"झलकारी बाई": अवतरणों में अंतर

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[[imageचित्र:jhalkari bai.png|150px|right|thumb|[[भारत सरकार]] द्वारा सन [[2001]] में झलकारी बाई के सम्मान में जारी एक [[डाक टिकट]]]] '''झलकारी बाई''' ([[२२ नवंबर]] [[१८३०]] - [[४ अप्रैल]] [[१८५७]]) [[झाँसी]] की रानी [[लक्ष्मीबाई]] की नियमित सेना में, महिला शाखा [[दुर्गा दल]] की सेनापति थीं।<ref name="वीरांगना - झलकारी बाई">{{cite web |url= http://www.lakesparadise.com/madhumati/show_artical.php?id=982|title=वीरांगना - झलकारी बाई| accessmonthday=[[१८ अक्तूबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=पीएचपी|publisher=मधुमती|language=}}</ref> वे लक्ष्मीबाई की [[हमशक्ल]] भी थीं इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। अपने अंतिम समय में भी वे रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अंग्रेज़ों के हाथों पकड़ी गयीं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। उन्होंने प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झाँसी की रानी के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अद्भुत वीरता से लड़ते हुए ब्रिटिश सेना के कई हमलों को विफल किया था। यदि लक्ष्मीबाई के सेनानायकों में से एक ने उनके साथ विश्वासघात न किया होता तो झांसी का किला ब्रिटिश सेना के लिए प्राय: अभेद्य था। झलकारी बाई की गाथा आज भी [[बुंदेलखंड]] की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है। भारत सरकार ने २२ जुलाई २००१ में झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया है,<ref>{{cite web |url= http://www.kamat.com/database/pictures/philately/jhalkari_bai.htm|title=डेटाबेस ऑफ इंडियन स्टाम्प्स| accessmonthday=[[१८ अक्तूबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=एचटीएम|publisher=कामत पॉटपुरी|language=}}</ref> उनकी प्रतिमा और एक स्मारक [[अजमेर]], [[राजस्थान]] में निर्माणाधीन है, [[उत्तर प्रदेश]] सरकार द्वारा उनकी एक प्रतिमा [[आगरा]] में स्थापित की गयी है, साथ ही उनके नाम से [[लखनऊ]] मे एक धर्मार्थ चिकित्सालय भी शुरु किया गया है।<ref name="वीरांगना - झलकारी बाई"/>
== प्रारंभिक जीवन ==
झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को [[झांसी]] के पास के भोजला गाँव में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। झलकारी बाई के पिता का नाम सदोवर सिंह और माता का नाम जमुना देवी था। जब झलकारी बाई बहुत छोटी थीं तब उनकी माँ की मृत्यु के हो गयी थी, और उसके पिता ने उन्हें एक लड़के की तरह पाला था। उन्हें घुड़सवारी और हथियारों का प्रयोग करने में प्रशिक्षित किया गया था। उन दिनों की सामाजिक परिस्थितियों के कारण उन्हें कोई औपचारिक शिक्षा तो प्राप्त नहीं हो पाई, लेकिन उन्होनें खुद को एक अच्छे योद्धा के रूप में विकसित किया था। झलकारी बचपन से ही बहुत साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ बालिका थी। झलकारी घर के काम के अलावा पशुओं के रखरखाव और जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने का काम भी करती थी। एक बार जंगल में उसकी मुठभेड़ एक [[तेंदुआ|तेंदुए]] के साथ हो गयी थी, और झलकारी ने अपनी [[कुल्हाड़ी]] से उस जानवर को मार डाला था। एक अन्य अवसर पर जब डकैतों के एक गिरोह ने गाँव के एक व्यवसायी पर हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था।<ref>{{cite web |url= http://www.geocities.com/dakshina_kan_pa/art31/women1.htm|title=ग्रेट वूमेन ऑफ इंडिया| accessmonthday=[[१८ अक्तूबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=एचटीएम|publisher=Dakshina Kannada Philatelic and Numismatic Association|language=अँग्रेज़ी}}</ref> उसकी इस बहादुरी से खुश होकर गाँव वालों ने उसका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक '''पूरन कोरी''' से करवा दिया, पूरन भी बहुत बहादुर था, और पूरी सेना उसकी बहादुरी का लोहा मानती थी। एक बार ''गौरी पूजा'' के अवसर पर झलकारी गाँव की अन्य महिलाओं के साथ महारानी को सम्मान देने झाँसी के किले मे गयीं, वहाँ रानी लक्ष्मीबाई उन्हें देख कर अवाक रह गयी क्योंकि झलकारी बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह दिखतीं थीं (दोनो के रूप में आलौकिक समानता थी)। अन्य औरतों से झलकारी की बहादुरी के किस्से सुनकर रानी लक्ष्मीबाई बहुत प्रभावित हुईं। रानी ने झलकारी को दुर्गा सेना में शामिल करने का आदेश दिया। झलकारी ने यहाँ अन्य महिलाओं के साथ [[बंदूक]] चलाना, [[तोप]] चलाना और [[तलवार]]बाजी की प्रशिक्षण लिया। यह वह समय था जब झांसी की सेना को किसी भी ब्रिटिश दुस्साहस का सामना करने के लिए मजबूत बनाया जा रहा था।
 
== स्वाधीनता संग्राम में भूमिका ==
लार्ड [[डलहौजी]] की राज्य हड़पने की नीति के चलते, ब्रिटिशों ने निःसंतान लक्ष्मीबाई को उनका उत्तराधिकारी गोद लेने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि वे ऐसा करके राज्य को अपने नियंत्रण में लाना चाहते थे। हालांकि, ब्रिटिश की इस कार्रवाई के विरोध में रानी के सारी सेना, उसके सेनानायक और झांसी के लोग रानी के साथ लामबंद हो गये और उन्होने आत्मसमर्पण करने के बजाय ब्रिटिशों के खिलाफ हथियार उठाने का संकल्प लिया। [[अप्रैल]] [[१८५८]] के दौरान, लक्ष्मीबाई ने झांसी के किले के भीतर से, अपनी सेना का नेतृत्व किया और ब्रिटिश और उनके स्थानीय सहयोगियों द्वारा किये कई हमलों को नाकाम कर दिया। रानी के सेनानायकों में से एक '''दूल्हेराव''' ने उसे धोखा दिया और किले का एक संरक्षित द्वार ब्रिटिश सेना के लिए खोल दिया। जब किले का पतन निश्चित हो गया तो रानी के सेनापतियों और झलकारी बाई ने उन्हें कुछ सैनिकों के साथ किला छोड़कर भागने की सलाह दी। रानी अपने घोड़े पर बैठ अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ झांसी से दूर निकल गईं।
 
झलकारी बाई का पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गया लेकिन झलकारी ने बजाय अपने पति की मृत्यु का शोक मनाने के, ब्रिटिशों को धोखा देने की एक योजना बनाई। झलकारी ने लक्ष्मीबाई की तरह कपड़े पहने और झांसी की सेना की कमान अपने हाथ मे ले ली। जिसके बाद वह किले के बाहर निकल ब्रिटिश [[जनरल ह्यूग रोज़]] के शिविर मे उससे मिलने पहँची। ब्रिटिश शिविर में पहँचने पर उसने चिल्लाकर कहा कि वो जनरल ह्यूग रोज़ से मिलना चाहती है। रोज़ और उसके सैनिक प्रसन्न थे कि न सिर्फ उन्होने झांसी पर कब्जा कर लिया है बल्कि जीवित रानी भी उनके कब्ज़े में है। जनरल ह्यूग रोज़ जो उसे रानी ही समझ रहा था, ने झलकारी बाई से पूछा कि उसके साथ क्या किया जाना चाहिए? तो उसने दृढ़ता के साथ कहा,''मुझे फाँसी दो।'' जनरल ह्यूग रोज़ झलकारी का साहस और उसकी नेतृत्व क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ, और झलकारी बाई को रिहा कर दिया गया. इसके विपरीत कुछ इतिहासकार मानते हैं कि झलकारी इस युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुई। एक बुंदेलखंड किंवदंती है कि झलकारी के इस उत्तर से जनरल ह्यूग रोज़ दंग रह गया और उसने कहा कि "यदि भारत की १% महिलायें भी उसके जैसी हो जायें तो ब्रिटिशों को जल्दी ही भारत छोड़ना होगा"।
 
== ऐतिहासिक एवं साहित्यिक उल्लेख ==
मुख्यधारा के इतिहासकारों द्वारा, झलकारी बाई के योगदान को बहुत विस्तार नहीं दिया गया है, लेकिन आधुनिक स्थानीय लेखकों ने उन्हें गुमनामी से उभारा है। [[अरुणाचल प्रदेश]] के राज्यपाल (२१-१०-१९९३ से १६-०५-१९९९ तक) और श्री [[माता प्रसाद]] ने झलकारी बाई की जीवनी की रचना की है। इसके अलावा [[चोखेलाल वर्मा]] ने उनके जीवन पर एक वृहद काव्य लिखा है, [[मोहनदास नैमिशराय]] ने उनकी जीवनी को पुस्तकाकार दिया है<ref>{{cite web |url= http://pustak.org/bs/home.php?bookid=3218|title=वीरांगना झलकारी बाई| accessmonthday=[[१८ अक्तूबर]]|accessyear=[[२००९]]|format=पीएचपी|publisher=भारतीय साहित्य संग्रह|language=}}</ref> और [[भवानी शंकर विषारद]] ने उनके जीवन परिचय को लिपिबद्ध किया है। राष्ट्रकवि [[मैथिलीशरण गुप्त]] ने झलकारी की बहादुरी को निम्न प्रकार पंक्तिबद्ध किया है - <br />
जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झाँसी की झलकारी थी। <br />
गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही, <br />
वह भारत की ही नारी थी।
== बाह्यसूत्र ==
* [http://www.youtube.com/watch?v=xzffm9qfxOY डॉ. आर एस दहिया का वक्तव्य यू ट्यूब पर]
 
== संदर्भ ==
* [http://bundelkhanddarshan.com बुंदेलखंड के गौरव बुंदेलखंड दर्शन डोट कॉम ]
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