"पराशर झील": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:पराशर झील.jpeg|thumb|right|200px|परशर झील और उसमें तैरता भूखण्ड, साथ ही में है पराशर ऋषि का मंदिर।]]
'''पराशर झील''' मंडी की उत्तर दिशा में लगभग ५० किलोमीटर दूर [[हिमाचल प्रदेश]] की प्राकृतिक झीलों में से एक है।
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मंडी से निजी वाहन में दो घंटे से अधिक लग जाते हैं। जहाँ मंडी २,६६० फुट (८०० मीटर) पर बसा हुआ है, वहीं पराशर झील ९,१०० फुट (२,७३० मीटर) की ऊँचाई पर स्थित है। दुर्गम क्षेत्र में होने के कारण और अधिक प्रचारित ना होने के कारण यहाँ अधिक लोग नहीं जाते। पराशर की ओर ज्यादा पर्यटक नहीं मुडते, क्योंकि यह स्थल ज्यादा प्रचारित नहीं है। वैसे यहाँ वर्षभर आया जा सकता है।
 
== जाने का मार्ग ==
* मंडी से जोगेंद्रनगर की सड़क पर लगभग डेढ किमी दूर एक सडक दांई ओर चढ़ती है। यह सडक कटौला व कांढी होकर बागी पहुंचती है। यहां से पैदल ट्रैक द्वारा झील मात्र आठ किलोमीटर दूर रह जाती है। बागी से आगे गाडी से भी जाया जा सकता है।
* दूसरा रास्ता राष्ट्रीय राजमार्ग पर मंडी से आगे बसे सुंदर पनीले स्थल पंडोह से नोरबदार होकर पहुंचता है।
* तीसरा रास्ता माता हणोगी मंदिर से बान्हदी होकर है, और
* चौथा रास्ता कुल्लू से लौटते समय बजौरा नामक स्थान के सैगली से बागी होकर है।
मंडी से द्रंग होकर भी कटौला कांढी बागी जाया जा सकता है। पराशर पहुंचने के सभी रास्ते हरे-भरे जंगली पेड-पौधों फलफूल व जडी बूटियों से भरपूर हैं और ज्यों-ज्यों पराशर के निकट पहुंचते हैं प्रकृति का रंग-ढंग भी बदलता जाता है।
 
== झील का सौंदर्य ==
प्राकृतिक सौंदर्य के अतिरिक्त झील में तैरता भूखंड एक आश्चर्य है। झील में तैर रही पृथ्वी के इस बेडे को स्थानीय भाषा में टाहला कहते हैं। बच्चों से बूढ़ो तक के लिए यह आश्चर्य है क्योंकि यह झील में इधर से उधर टहलता है। झील के किनारे आकर्षक पैगोडा शैली में निर्मित मंदिर है, जिसे १४वीं शताब्दी में मंडी रियासत के राजा बाणसेन ने बनवाया था। कला संस्कृति प्रेमी पर्यटक मंदिर प्रांगण में बार-बार जाते हैं। कहा जाता है कि जिस स्थान पर मंदिर है वहां ऋषि पराशर ने तपस्या की थी। पिरमिडाकार पैगोडा शैली के गिने-चुने मंदिरों में से एक काठ निर्मित, ९२ बरसों में बने, तिमंजिले मंदिर की भव्यता अपने आप में उदाहरण है। पारंपरिक निर्माण शैली में दीवारें चिनने में पत्थरों के साथ लकड़ी की कड़ियों के प्रयोग ने पूरे प्रांगण को अनूठी व अमूल्य कलात्मकता प्रदान की है। मंदिर के बाहरी ओर व स्तंभों पर की गई नक्काशी अद्भुत है। इनमें उकेरे देवी-देवता, सांप, पेड-पौधे, फूल, बेल-पत्ते, बर्तन व पशु-पक्षियों के चित्र क्षेत्रीय कारीगरी के नमूने हैं।
 
== स्थानीय पराशर मंदिर ==
[[चित्र:पराशर ऋषि की मूर्ति.jpeg|thumb|right|200px|पराशर ऋषि की मूर्ति।]]
मंदिर जाने वाले श्रद्धालु झील से हरी-हरी लंबे फर्ननुमा घास की पत्तियां निकालने हैं। इन्हें बर्रे कहते हैं और छोटे आकार की पत्तियों को जर्रे। इन्हें देवता का शेष (फूल) माना जाता है। इन्हें लोग अपने पास श्रद्धापूर्वक संभालकर रखते हैं। मंदिर के अंदर प्रसाद के साथ भी यही पत्ती दी जाती है। पूजा कक्ष में ऋषि पराशर की पिंडी, विष्णु-शिव व महिषासुर मर्दिनी की पाषाण प्रतिमाएं हैं। पराशर ऋषि वशिष्ठ के पौत्र और मुनि शक्ति के पुत्र थे। पराशर ऋषि की पाषाण प्रतिमा में गजब का आकर्षण है। इसी प्राचीन प्रतिमा के समक्ष पुजारी आपके हाथ में चावल के कुछ दाने देता है। श्रद्धालु श्रद्धा से आंखें मूंदें मनोकामना करते हैं। फिर आंखें खोल दाने गिनते हैं। यदि दाने तीन, पांच, सात, नौ या ग्यारह हैं तो कामना पूरी होगी और यदि दो, चार, छह, आठ या दस हैं तो नहीं। मनोकामना पूरी पर अनेक श्रद्धालु बकरु (बकरी या बकरा) की बलि मंदिर परिसर के बाहर देते देखे जा सकते हैं। यदि इस क्षेत्र में बारिश नहीं होती तो एक पुरातन परंपरा के अनुसार पराशर ऋषि गणेश जी को बुलाते हैं। गणेश जी भटवाड़ी नामक स्थान पर स्थित हैं जो कि यहां से कुछ किलोमीटर दूर है। यह वंदना राजा के समय में भी करवाई जाती थी और आज सैकडों वर्ष बाद भी हो रही है। झील में मछलियां भी हैं जो अपने आप में एक आकर्षण हैं।