"सुगौली संधि": अवतरणों में अंतर
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'''सुगौली संधि''', [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] और [[नेपाल]] के राजा के बीच हुई एक संधि है, जिसे 1814-16 के दौरान हुये [[गोरखा युद्ध
संधि के तहत, नेपाल ने अपने भूभाग का लगभग एक तिहाई हिस्सा गंवा दिया जिसमे नेपाल के राजा द्वारा पिछ्ले 25 साल में जीते गये क्षेत्र जैसे कि पूर्व में [[सिक्किम]], पश्चिम में [[कुमाऊं]] और [[गढ़वाल]] राजशाही और दक्षिण में तराई का अधिकतर क्षेत्र शामिल था। तराई भूमि का कुछ हिस्सा 1816 में ही नेपाल को लौटा दिया गया। 1860 में तराई भूमि का एक बड़ा हिस्सा नेपाल को 1857 के [[१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
काठमांडू में तैनात ब्रिटिश प्रतिनिधि मल्ला युग के बाद नेपाल में रहने पहला पश्चिमी व्यक्ति था। (यह ध्यान देने योग्य है कि 18 वीं सदी के मध्य में गोरखाओं ने नेपाल पर विजय प्राप्ति के बाद बहुत से ईसाई धर्मप्रचारकों को नेपाल से बाहर निकाल दिया था)। नेपाल में ब्रिटिशों के पहले प्रतिनिधि, एडवर्ड गार्डनर को काठमांडू के उत्तरी हिस्से में तैनात किया गया था, और आज यह स्थान [[लाज़िम्पाट]] कहलाता है और यहां ब्रिटिश और भारतीय दूतावास स्थित हैं। दिसम्बर 1923 में सुगौली संधि को अधिक्रमित कर "सतत शांति और मैत्री की संधि", में प्रोन्नत किया गया और ब्रिटिश निवासी के दर्जे को प्रतिनिधि से बढाकर दूत का कर दिया गया। 1950 में [[भारत]] (अब स्वतंत्र) और नेपाल ने एक नयी संधि पर दो स्वतंत्र देशों के रूप में हस्ताक्षर किए गए जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच संबंधों को एक नए सिरे से स्थापित करना था।
== सुगौली संधि और मिथिला ==
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दो साल लंबे चले ब्रिटिश- नेपाली युद्ध को खत्म करने के लिए 1816 में, ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल की गोरखा राजशाही ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इस संधि के तहत, मिथिला क्षेत्र का एक हिस्सा भारत से अलग होकर नेपाल के अधिकार क्षेत्र में चला गया।<ref>Bansh, Hari and Jha, Jayanti (January–March 2005). [http://www.hinduismtoday.com/modules/smartsection/item.php?itemid=1392 A Ritual for Ladies Only."] [http://www.hinduismtoday.com Hinduism Today Magazine]. Accessed May 5, 2012.</ref> इस भाग को नेपाल में, पूर्वी तराई या मिथिला कहा जाता था।<ref>{{cite book|last=Paul R.|first=Brass|title=Language religion and Politics in North India|year=1974|publisher=iUniverse Inc|location=Lincoln, N.E|isbn=0-595-34393-5|pages=55|url=http://books.google.co.in/books?id=SylBHS8IJAUC&pg=PA55&lpg=PA55&dq=Sugauli+treaty+divided+Mithila&source=bl&ots=HphGQWXnhW&sig=08Mnsw_LTiCuyy2ICqvSPr0IB2c&hl=en&sa=X&ei=0RKlT--2No7JrAem8YnvAQ&ved=0CGUQ6AEwAQ#v=onepage&q=Sugauli%20treaty%20divided%20Mithila&f=false}}</ref>
सुगौली संधि के बाद से, नेपाल मिथिला (गौण भाग) के उत्तरी भागों पर नियंत्रण रखता है, जबकि दक्षिणी भाग (मुख्य भाग) भारत के नियंत्रण में हैं।
== सुगौली संधि से पहले तक ==
सुगौली संधि के अस्तित्व में आने तक, पूर्व में [[दार्जिलिंग]] और तिस्ता, दक्षिण-पश्चिम में [[नैनीताल]] और पश्चिम में कुमाऊं राजशाही, गढ़वाल राजशाही और बाशहर जैसे क्षेत्र नेपाल के अधीन आते थे। इन क्षेत्रों पर नेपाल ने पिछले लगभग 25 वर्षों के दौरान विजय प्राप्त की थी, जिन्हें संधि के बाद भारत को वापस लौटाया गया।
== सुगौली संधि की शर्तें ==
ब्रिटिश-नेपाली युद्ध के बाद, नेपाल सरकार और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच शांति और मैत्री की एक संधि पर हस्ताक्षर किये गये। 2 दिसम्बर 1815 को इस संधि पर नेपाल सरकार की ओर से राज गुरु गजराज मिश्रा जिनके सहायक चंद्र शेखर उपाध्याय थे और कंपनी की ओर से लेफ्टिनेंट कर्नल पेरिस ब्रेडशॉ द्वारा हस्ताक्षर किये गये। 4 मार्च, 1816 को चंद्र शेखर उपाध्याय और जनरल डेविड ऑक्टरलोनी द्वारा मकवानपुर में संधि की हस्ताक्षरित प्रतियों का आदान प्रदान
1- ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा के बीच सदैव शांति और मित्रता रहेगी।
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6-नेपाल के राजा, सिक्किम के राजा को उनके द्वारा शासित प्रदेशों के कब्जे के संबंध में कभी परेशान करने या सताने की किसी भी गतिविधि में संलग्न नहीं होंगे। यदि नेपाल और सिक्किम के बीच कोई विवाद होता है तो उसे ईस्ट इंडिया कंपनी की मध्यस्थता के लिए भेजा जाएगा।
7-एतद्द्वारा नेपाल के राजा, ब्रिटिश सरकार की सहमति के बिना किसी भी ब्रिटिश, अमेरिकी या यूरोपीय नागरिक को अपनी किसी भी सेवा में ना तो नियुक्त करेंगे ना ही उसकी सेवाओं को बनाये रखेंगे।
8-एतद्द्वारा नेपाल और ब्रिटेन (ईस्ट इंडिया कंपनी) के बीच स्थापित शांति और सौहार्द के संबंधों की सुरक्षा और उनमें सुधार के उद्देश्य से, यह सहमति बनती है कि एक का मान्यता प्राप्त मंत्री, दूसरे की अदालत में रहेगा।
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वास्तव में, सुगौली संधि, ईस्ट इंडिया कंपनी के पक्ष में थी और इसके द्वारा नेपाल को अपने भूभाग का एक बड़ा हिस्सा गंवाना पड़ा था। इसलिए इसके बाद दिसम्बर 1816 में एक उत्तरगामी समझौते पर सहमति बनी जिसके अनुसार नेपाल को मेची नदी के पूर्व और महाकाली नदी के पश्चिम के बीच का तराई क्षेत्र वापस लौटा दिया गया। इस समझौते के फलस्वरूप दो लाख रुपए प्रतिवर्ष की क्षतिपूर्ति राशि के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया। एक भूमि सर्वेक्षण के द्वारा दोनों राष्ट्रों के बीच की सीमा को तय करने का प्रस्ताव भी स्वीकार किया गया था।
== संधि की वैधता ==
1. संधि के अनुच्छेद 9 के अनुसार संधि का अनुमोदन नेपाल के राजा द्वारा होना अनिवार्य था, लेकिन राजा गीर्वान युद्ध बिक्रम शाह द्वारा अनुमोदित संधि का अभिलेख निर्णायक रूप से नहीं मिलता है।
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3. कुछ लोगों कहना है कि चूंकि संधि, नेपाली राजशाही और अंग्रेजों के बीच हुई थी इसलिए इसे नेपाल गणराज्य और भारत गणराज्य के मध्य लागू नहीं किया जा सकता।
== सीमा विवाद ==
क्योंकि इस संधि में राष्ट्रीय परिसीमन को स्पष्ट नहीं किया गया था, इसलिए इसके प्रभाव आज तक कायम है:
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2. नतीजा यह है कि आज भी नेपाल-भारत की सीमा रेखा के 54 स्थानों पर अतिक्रमण और विवादों के आरोप हैं। प्रमुख क्षेत्रों में कालापानी-लिम्पियाधुरा, सुस्ता, मेची क्षेत्र, टनकपुर, सन्दकपुर, पशुपतिनगर हिले थोरी आदि स्थानों की पहचान की गई है।
== सन्दर्भ ==
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== बाहरी कड़ियाँ ==
[[ca:Tractat de Sugauli]]
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