"निघंटु": अवतरणों में अंतर

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निघंटु के पाँच अध्याय हैं। प्रारंभ के तीन अध्यायों में "नैघंटुक" शब्दों का संग्रह है। चतुर्थ अध्याय में "नैगम" शब्द और पंचम अध्याय में "दैवत" शब्द एकत्रित किए गए हैं। प्रत्येक अध्याय में विभागद्योतक खंड हैं। पहले तीन अध्यायों में सजातीय शब्दों का चयन किया गया है। यह नियम चतुर्थ और पंचम अध्यायों में नहीं है।
 
=== प्रथम अध्याय ===
प्रथम अध्याय के खंडों में नाम और धातु इस प्रकार हैं :
 
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उपर्युक्त अध्यायों में पर्यायवाचक शब्दों का संग्रह किया है। यहाँ नैघंटुक कांड समाप्त होता है। इस अध्याय में पदसंख्या 410 है। पूरे नैघंटुक कांड के पदों की संख्या 1340 है।
 
=== द्वितीय अध्याय ===
द्वितीय अध्याय के खंडों में नाम और धातु निम्नांकित रूप में हैं।
1. कर्म के 26,
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इस अध्याय के पदों की संख्या 516 है।
 
=== तृतीय अध्याय ===
तृतीय अध्याय के खंडों में नाम और धातु इस प्रकार हैं :
 
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इन शब्दों के प्रकृति प्रत्यय ज्ञान के पदों की संख्या 279 है।
 
=== चतुर्थ अध्याय ===
चतुर्थ अध्याय को 'नैगम कांड' कहा है। इस अध्याय में एक शब्द अनेकार्थ वाचक है। 16 ज्वल् धातु के 11 और 17 ज्वलन के 11 नाम कहे है। इस अध्याय में पदसंख्या 414 है।
 
=== पंचम अध्याय ===
पंचम अध्याय में मुख्य रूप से देवताओं का वर्णन है। इसे दैवतकांड कहते हैं। इसमें छह खंड हैं। इन खंडों में क्रमश: 3, 13, 36, 32, और 31 पद हैं। ये सभी पद देवतावाचक हैं। इस अध्याय की पदसंख्या 151 है।
 
पाँचों अध्यायों के पदों की संख्या का योग 1770 होता है। प्रत्येक अध्याय के अंत में खडों के प्रारंभिक शब्दों का संकलन किया है। इस निघंटु पर यास्क रचित निर्वचन है, जिसका नाम '''[[निरुक्त]]''' है।
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[निरुक्त]]
* [[यास्क]]
* [[शब्दकोश]]
* [[अमरकोश]]
* [[व्युत्पत्तिशास्त्र]]
 
[[श्रेणी:संस्कृत]]