"परमात्मा": अवतरणों में अंतर

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'''परमात्मा''' शब्द दो शब्दों ‘परम’ तथा `आत्मा’ की [[सन्धि]] से बना है। परम का अर्थ सर्वोच्च एवं [[आत्मा]] से अभिप्राय है चेतना, जिसे प्राण शक्ति भी कहा जाता है। [[ईश्वर]] । आधुनिक हिन्दी में ये शब्द [[ईश्वर]] का ही मतलब रखता है ।
 
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* [http://rachanakar.blogspot.com/2009/11/blog-post_25.html प्रोफेसर महावीर सरन जैन का आलेख - आत्‍मा एवं परमात्‍मा का भेद तात्‍विक नहीं है; भाषिक है]
 
aatma
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'''परमात्मा -
मैं न ज्योति हूँ न मैं प्रकाश हूँ क्योकि मैं पदार्थ नहीं हूँ. मैं शरीर और बुद्धि भी नहीं हूँ. मैं पूर्ण विशुद्ध ज्ञान हूँ. मैं सर्वत्र हूँ. सभी जड़ चेतन में मैं अंश रूप में व्याप्त हूँ. मैं न जन्म लेता हूँ न मरता हूँ, मैं सदा शाश्वत हूँ. मेरी उपस्थिति से प्रकृति भूतों की रचना करती है. मैं परम स्थिति हूँ और उपलब्धि का विषय हूँ. मैं जब प्रगट होता हूँ प्रकृति और पुरुष का नाश कर देता हूँ.'''
सन्दर्भ -प्रो बसंत जोशी के आलेख से
 
[[श्रेणी:धर्म]]
[[श्रेणी:दर्शन]]
[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]
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'''परमात्मा -
मैं न ज्योति हूँ न मैं प्रकाश हूँ क्योकि मैं पदार्थ नहीं हूँ. मैं शरीर और बुद्धि भी नहीं हूँ. मैं पूर्ण विशुद्ध ज्ञान हूँ. मैं सर्वत्र हूँ. सभी जड़ चेतन में मैं अंश रूप में व्याप्त हूँ. मैं न जन्म लेता हूँ न मरता हूँ, मैं सदा शाश्वत हूँ. मेरी उपस्थिति से प्रकृति भूतों की रचना करती है. मैं परम स्थिति हूँ और उपलब्धि का विषय हूँ. मैं जब प्रगट होता हूँ प्रकृति और पुरुष का नाश कर देता हूँ.'''
सन्दर्भ -प्रो बसंत जोशी के आलेख से