"यथार्थवाद (हिंदी साहित्य)": अवतरणों में अंतर

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'''यथार्थवाद''' बीसवीं शती के तीसरे दशक के आसपास से [[हिन्दी साहित्य]] में पाई जाने वाली एक विशेष विचारधारा थी। इसके मूल में कुछ सामाजिक परिवर्तनों का हाथ था। जो परिवर्तन हुआ उसके मूलकारण थे राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम, कम्यूनिस्ट आन्दोलन, वैज्ञानिक क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर हुए विस्फोट, विश्व साहित्य में हुए परिवर्तनों का परिचय और आर्य समाज आदि सामाजिक आन्दोलन । यथार्थवादी लेखकों ने समाज के निम्नवर्ग के लोगों के दुखद जीवन का चित्रण किया । उनके उपन्यासों के नायक थे गरीव किसान, भिखमँगे, भंगी, रिक्शा चालक मज़दूर, भारवाही श्रमिक और दलित । इसके पहले कहानी साहित्य में ऐसे उपेक्षित वर्ग को कोई स्थान नहीं था ।
 
[[श्रेणी: साहित्यिक आंदोलन]]
yathartvad ke antar gat inter national realtion ke sadhnd ka samavesh or chitn ka samavesh h
 
Yathartyad ki kuch mukhy dharna h ki jese 4 dharna h phle h --raajniti or yudh ka krta state h 2-state ek aklei ikai h ya agar ek baar nirnya lele toh ye usko fir nhi badlta h chahe yo yudh hi kyo na ho 3--state jo nhi kaam ya nirnye leta h yo sabhi chijo ko dekh kr leta h or vo sahi bhi hota h 4---state ka main kaam hota h forigen countery se or dushmno se apne desh ki raksha krna{{वार्ता_शीर्षक}}
 
[[श्रेणी: साहित्यिक आंदोलन]]