"रसगंगाधर": अवतरणों में अंतर

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वस्तुत: पंडितराज की अपूर्व विवेचनशैली एवं उच्चतर प्रौढ़ि के कारण रसगंगाधर को अप्रतिम सम्मान एवं महनीय उपादेयत्व प्राप्त हुआ है और वही उसपर अनेक टीकाओं एवं अनुवादों की बाढ़ की प्रतिरोधिनी भी सिद्ध हुई।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://sanskritvishvam.com/index.php?page=ebook_data&&sub=285 रसगंगाधर] : पाठ, टीका एवं अर्थ
 
[[श्रेणी:संस्कृत ग्रन्थ]]