती हैं और किसी प्रशिक्षण के बिना ही इस्तेमाल के लिए तैयार रहती हैं. कुछ सहज वृत्ति वाले व्यवहार प्रकट होने के लिए परिपक्वता संबंधी प्रक्रियाओं पर निर्भर करते हैं.
 
'''जैविक प्रवृत्तियां''' सहज तथा जैविक रूप से उत्प्रेरित व्यवहार होते हैं जिन्हें आसानी से सीखा जा सकता है. उदाहरण के लिए, एक बछड़ा एक घंटे में ही खड़े होना, चलना, कूदना-फांदना तथा दौड़ना सीख सकता है. एक जैविक प्रवृत्ति का मतलब यह भी है कि कुछ व्यक्ति अपनी आनुवंशिक संरचना के कारण कुछ विशेष परिस्थितियों तथा बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं. स्नायविक प्रतिवर्त (न्यूरोलोजिकल रिफ्लेक्स) जैसे व्यवहार को और अधिक बेहतर करने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है. विशुद्ध प्रर्तिवर्तों (रिफ्लेक्सेज) तथा सहज वृत्ति में, तंत्रिका प्रणाली में उनकी मौजूदगी की स्थिति के अनुसार अंतर किया जा सकता है; प्रतिवर्त रीढ़ संबंधी या अन्य परिधीय [[गैंगलिया|गैन्ग्लिया]] द्वारा नियंत्रित होते हैं, जबकि सहज वृत्ति पर मस्तिष्क का अधिकार होता है. ऐसी परिस्थिति जिसमे दो सहज वृत्तियां एक दूसरे की विरोधाभासी हों, कोई जानवर विस्थापन गतिविधियों की ओर रुख कर सकता है.
 
सहज वृत्ति के एक सिद्धांत के अनुसार निहित झुकाव [[डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल|डीएनए]] में संग्रहीत होता है और इसलिए वह अभिभावकों से उनके बच्चों में भी पारित होता है.
 
== विकास ==
सहज व्यवहार को पशु जीवन में काफी व्यापक रूप से प्रदर्शित किया जा सकता है. [[चार्ल्स डार्विन|डार्विन]] के 'प्राकृतिक चयन द्वारा विकास' के सिद्धांत के अनुसार प्रतिस्पर्धा में विजयी होने तथा जीवित रहने की बेहतर दर के लिए प्राणियों में सहज वृत्ति जैसे अनुकूल गुणों का चयन किया जाता है. इस प्रकार, विकासवादी जीव विज्ञान के लिए, सहज वृत्तियों को योग्यतम की उत्तरजीविता (सरवाइवल ऑफ दी फिटेस्ट) के अनुकूल व्यवहार के रूप में समझाया जा सकता है.
 
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यह विचार कि सहज वृत्ति संबंधी व्यवहार के लिए किसी शिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है, हमेशा लागू नहीं होता, खासकर जब स्वयं व्यवहार की बात हो. लेकिन प्रमुख उत्प्रेरक और विशिष्ट परिणाम विभिन्न आगतों (इनपुट्स) की वजह से कुछ भिन्न अवश्य हो सकते हैं. परिणाम इस अर्थ में भिन्न हो सकता है कि एक फिंच चिड़िया स्वाभाविक रूप से गाना गायेगी, लेकिन वो प्रायः उन्ही गानों को गायेगी जिन्हें उसने एक संवेदनशील अवधि के दौरान ग्रहण किया है; फिंच चिड़िया के गानों में अलग क्षेत्रीय शैलियों की मौजूदगी का कारण भी यही होता है.
 
== बाल्डविन प्रभाव ==
 
बाल्डविन प्रभाव दो चरणों में कार्य करता है. सबसे पहले, फीनोटाईपिक प्लास्टीसिटी एक व्यक्ति को एक आंशिक रूप से सफल उत्परिवर्तन के साथ समन्वय बिठाने में सक्षम बनाता है, जो अन्यथा उस व्यक्ति के लिए बिलकुल ही बेकार होता है. यदि यह उत्परिवर्तन समग्र फिटनेस को बढ़ाता है तो यह सफल होगा और पूरी आबादी में इसका विस्तार होगा. फीनोटाईपिक प्लास्टीसिटी सामान्यतः किसी व्यक्ति के लिए काफी महंगी साबित होती है; शिक्षण के लिए समय और ऊर्जा की आवश्यकता होती है, और कई बार इसमें खतरनाक गलतियां भी शामिल होती हैं. इसलिए एक दूसरा चरण भी है: पर्याप्त समय प्रदान किये जाने पर, विकास प्लास्टिक प्रक्रिया को हटाने के लिए एक अनवरत प्रक्रिया को खोज सकता है. इस प्रकार एक व्यवहार जिसे पहले सीखा गया था (प्रथम चरण), बाद में समय के साथ सहज वृत्ति में परिवर्तित हो जाता है (द्वितीय चरण). पहली ही सरसरी दृष्टि में यह [[लैमार्कवाद|लैमार्क विकास]] के समान लगता है, लेकिन फीनोटाइप के अनुभव के आधार पर जीनोटाइप में कोई प्रत्यक्ष परिवर्तन नहीं होता है.
 
== परिभाषाएं ==
=== वैज्ञानिक परिभाषा ===
 
"सहज वृत्ति" शब्द का मनोविज्ञान में एक लंबा और विविध प्रयोग रहा है. 1870 के दशक में, विल्हेम वुन्ड्ट ने प्रथम मनोविज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना की. उस समय, मनोविज्ञान मूलतः दर्शन की एक शाखा थी, परन्तु व्यवहार का वैज्ञानिक पद्धति के ढांचे के भीतर अधिकाधिक परीक्षण किया जाने लगा. हालांकि वैज्ञानिक पद्धति के उपयोग के कारण शब्दों को काफी विशुद्ध तरीके से परिभाषित किया जाने लगा था, 19 वीं शताब्दी के अंत तक अधिकांश दोहराए जाने वाले व्यवहार को सहज वृत्ति माना जाने लगा. उस समय साहित्य के एक सर्वेक्षण में एक शोधकर्ता ने 4000 मानव सहज वृत्तियों को सूचीबद्ध किया, अर्थात ऐसा प्रत्येक दोहराया जाने वाला व्यवहार जिसका किसी न किसी ने नामकरण किया हो.{{Citation needed|date=January 2009}} जैसे-जैसे शोध बढ़ती गयी और शब्दों को बेहतर तरीके से परिभाषित किया जाने लगा, मानव व्यवहार के वर्णन रूप में सहज वृत्ति का इस्तेमाल कम मात्रा में किया जाने लगा. 1960 में तुलनात्मक मनोविज्ञान की शुरुआत करने वाले फ्रैंक बीच की अध्यक्षता वाले एक सम्मेलन (जिसमे इस क्षेत्र की अन्य अग्रणी हस्तियां भी शामिल हुई थीं) में, इस शब्द के प्रयोग को काफी सीमित कर दिया गया.{{Citation needed|date=January 2009}} 60 और 70 के दशक के दौरान, पाठ्यपुस्तकों में मानव व्यवहार के संदर्भ में सहज वृत्ति की कुछ चर्चाओं को अभी भी शामिल किया जाता था. वर्ष 2000 तक, परिचयात्मक मनोविज्ञान की 12 सर्वाधिक बिक्री वाली पाठ्यपुस्तकों के एक सर्वेक्षण में सहज वृत्ति के केवल एक संदर्भ की चर्चा की गयी थी, और वह [[सिग्मुंड फ़्रोइड|सिगमंड फ्रायड]] के "इड" सहज वृत्ति के संदर्भ में था.{{Citation needed|date=January 2009}}
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अगर इन मानदंडों का विशुद्ध वैज्ञानिक तरीके से प्रयोग किया जाये, "सहज वृत्ति" शब्द के प्रयोगों को मानव व्यवहार के संदर्भ में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.{{Citation needed|date=January 2009}} जब ममता, क्षेत्र-आधिपत्य, खाना, संभोग, आदि जैसे शब्दों का इस्तेमाल मानव व्यवहार के लिए किया जाता है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि वे उपरोक्त मानदंडों पर पूरी तरह से खरे नहीं उतरते हैं. पशुओं के [[शीतनिष्क्रियता|शीतस्वापन]], प्रवास, घोंसले का निर्माण, संभोग आदि जैसे व्यवहारों के विपरीत (जो स्पष्ट रूप से सहज वृत्ति के तहत आते हैं), कोई भी मानव व्यवहार आवश्यक मानदंडों को पूरा नहीं करता है. और पशुओं के संबंध में भी, कई मामलों में अगर सही शिक्षण को प्रकट होने से रोक दिया जाये तो ये सहज वृत्ति वाले व्यवहार भी गायब हो जाते हैं, जो यह इंगित करता है कि वे शक्तिशाली किन्तु सीमित जैविक प्रवृत्तियां मात्र हैं. अंतिम विश्लेषण में, इस परिभाषा के तहत कोई भी मानव सहज वृत्ति मौजूद नहीं है.{{Citation needed|date=January 2010}}
 
=== मनुष्यों में ===
{{details|human nature}}
कुछ सामाजिक तथा प्राकृतिक जैव विज्ञानियों ने [[मनुष्य|मानव]] तथा [[प्राणी|पशु]] सामाजिक व्यवहार को सहज वृत्ति के संदर्भ में समझने की चेष्टा की है. मनोविश्लेषकों का कहना है कि ''सहज वृत्ति'' मानवीय [[अभिप्रेरण|प्रेरक]] शक्तियों (जैसे सेक्स तथा आक्रामकता) को संदर्भित करती है, जो कभी-कभार ''जीवन संबंधी सहज वृत्ति'' या ''मृत्यु संबंधी सहज वृत्ति'' के रूप में दिखाई देती हैं. ''प्रेरक शक्तियों'' शब्द के इस प्रयोग को मुख्यतः ''सहज प्रवृत्तियों'' शब्द से प्रतिस्थापित कर दिया गया है.
 
मानवीय सहज वृत्तियों को ''स्वतः होने वाली क्रियाओं (इंस्टिंकटिव रिफ्लेक्सेज)'' में भी देखा जा सकता है. बाबिन्सकी रिफ्लेक्स (पैर को छूने पर पंजों को हिलाना) जैसी सहज क्रियाओं को शिशुओं में देखा जा सकता है और वे विकास के चरणों को इंगित करती हैं. इन सहज क्रियाओं को विशुद्ध रूप से सहज वृत्ति माना जा सकता है क्योंकि वे आमतौर पर पर्यावरणीय प्रभावों या अनुकूलन के बिना ही होती हैं.
 
अतिरिक्त मानव लक्षण जिन्हें सहज वृत्ति के रूप में देखा गया है, इस प्रकार हैं: सोना, घृणा, चेहरा पढ़ना, भाषा सीखना, "लड़ना या भागना" और "वशीभूत करना या होना". मनुष्यों तथा वानर समाजों में किये गए कुछ प्रयोग भी इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि निष्पक्षता की भावना को सहज वृत्ति के तहत माना जा सकता है, जहां मनुष्य तथा वानर स्वयं तथा दूसरों के साथ किये गए पक्षपाती व्यवहार के विरोध में स्वयं के हितों को नुकसान पहुंचाने के लिए भी तत्पर रहते हैं.<ref>''[http://www.accessmylibrary.com/comsite5/bin/pdinventory.pl?pdlanding=1&amp;referid=2930&amp;purchase_type=ITM&amp;item_id=0286-7261165 रिसर्चर्स वंडर इफ फेयरनेस इंस्टिंक्ट हैज़ बीन ब्रेड इनटू द ह्युमन रेस]'' (2000 के ''फिलाडेल्फिया इन्क्वायरर'' लेख का सारांश)</ref><ref>''[http://www.bbc.co.uk/science/humanbody/tv/humaninstinct/programme4.shtml कार्यक्रम 4 - प्राकृतिक जन्मे हीरोज]'' - [[बीबीसी|बीबीसी (BBC)]], बुधवार 13 नवंबर 2002</ref>
 
कई वैज्ञानिकों का मानना है कि बालकों द्वारा सभी चीजों को अपने मुंह में डालना एक सहज वृत्ति है क्योंकि इसी के द्वारा वे अपनी [[प्रतिरक्षा प्रणाली|प्रतिरक्षा प्रणाली]] को अपने वातावरण तथा परिवेश के बारे में यह बताते हैं कि उसे किस चीज को अपनाना है.<ref>[http://infoniac.com/health-fitness/dirt-is-good-for-our-health.html गंदगी हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा है]</ref>
 
अन्य समाजशास्त्रियों का तर्क है कि मनुष्य में कोई सहज वृत्ति नहीं होती है; वे उसे इस रूप में परिभाषित करते हैं, "एक प्रजाति विशेष के प्रत्येक सदस्य में मौजूद रहने वाले जटिल व्यवहार, जो सहज होते हैं और जिनपर काबू नहीं पाया जा सकता है." ऐसे समाजशास्त्रियों का तर्क है कि सेक्स और भूख जैसी प्रवृत्तियों को सहज वृत्ति नहीं माना जा सकता क्योंकि उनपर काबू पाया जा सकता है. यह पारिभाषिक तर्क जीव विज्ञान और समाजशास्त्र की कई परिचयात्मक पाठ्यपुस्तकों में मौजूद है,<ref>''समाजशास्त्र: एक परिचय'' - रॉबर्टसन, इयान; वॉर्थ प्रकाशक, 1989</ref> लेकिन अभी भी इसपर गरमा-गरम बहस जारी है.<br />मनोविज्ञानी इब्राहीम मास्लो का तर्क है कि मनुष्यों में अब कोई भी ''सहज वृत्ति'' मौजूद नहीं रह गयी है क्योंकि हमारे पास कुछ परिस्थितियों में उनपर काबू पाने की क्षमता मौजूद है. उनका मानना है कि जिसे हम सहज वृत्ति कहते हैं उसे अक्सर सटीक तरीके से परिभाषित नहीं किया जाता, और वास्तव में वह अति सशक्त ''इच्छा'' के सिवा और कुछ नहीं है. मास्लो के लिए, सहज वृत्ति वह है जिसपर काबू न पाया जा सके, और इसलिए अतीत में संभवतः यह मनुष्यों पर लागू होती रही होगी लेकिन आज ऐसा नहीं है.<ref>एब्राहम एच. मासलो, ''प्रेरणा और व्यक्तित्व'' अध्याय 4, इंस्टिग्ट थ्योरी रिएक्ज़माइंड</ref>
 
अपनी पुस्तक 'एन इंस्टिंक्ट फॉर ड्रेगंस<ref>डेविड ई. जोन्स, ''[http://books.google.com/books?id=P1uBUZupE9gC&amp;printsec=frontcover&amp;hl=sv&amp;source=gbs_v2_summary_r&amp;cad=0#v=onepage&amp;q=&amp;f=false एन इंस्टिंक्ट फॉर ड्रैगन]'' , न्यूयॉर्क: रूटलेज 2000, ISBN 0-415-92721-8</ref>' में मानव विज्ञानी डेविड ई. जोन्स यह परिकल्पना पेश करते हैं कि वानरों के समान ही मनुष्यों ने भी सांपों, बड़ी बिल्लियों तथा शिकारी पक्षियों के प्रति सहज प्रतिक्रियाओं को अपने पूर्वजों से प्राप्त किया है. लोकगीतों में पाए जाने वाले ड्रैगन में इन तीनों के गुण होते हैं, जो इस बात का उत्तर पेश करता है कि समान गुणों वाले ड्रैगन सभी महाद्वीपों की स्वतंत्र संस्कृतियों की कहानियों में क्यों दिखाई देते हैं. अन्य लेखकों का सुझाव है कि नशीली दवाओं के प्रभाव या स्वप्न में यह सहज वृत्ति ड्रैगन, सांपों, मकड़ियों से संबंधित कल्पनाओं को उत्पन्न कर सकती है; इसी कारणवश ये प्रतीक नशीली दवाओं की संस्कृति में काफी प्रचलित हैं. हालांकि, लोकगीतों में ड्रैगन की मौजूदगी की पारंपरिक मुख्यधारा व्याख्या मानव सहज वृत्ति की बजाय इस धारणा पर निर्भर करती है कि डायनासोर के जीवाश्म अवशेषों ने पूरी दुनिया में समान अटकलों को जन्म दिया था.
 
== इन्हें भी देखें ==
* मैलडैप्टिविटी
* जैविक आदेशक
* [[सजीव|जीव]]
* [[प्रकृति|प्रकृति]]
* तैयारियां (शिक्षा)
* मनोवैज्ञानिक नेविटिज़्म
* [[v:|विकिवर्सिटी]] पर [[v:Comparative Neuroscience|तुलनात्मक न्यूरोसाइंस]]
* इथोलॉजी
* मानव इथोलॉजी
 
== संदर्भ ==
पंक्ति 59:
{{NeuroethologyNavbox}}
 
[[Categoryश्रेणी:इथोलॉजी]]
[[Categoryश्रेणी:न्यूरोइथोलॉजी अवधारणाएं]]
 
[[ar:غريزة]]