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'''सुन्दरमूर्ति स्वमिगल नयन्नर''' (d. [[824]]) आठवी सदी के [[तमिलनाडु]] के एक नायनमार सन्त थे। वे भगवान शिव के भक्त थे और चार तमिल साम्य अचार्यो मे से एक है।
 
== बचपन ==
उनका जन्म थिरुनवलूर नाम के गांव मे हुआ। उनके बचपन का नाम "नम्बि अरुरार" था । उनके पिता का नाम "सदैयार" और माँ का नाम "इसैग्नानि" था। वे ब्राह्मण थे।
 
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== पौराणिक कथा ==
दन्तकथा के अनुसार जब सुन्दरार की शादी थी तब शंकर भगवान वहाँ आए। वे एक साधु के रूप मे थे। उनके पास एक पर्चा था, जिसके अनुसार सुन्दरार के दादा ने वचन दिया था कि उनके आने वाली पीढी उनके अनुयायी रहेगे और उनकी सेवा करगे। सुन्दरार ने इसे अपनी नियती समझा और साधु के साथ तमिलनाडु का भ्रमण किया, वहाँ के मन्दिरो की सैर की। थान्जवुर के तिरूवरूर ग्राम पहुँचने पर उन्हे परवाई नाम की लडकी से पहचान हुई और बाद मे उन्होने उनसे शादी की।
 
दन्तकथा के अनुसार उन्होने थिरुवरूर मे सब ६३ [[नायनमार]] के नाम का किर्तन किया । इन किर्तनों को तमिलनाडु मे [[तिरुतोन्दर तोकै]] के नाम से जाना गया। उनका तमिलनाडु भ्रमण जारी रहा, उन्होने भगवान शंकर के भजन लिखे और कई चमत्कारो को उनके साथ जोडा जाता है।
 
== राजा का साथ ==
उनकी ख्याति [[केरल]] के राजा [[चेरमन परुमल]] तक भी पहूँची। राजा परुमल तिरुवरुर को आए और सुन्दरार से मिले। राजा और सुन्दरार की दोस्ती हुई और उन दोनो ने साथ-साथ तीर्थो की यात्रा की।
 
== मृत्यु ==
थोडे साल बाद सुन्दरार थक गए और शंकर भगवान की स्तुति की । उन्होने पुछा "इस जनम से आप हमे मोक्ष दे" । शंकर भगवान ने उनको एक हाथी दिया । सुन्दरार ने शंकर भगवान से परूमल को भी स्वर्ग आने की अनुमति माँगी। सुन्दारर, उनका हाथी, परुमल और उनका घोडा स्वर्गलोक को गए, ८२५ साल मे ।
 
== अनुमोदक ==
<div class="references-small"><references/></div>
 
[[Categoryश्रेणी:नायनमार]]
 
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