"राग बहार": अवतरणों में अंतर
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राग बहार [[काफ़ी]] [[थाट]] से उत्पन्न [[षाड़व षाड़व]] जाति का राग है। अर्थात इसके [[आरोह]] तथा [[अवरोह]] से छे छे स्वरों का प्रयोग होता है। इसके गाने का समय रात्रि का दूसरा प्रहर है। [[गांधार]] और [[निषाद]] दोनो स्वर कोमल है लेकिन गायक अक्सर दोनों निषाद लेते हैं, शुद्ध निषाद का प्रयोग [[मध्य सप्तक]] में होता है और वह भी आरोह में। अन्य [[शुद्ध स्वर|स्वर शुद्ध]] लगते हैं। कुछ गायक मध्यम के साथ [[विवादी स्वर|विवादी]] के रूप में शुद्ध गंधार का भी थोड़ा सा प्रयोग करते हैं। लेकिन यह नियम नहीं, इसके अवरोह में कभी कभी ऋषभ और [[धैवत]] दोनो वर्जित करते हुए
== संदर्भ ==
<references/>
{{हिंदुस्तान संगीत पद्धति के प्रमुख राग}}
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