"नागरीप्रचारिणी सभा": अवतरणों में अंतर

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== स्थापना ==
काशी नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना '''[[१६ जुलाई]], [[१८९३]] ई.''' को [[श्यामसुन्दर दास|श्यामसुंदर दास]] जी द्वारा हुई थी। यह वह समय था जब [[अंग्रेजी|अँगरेजी]], [[उर्दू]] और [[फारसी]] का बोलबाला था तथा हिंदी का प्रयोग करनेवाले बड़ी हेय दृष्टि से देखे जाते थे। नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना [[क्वीन्स कालेज]], [[वाराणसी]] के नवीं कक्षा के तीन छात्रों - बाबू श्यामसुंदर दास, पं. [[रामनारायण मिश्र]] और [[ठाकुर शिवकुमार सिंह|शिवकुमार सिंह]] ने कालेज के छात्रावास के बरामदे में बैठकर की थी। बाद में १६ जुलाई, १८९३ को इसकी स्थापना की तिथि इन्हीं महानुभावों ने निर्धारित की और आधुनिक हिंदी के जनक [[भारतेंदु हरिश्चंद्र]] के फुफेरे भाई बाबू राधाकृष्ण दास इसके पहले अध्यक्ष हुए। [[काशी]] के सप्तसागर मुहल्ले के घुड़साल में इसकी बैठक होती थीं। बाद में इस संस्था का स्वतंत्र भवन बना। पहले ही साल जो लोग इसके सदस्य बने उनमें महामहोपाध्याय पं. सुधाकर द्विवेदी, इब्राहिम जार्ज ग्रियर्सन, अंबिकादत्त व्यास, चौधरी प्रेमघन जैसे भारत ख्याति के विद्वान् थे।
 
तत्कालीन परिस्थितियों में सभा को अपनी उद्देश्यपूर्ति के लिए आरंभ से ही प्रतिकूलताओं के बीच अपना मार्ग निकालना पड़ा। किंतु तत्कालीन विद्वन्मंडल और जनसमाज की सहानुभूति तथा सक्रिय सहयोग सभा को आरंभ से ही मिलने लगा था, अतः अपनी स्थापना के अनंतर ही सभा ने बड़े ठोस और महत्वपूर्ण कार्य हाथ में लेना आरंभ कर दिया।
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सभा की स्थापना के समय तक उत्तर प्रदेश के न्यायालयों में अंग्रेजी और उर्दू ही विहित थी। सभा के प्रयत्न से, जिसमें स्व. महामना पं. मदनमोहन मालवीय का विशेष योग रहा, सन् १९०० से उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रदेश) में नागरी के प्रयोग की आज्ञा हुई और सरकारी कर्मचारियों के लिए हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं का जानना अनिवार्य कर दिया गया।
 
=== आर्यभाषा पुस्तकालय ===
सभा का यह पुस्तकालय देश में हिंदी का सबसे बड़ा पुस्तकालय है। स्व. ठा. गदाधरसिंह ने अपना पुस्तकालय सभा को प्रदान किया और उसी से इसकी स्थापना सभा में सन् १८९६ ई. में हुई। विशेषतः १९वीं शताब्दी के अंतिम तथा २०वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षो में हिंदी के जो महत्वपूर्ण ग्रंथ और पत्रपत्रिकाएँ छपी थीं उनके संग्रह में यह पुस्तकालय बेजोड़ है। इस समय तक लगभग १५,००० हस्तलिखित ग्रंथ भी इसके संग्रह में हो गए हैं। मुद्रित पुस्तकें डयूई की दशमलव पद्धति के अनुसार वर्गीकृत हैं। इसकी उपयोगिता एकमात्र इसी तथ्य से स्पष्ट है कि हिंदी में शोध करनेवाला कोई भी विद्यार्थी जब तक इस पुस्तकालय का आलोकन नहीं कर लेता तब तक उसका शोधकार्य पूरा नहीं होता। स्व. पं. [[महावीरप्रसाद द्विवेदी]], स्व. जगन्नाथदास 'रत्नाकर', स्व. पं. मयाशंकर याज्ञिक, स्व. डा. हीरानंद शास्त्री तथा स्व. पं. रामनारायण मिश्र ने अपने अपने संग्रह भी इस पुस्तकालय को दे दिए हैं जिससे इसकी उपादेयता और बढ़ गई हैं।
 
=== हस्तलिखित ग्रंथों की खोज ===
स्थापित होते ही सभा ने यह लक्ष्य किया कि प्राचीन विद्वानों के हस्तलेख नगरों और देहातों में लोगों के बेठनों में बँधे बँधे नष्ट हो रहे हैं। अतः सन् १९०० से सभा ने अन्वेषकों को गाँव-गाँव और नगर-नगर में घर-घर भेजकर इस बात का पता लगाना आरंभ किया कि किनके यहाँ कौन-कौन से ग्रंथ उपलब्ध हैं। उत्तर प्रदेश में तो यह कार्य अब तक बहुत विस्तृत और व्यापक रूप से हो रहा है। इसके अतिरिक्त पंजाब, दिल्ली, राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी यह कार्य हुआ है। इस खोज की त्रैवार्षिक रिपोर्ट भी सभा प्रकाशित करती है। सन् १९५५ तक की खोज का संक्षिप्त विवरण भी दो भागों में सभा ने प्रकाशित किया है। इस योजना के परिणामस्वरूप ही हिंदी साहित्य का व्यवस्थित इतिहास तैयार हो सका है और अनेक अज्ञात लेखक तथा ज्ञात लेखकां की अनेक अज्ञात कृतियाँ प्रकाश में आई हैं।
 
=== प्रकाशन ===
उत्तमोत्तम ग्रंथों और पत्रपत्रिकाओं का प्रकाशन सभा के मूलभूत उद्देश्यों में रहा है। अब तक सभा द्वारा भिन्न-भिन्न विषयों के लगभग ५०० ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं। त्रैमासिक 'नागरीप्रचारिणी पत्रिका' सभा का मुखपत्र तथा हिंदी की सुप्रसिद्ध शोधपत्रिका है। भारतीय इतिहास, संस्कृति और साहित्य विषयक शोधात्मक सामग्री इसमें छपती है और निर्व्यवधान प्रकाशित होती रहनेवाली पत्रिकाओं में यह सबसे पुरानी है। मासिक 'हिंदी', 'विधि पत्रिका' और 'हिंदी रिव्यू' (अंगरेजी) नामक पत्रिकाएँ भी सभा द्वारा निकाली गई थीं किंतु कालांतर में वे बंद हो गई। सभा के उल्लेखनीय प्रकाशनों में [[हिंदी शब्दसागर]], हिंदी व्याकरण, वैज्ञानिक शब्दावली, सूर, तुलसी, कबीर, जायसी, भिखारीदास, पद्माकर, जसवंसिंह, मतिराम आदि मुख्य मुख्य कवियों की ग्रंथावलियाँ, कचहरी-हिंदी-कोश, द्विवेदी अभिनंदनग्रंथ, संपूर्णानंद अभिनंदनग्रंथ, [[हिंदी साहित्य का इतिहास]] और [[हिंदी विश्वकोश]] आदि ग्रंथ मुख्य हैं।
 
=== मुद्रणालय ===
सन् १९५३ से सभा अपना प्रकाशन कार्य समुचित रूप से चलाते रहने के उद्देश्य से अपना मुद्रणालय भी चला रही है।
पुरस्कार पदक - विभिन्न विषयों के उत्तमोत्तम ग्रंथ अधिकाधिक संख्या में प्रकाशित होते रहें, इसे प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सभा प्रति वर्ष कई पुरस्कार एवं स्वर्ण तथा रजत पदक ग्रंथकर्ताओं को दिया करती है जिनका हिंदीजगत् में अत्यंत समादर है।
 
=== अन्यान्य प्रवृत्तियाँ ===
अपनी समानधर्मा संस्थाओं से संबंधस्थापन, अहिंदीभाषी छात्रों को हिंदी पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति देना, हिंदी की [[आशुलिपि]] (शार्टहैंड) तथा [[टंकण]] (टाइप राइटिंग) की शिक्षा देना, लोकप्रिय विषयों पर समय-समय पर सुबोध व्याख्यानों का आयोजन करना, प्राचीन और सामयिक विद्वानों के तैलचित्र सभाभवन में स्थापित करना आदि सभा की अन्य प्रवृत्तियाँ हैं।
 
सुप्रसिद्ध मासिक पत्रिका [[सरस्वती पत्रिका|सरस्वती]] का श्रीगणेश और उसके संपादनादि की संपूर्ण व्यवस्था आरंभ में इस सभा ने ही की थी। [[अखिल भारतीय हिंदी साहित्य संमेलन]] का संगठन और सर्वप्रथम उसका आयोजन भी सभा ने ही किया था। इसी प्रकार, संप्रति हिंदू विश्वविद्यालय में स्थित [[भारत कला भवन]] नामक अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त पुरातत्व और चित्रसंग्रह का एक युग तो संरक्षण, पोषण और संवर्धन यह सभा ही करती रही। अंततः जब उसका स्वतंत्र विकास यहाँ अवरुद्ध होने लगा और विश्वविद्यालय में उसकी भविष्योन्नति की संभावना हुई तो सभा ने उसे विश्वविद्यालय को हस्तांतरित कर दिया।
 
=== स्वर्ण जयंती और हीरक जयंती ===
संवत् २००० वि. में सभा ने महाराज विक्रमादित्य की द्विसहस्स्राब्दी तथा अपनी स्वर्णजयंतियाँ और जीवन के ६० वर्ष पूरे करने के उपलक्ष्य में सं. २०१० में अपनी हीरकजयंती के आयोजन बड़े समांरभपूर्वक किए। इन दोनों आयोजनों की सर्वाधिक उल्लेखनीय विशेषता यह रही की ये आयोजन उत्सव मात्र नहीं थे, प्रत्युत इन अवसरों पर सभा ने बड़े महत्वपूर्ण, ठोस तथा रचनात्मक कार्यों का समारंभ किया। उदाहरणार्थ, स्वर्णजयंती पर सभा ने अपना ५० वर्षों का विस्तृत इतिहास तथा नागरीप्रचारिणी पत्रिका का विक्रमांक (दो जिल्दों में) प्रकाशित किया। ५० वर्षों की खोज में ज्ञात सामग्री का विवरण एवं [[भारत कला भवन]] तथा [[आर्यभाषा पुस्तकालय]] में संगृहीत सामग्री की व्यवस्थित सूची प्रकाशित करने की भी उसकी योजना थीं, किन्तु ये कार्य खंडशः ही हो पाए। परिव्राजक स्वामी, सत्यदेव जी ने अपना आश्रम सत्यज्ञान निकेतन इसी अवसर पर देश के पश्चिमी भागों में प्रचार कार्य का केंद्र बनाने के निमित्त, सभा को दान कर दिया। इसी प्रकार हीरक जयंती पर सभा के ६० वर्षीय इतिहास के साथ हिंदी तथा अन्यान्य भारतीय भाषाओं के साहित्य का इन ६० वर्षों का इतिहास, नारीप्रचारिणी पत्रिका का विशेषांक, [[हिंदी शब्दसागर]] का संशोधन-परिवर्धन तथा आकर ग्रंथों की एक पुस्तकमाला प्रकाशित करने की सभा की योजना थी। यथोचित राजकीय सहयोग भी सभा को सुलभ हुआ, परिणामतः सभा ये कार्य सम्यक् रूप से संपन्न कर रही है।
 
=== हिन्दी विश्वकोश तथा हिन्दी शब्दसागर ===
उपर्युक्त कार्यों के अतिरिक्त '''[[हिन्दी विश्वकोश]]''' का प्रणयन सभा ने केंद्रीय सरकार की वित्तीय सहायता से किया है। इसके बारह भाग प्रकाशित हुए हैं। [[हिंदी शब्दसागर]] का संशोधन-परिवर्धन केंद्रीय सरकार की सहायता से सभा ने किया है जो दस खंडों में प्रकाशित हुआ है। यह हिंदी का सर्वाधिक प्रामाणिक तथा विस्तृत कोश है। दो अन्य छोटे कोशों 'लघु शब्दसागर' तथा 'लघुतर शब्दसागर' का प्रणयन भी छात्रों की आवश्यकतापूर्ति के लिए सभा ने किया है। सभा देवनागरी लिपि में भारतीय भाषाओं के साहित्य का प्रकाशन और हिंदी का अन्य भारतीय भाषाओं की लिपियों में प्रकाशित करने के लिए योजनाबद्ध रूप से सक्रिय हैं। [[प्रेमचंद]] जी के जन्मस्थान [[लमही]] (वाराणसी) में उनका एक स्मारक भी बनवाया है।
 
== सदर्भ ग्रन्थ ==
* अर्धशताब्दी इतिहास, नागरीप्रचारिणी सभा, काशी
* हीरकजयंती ग्रंथ, वही;
* नारीप्रचारिणी सभा, काशी के वार्षिक विवरण सं. २०११ से लेकर २०१९ तक।
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[हिन्दी साहित्य सम्मेलन]], [[प्रयाग]]
* [[हिन्दी शब्दसागर]]
* [[हिन्दी विश्वकोश]]
* [[देवनागरी]]
* [[हिन्दी]]
* [[ठाकुर शिवकुमार सिंह]]
* [[बाबू श्याम सुंदर दास]]
* [[मदन मोहन मालवीय|महामना मदन मोहन मालवीय]]
* [[आरा नागरी प्रचारिणी सभा]]
* [[आगरा नागरीप्रचारिणी सभा]]
* [[हिन्दी प्रचारिणी सभा, मॉरीशस]]
 
== वाह्य सूत्र ==
* [http://tempweb34.nic.in/xnagari/html/parichay.php '''नागरीप्रचारिणी सभा''' : संक्षिप्त परिचय]
* [http://dsal.uchicago.edu/dictionaries/dasa-hindi/index.html हिंदी शब्दसागर] - हिन्दी शब्द देवनागरी या रोमन में लिखकर उनके अर्थ ढ़ूँढ़िये।
* [http://www.cdacnoida.in/vishwa/vishwa/homepage.asp '''हिन्दी विश्वकोश'''] - इसके निर्माण में नागरीप्रचारिणी सभा का प्रमुख योगदान है।
* [http://www.vikalpanoop.blogspot.in/2012/11/14-1949-17-343-10-1893.html हिन्दी का विकास और नागरी प्रचारिणी सभा]
* [http://www.in.jagran.yahoo.com/epaper/article/index.php?page=article&choice=print_article&location=40&category=&articleid=111721053171186312 काशी से ही अदालती भाषा का मिला आसन]
* [http://nagaripracharinisabha.blogspot.com/ नागरी प्रचारिणी सभा] (हिन्दी चिट्ठा)
 
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