"साहित्य दर्पण": अवतरणों में अंतर

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'''साहित्य दर्पण''' [[संस्कृत]] भाषा में साहित्य-विषयक महान ग्रन्थ है। इसके रचयिता [[विश्वनाथ]] हैं। साहित्य दर्पण के रचयिता का समय 14वीं शताब्दी ठहराया जाता है। [[मम्मट]] के [[काव्यप्रकाश]] के अनंतर साहित्यदर्पण प्रमुख रचना है। काव्य के श्रव्य एवं दृश्य दोनों प्रभेदों के संबंध में सुस्पष्ट विचारों की विस्तृत अभिव्यक्ति इस ग्रंथ की विशेषता है। काव्य प्रकाश की तरह इसका विभाजन 10 परिच्छेदों में है और प्राय: उसी क्रम से विषय-विवेचन भी है।
 
== ग्रंथ दर्शन ==
साहित्य दर्पण 10 परिच्छेदों में विभक्त है:
 
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''दशम परिच्छेद''' में [[अलंकार|अलंकारों]] का सोदाहरण निरूपण है जिनमें 12 शब्दालंकार, 70 अर्थालंकार और रसवत् आदि कुल 89 अलंकार परिगणित हैं।
 
== साहित्यदर्पण की विशेषताएँ ==
इसकी अपनी विशेषता है - '''छठा परिच्छेद''', जिसमें [[नाट्यशास्त्र]] से संबद्ध सभी विषयों का क्रमबद्ध रूप से समावेश कर दिया गया है। साहित्य दर्पण का यह सबसे सरल एवं विस्तृत परिच्छेद है। काव्यप्रकाश तथा संस्कृत साहित्य के प्रमुख लक्षण ग्रंथों में नाट्य संबंधी अंश नहीं मिलते। साथ ही नायक-नायिका-भेद आदि के संबंध में भी उनमें विचार नहीं मिलते। साहित्य दर्पण के तीसरे परिच्छेद में रस निरुपण के साथ-साथ नायक-नायिका-भेद पर भी विचार किया गया है। यह भी इस ग्रंथ की अपनी विशेषता है। ग्रंथ की लेखन शैली अतीव सरल एवं सुबोध है। पूर्ववर्ती आचार्यों के मतों को युक्तिपूर्ण खंडनादि होते हुए भी काव्य प्रकाश की तरह जटिलता इसमें नहीं मिलती।
 
दृश्य काव्य का विवेचन इसमें नाट्यशास्त्र और धनिक के दशरूपक के आधार पर है। रस, ध्वनि और गुणीभूत व्यंग्य का विवेचन अधिकांशत: ध्वन्यालोक और काव्य प्रकाश के आधार पर किया गया है तथा अलंकार प्रकरण विशेषत: राजानक रुय्यक के "अलंकार सर्वस्व" पर आधारित है। संभवत: इसीलिए इन आचार्यों का मतखंडन करते हुए भी ग्रंथकार उन्हें अपना उपजीव्य मानता है तथा उनके प्रति आदर व्यक्त करता है - "इक्ष्यलमुपजीज्यमानानां मान्यानां व्याख्यातेषु कटाक्षनिक्षेपेण" "महतां संस्तव एवंगौरवाय" आदि।
 
साहित्य दर्पण में काव्य का लक्षण भी अपने पूर्ववर्ती आचार्यों से स्वतंत्र रूप में किया गया मिलता है। साहित्य दर्पण से पूर्ववर्ती ग्रंथों में कथित काव्य लक्षण क्रमश: विस्तृत होते गए हैं और चंद्रालोक तक आते-आते उनका विस्तार अत्यधिक हो गया है, जो इस क्रम से द्रष्टव्य है-
 
"संक्षेपात् वाक्यमिष्टार्थव्यवच्छिन्ना, पदावली काव्यम्" (अग्नि पुराण);
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इस प्रकार क्रमश: विस्तृत होते काव्यलक्षण के रूप को साहित्यदर्पणकार ने "वाक्यम् रसात्मकम् काव्यम्" जैसे छोटे रूप में बाँध दिया है। केशव मिश्र के अलंकारशेखर से व्यक्त होता है कि साहित्यदर्पण का यह काव्य लक्षण आचार्य शौद्धोदनि के "काव्यं रसादिमद् वाक्यम् श्रुर्त सुखविशेषकृत्" का परिमार्जित एवं संक्षिप्त रूप है।
 
== वाह्य सूत्र ==
* [http://books.google.co.in/books?id=zaIkDl4Dl9kC&printsec=frontcover#v=onepage&q=&f=false साहित्यदर्पण] (गूगल पुस्तक; हिन्दी व्याख्या सहित ; व्याख्याकार - शालिग्राम शास्त्री)
* [http://books.google.co.in/books?id=8ZE-AAAAcAAJ&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false साहित्यदर्पण] (गूगल पुस्तक)
* [http://sa.wikibooks.org/wiki/साहित्य_दर्पण साहित्यदर्पण का सम्पूर्ण पाठ] (संस्कृत विकिबुक्स पर)
* [http://books.google.co.in/books?id=PPcmg1n8CWAC&printsec=frontcover#v=onepage&q=&f=false साहित्य दर्पण प्रश्नोत्तरी] (गूगल पुस्तक ; लेखक - देवदत्त शास्त्री)
 
[[श्रेणी:संस्कृत]]