"रामभद्राचार्य": अवतरणों में अंतर

छो r2.7.3) (रोबॉट: pa:ਜਗਦਗੁਰੂ ਰਾਮਭਦਰਾਚਾਰਯ की जगह pa:ਰਾਮਭਦਰਾਚਾਰਿਆ जोड़ रहा है
छो Bot: अंगराग परिवर्तन
पंक्ति 19:
}}
 
'''जगद्गुरु रामभद्राचार्य''' ({{lang-sa|जगद्गुरुरामभद्राचार्यः}}) (१९५०–), पूर्वाश्रम नाम '''गिरिधर मिश्र''' ({{lang-sa|गिरिधरमिश्रः}}), [[चित्रकूट]] ([[उत्तर प्रदेश]], [[भारत]]) में रहने वाले एक प्रख्यात विद्वान्, शिक्षाविद्, [[:en:Polyglot|बहुभाषाविद्]], रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिन्दू धर्मगुरु हैं।<ref name="speakerloksabha">{{cite web | last=लोक सभा | first=अध्यक्ष कार्यालय | title = Speeches | language=अंग्रेज़ी | url = http://speakerloksabha.nic.in/Speech/SpeechDetails.asp?SpeechId=195 | accessdate = मार्च ८, २०११ | quote=Swami Rambhadracharya, ..., is a celebrated Sanskrit scholar and educationist of great merit and achievement. ... His academic accomplishments are many and several prestigious Universities have conferred their honorary degrees on him. A polyglot, he has composed poems in many Indian languages. He has also authored about 75 books on diverse themes having a bearing on our culture, heritage, traditions and philosophy which have received appreciation. A builder of several institutions, he started the Vikalanga Vishwavidyalaya at Chitrakoot, of which he is the lifelong Chancellor. (स्वामी रामभद्राचार्य, ...., बहुमुखी प्रतिभा और उपलब्धियों के धनी एक प्रतिष्ठित संस्कृत विद्वान् और शिक्षाविद् हैं। ... आपकी अनेक शैक्षणिक उपलब्धियाँ हैं और कईं माननीय विश्वविद्यालयों ने आपको मानद उपाधियाँ प्रदान की हैं। आप एक बहुभाषाविद् हैं और आपने अनेक भारतीय भाषाओं में काव्य रचे हैं। आपने विविध विषयवस्तु वाली ७५ पुस्तकें रची हैं, जिन्होंने हमारी संस्कृति, धरोहर और परम्पराओं पर छाप छोड़ी है और जिन्हें सम्मान प्राप्त हुआ है। आपने कईं संस्थानों के साथ चित्रकूट में विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना की है, जिसके आप आजीवन कुलाधिपति हैं।)}}</ref> वे [[रामानन्द]] सम्प्रदाय के वर्तमान चार जगद्गुरु रामानन्दाचार्यों में से एक हैं, और इस पद पर १९८८ ई से प्रतिष्ठित हैं।<ref name="kbs-bio">{{cite journal | first=आर | last=चन्द्रा | title=जीवन यात्रा | volume=८ | issue=११ | journal=क्रान्ति भारत समाचार | location=लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत | date=सितम्बर २००८ | pages=२२-२३}}</ref><ref name="agarwal-bio">अग्रवाल २०१०, पृष्ठ ११०८-१११०।</ref><ref name="dinkarjagadguru">दिनकर २००८, पृष्ठ ३२।</ref> वे चित्रकूट में स्थित संत [[तुलसीदास]] के नाम पर स्थापित तुलसी पीठ नामक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान के संस्थापक और अध्यक्ष हैं।<ref>नागर २००२, पृष्ठ ९१।</ref> वे चित्रकूट स्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति हैं।<ref>{{cite web | title = The Chancellor | language=अंग्रेज़ी | url = http://www.jrhu.com/index_files/Page350.htm | accessdate = जुलाई २१, २०१० | publisher=जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय}}</ref><ref>{{cite book | language=अंग्रेज़ी | title = Analysis and Design of Algorithm | last=द्विवेदी | first=ज्ञानेन्द्र कुमार | publisher=लक्ष्मी प्रकाशन | date=दिसम्बर १, २००८ | location=नई दिल्ली, भारत | id=ISBN 978-81-318-0116-1 | pages=पृष्ठ x}}</ref> यह विश्वविद्यालय केवल चतुर्विध विकलांग विद्यार्थियों को स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम और डिग्री प्रदान करता है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य दो मास की आयु में नेत्र की ज्योति से रहित हो गए थे और तभी से प्रज्ञाचक्षु हैं।<ref name="kbs-bio"/><ref name="agarwal-bio"/><ref name="kkbvp">{{cite web | publisher=के के बिड़ला प्रतिष्ठान | title = वाचस्पति पुरस्कार २००७ | url = http://www.kkbirlafoundation.com/downloads/pdf/vach-2007.pdf | accessdate = मार्च ८, २०११}}</ref><ref name="outlook">{{cite web | first=सुतपा | last=मुखर्जी | title=A Blind Sage's Vision: A Varsity For The Disabled At Chitrakoot | publisher=आउटलुक | place=नयी दिल्ली, भारत | date=मई १०, १९९९ | volume= | issue= | pages= | url=http://www.outlookindia.com/article.aspx?207437 | language=अंग्रेज़ी | accessdate=जून २१, २०११}}</ref> अध्ययन या रचना के लिए उन्होंने कभी भी [[:en:Braille|ब्रेल लिपि]] का प्रयोग नहीं किया है। वे [[:en:Polyglot|बहुभाषाविद्]] हैं और २२ भाषाएँ बोलते हैं।<ref name="kkbvp"/><ref>दिनकर २००८, पृष्ठ ३९।</ref><ref>{{cite web | title = श्री जगद्गुरु रामभद्राचार्य | publisher=औपचारिक वेबसाइट | url = http://jagadgururambhadracharya.org | accessdate = May 10, 2011 | language=अंग्रेज़ी | quote=आश्चर्यजनक तथ्य: अंग्रेज़ी, फ्रांसीसी और अनेक भारतीय भाषाओं सहित २२ भाषाओं का ज्ञान}}</ref> वे [[संस्कृत]], [[हिन्दी]], [[अवधी]], [[मैथिली]] सहित कई भाषाओं में आशुकवि और रचनाकार हैं। उन्होंने ८० से अधिक पुस्तकों और ग्रंथों की रचना की है, जिनमें चार महाकाव्य (दो संस्कृत और दो हिन्दी में), रामचरितमानस पर हिन्दी टीका, [[अष्टाध्यायी]] पर काव्यात्मक संस्कृत टीका, और [[प्रस्थानत्रयी]] ([[ब्रह्मसूत्र]], [[भगवद्गीता]] और प्रधान [[उपनिषद्|उपनिषदों]]) पर संस्कृत भाष्य सम्मिलित हैं।<ref name="dinkarbiblio">दिनकर २००८, पृष्ठ ४०–४३।</ref> उन्हें तुलसीदास पर भारत के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में गिना जाता है,<ref name="outlook"/><ref>प्रसाद १९९९, पृष्ठ xiv: "Acharya Giridhar Mishra is responsible for many of my interpretations of the epic. The meticulousness of his profound scholarship and his extraordinary dedication to all aspects of Rama's story have led to his recognition as one of the greatest authorities on Tulasidasa in India today ... that the Acharya's knowledge of the Ramacharitamanasa is vast and breathtaking and that he is one of those rare scholars who know the text of the epic virtually by heart." (मेरे द्वारा इस ग्रंथ के किए गए अनेकानेक अर्थों के पीछे आचार्य गिरिधर मिश्र की प्रेरणा है। उनके गहनतम पाण्डित्य का अवधान और रामायण के सभी पक्षों के प्रति उनकी विलक्षण लगन के कारण आज वे भारत में तुलसीदास पर सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में अग्रगण्य हैं। ... आचार्य का रामचरितमानस का ज्ञान व्यापक और आश्चर्यजनक हैं, और वे उन विरल विद्वानों में से हैं जिन्हें यह ग्रन्थ पूर्णतः कण्ठस्थ है।)</ref><ref>{{cite book | language=अंग्रेज़ी | title = The Ramayana: Global View | first=लल्लन प्रसाद, ed. | last=व्यास | publisher=हर आनन्द प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड | year=१९९६ | location=दिल्ली, भारत | id=ISBN 978-81-241-0244-2 | quote=... Acharya Giridhar Mishra, a blind Tulasi scholar of uncanny critical insight, ... (आचार्य गिरिधर मिश्र, एक मीमांसक अंतर्दृष्टि से संपन्न प्रज्ञाचक्षु तुलसी विद्वान, ...) | pages=पृष्ठ ६२}}</ref> और वे रामचरितमानस की एक [[:en:Textual criticism|प्रामाणिक प्रति]] के सम्पादक हैं, जिसका प्रकाशन तुलसी पीठ द्वारा किया गया है।<ref>रामभद्राचार्य (ed) २००६।</ref> स्वामी रामभद्राचार्य रामायण और भागवत के प्रसिद्ध कथाकार हैं – भारत के भिन्न-भिन्न नगरों में और विदेशों में भी नियमित रूप से उनकी कथा आयोजित होती रहती है और कथा के कार्यक्रम [[संस्कार टीवी]], सनातन टीवी इत्यादि चैनलों पर प्रसारित भी होते हैं।<ref>{{cite web | last=एन बी टी न्यूज़ | first=गाज़ियाबाद | publisher=नवभारत टाईम्स | title = मन से भक्ति करो मिलेंगे राम : रामभद्राचार्य | url = http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/7329118.cms | date = जनवरी २१, २०११| accessdate=जून २४, २०११}}</ref><ref>{{cite web | last=संवाददाता | first=ऊना | publisher=दैनिक ट्रिब्यून | title = केवल गुरु भवसागर के पार पहुंचा सकता है : बाबा बाल जी महाराज | url = http://dainiktribuneonline.com/2011/02/%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%B2-%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81-%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A4%B9/ | date = फ़रवरी १३, २०११| accessdate=जून २४, २०११}}</ref><ref>{{cite web | last=संवाददाता | first=सीतामढ़ी | publisher=जागरण याहू | title = ज्ञान चक्षु से रामकथा का बखान करने पहुंचे रामभद्राचार्य | url = http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_7679575.html | date = मई ५, २०११| accessdate=जून २४, २०११}}</ref><ref>{{cite web | last=संवाददाता | first=ऋषिकेश | publisher=जागरण याहू | title = दु:ख और विपत्ति में धैर्य न खोएं | url = http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7835924_1.html | date = जून ७, २०११| accessdate=जून २४, २०११ | quote=प्रख्यात राम कथावाचक स्वामी रामभद्राचार्य महाराज ने कहा कि ...}}</ref><ref>{{cite web | publisher=Anjoria | title = सिंगापुर में भोजपुरी के अलख जगावत कार्यक्रम | url = http://anjoria.com/?p=4041 | date = जून २६, २०११ | accessdate=जून ३०, २०११ | quote=श्री लक्ष्मी नारायण मन्दिर में सुप्रसिद्ध मानस मर्मज्ञ जगतगुरु रामभद्राचार्य जी राकेश के मानपत्र देके सम्मानित कइले। | language=भोजपुरी}}</ref><ref>{{cite web | title = रामभद्राचार्य जी | url = http://www.sanatantv.com/rambhadracharya.php | publisher=सनातन टीवी | accessdate = May 10, 2011 | language=अंग्रेज़ी}}</ref>
 
== जन्म एवं प्रारम्भिक जीवन ==
पंक्ति 51:
=== उपनयन और कथावाचन ===
 
गिरिधर मिश्र का [[उपनयन]] संस्कार निर्जला एकादशी के दिन जून २४, १९६१ ई को हुआ। [[अयोध्या]] के पण्डित ईश्वरदास महाराज ने उन्हें [[गायत्री मन्त्र]] के साथ-साथ [[राम|राममन्त्र]] की [[दीक्षा]] भी दी। भगवद्गीता और रामचरितमानस का अभ्यास अल्पायु में ही कर लेने के बाद गिरिधर अपने गाँव के समीप [[अधिक मास]] में होने वाले [[:en:Katha (storytelling format)|रामकथा]] कार्यक्रमों में जाने लगे। दो बार कथा कार्यक्रमों में जाने के बाद तीसरे कार्यक्रम में उन्होंने रामचरितमानस पर कथा प्रस्तुत की, जिसे कईं कथावाचकों ने सराहा।<ref name="dinkarearlylife"/>
 
== औपचारिक शिक्षा ==
पंक्ति 77:
=== विद्यावारिधि (पी एच डी) एवं वाचस्पति (डी लिट्) ===
 
आचार्य की उपाधि पाने के पश्चात् गिरिधर मिश्र विद्यावारिधि ([[:en:PhD|पी एच डी]]) की उपाधि के लिए इसी विश्वविद्यालय में पण्डित रामप्रसाद त्रिपाठी के निर्देशन में शोधकार्य के लिए पंजीकृत हुए। उन्हें [[:en:University Grants Commission (India)|विश्वविद्यालय अनुदान आयोग]] से शोध कार्य के लिए अध्येतावृत्ति भी मिली, परन्तु आगामी वर्षों में अनेक आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।<ref name="aicb-bio"/> संकटों के बीच उन्होंने अक्टूबर १४, १९८१ को संस्कृत व्याकरण में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से विद्यावारिधि (पी एच डी) की उपाधि अर्जित की। उनके शोधकार्य का शीर्षक था '''अध्यात्मरामायणे अपाणिनीयप्रयोगानां विमर्शः''' और इस शोध में उन्होंने [[अध्यात्म रामायण]] में पाणिनीय व्याकरण से असम्मत प्रयोगों पर विमर्श किया। विद्यावारिधि उपाधि प्रदान करने के बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने उन्हें सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण विभाग के अध्यक्ष के पद पर भी नियुक्त किया। लेकिन गिरिधर मिश्र ने इस नियुक्ति को अस्वीकार कर दिया और अपना जीवन धर्म, समाज और विकलांगों की सेवा में लगाने का निर्णय लिया।<ref name="aicb-bio"/>
 
१९९७ में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय ने उन्हें उनके शोधकार्य '''अष्टाध्याय्याः प्रतिसूत्रं शाब्दबोधसमीक्षणम्''' पर वाचस्पति ([[:en:DLitt|डी लिट्]]) की उपाधि प्रदान की। इस शोधकार्य में गिरिधर मिश्र नें अष्टाध्यायी के प्रत्येक [[सूत्र]] पर संस्कृत के श्लोकों में टीका रची है।<ref name="dinkaredu"/>
 
== विरक्त दीक्षा और तदनन्तर जीवन ==
पंक्ति 115:
=== अयोध्या मसले में साक्ष्य ===
 
जुलाई २००३ में जगद्गुरु रामभद्राचार्य [[इलाहाबाद उच्च न्यायालय]] के सम्मुख [[अयोध्या विवाद]] के अपर मूल अभियोग संख्या ५ के अंतर्गत धार्मिक मामलों के विशेषज्ञ के रूप में साक्षी बनकर प्रस्तुत हुए (साक्षी संख्या ओ पी डब्लु १६)।<ref>{{cite web | language=अंग्रेज़ी | last=शर्मा | first=अमित | publisher=इण्डियन एक्सप्रेस | title = No winners in VHP’s Ayodhya blame game | url = http://www.indianexpress.com/oldStory/23063/ | date = मई १, २००३ | accessdate=जून २५, २०११}}</ref><ref>{{cite web | language=अंग्रेज़ी | title = Babar destroyed Ram temple at Ayodhya | publisher=मिड डे | url = http://www.mid-day.com/news/2003/jul/58790.htm | date = जुलाई १७, २००३ | accessdate=जून २५, २०११}}</ref><ref>{{cite web | language=अंग्रेज़ी | publisher=मिड डे| title = Ram Koop was constructed by Lord Ram | url = http://www.mid-day.com/news/2003/jul/59146.htm | date = जुलाई २१, २००३ | accessdate=जून २५, २०११}}</ref> उनके शपथ पत्र और जिरह के कुछ अंश अंतिम निर्णय में उद्धृत हैं।<ref name="rjbm-sa-verdict">अग्रवाल २०१०, पृष्ठ. ३०४, ३०९, ७८०-७८८, ११०३-१११०, २००४-२००५, ४४४७, ४४४५-४४५९, ४५३७, ४८९१-४८९४, ४९९६।</ref><ref>शर्मा २०१०, पृष्ठ २१, ३१.</ref><ref>शर्मा २०१०, पृष्ठ २७३.</ref> अपने शपथ पत्र में उन्होंने सनातन धर्म के प्राचीन शास्त्रों (वाल्मीकि रामायण, रामतापनीय उपनिषद्, [[स्कन्द पुराण]], [[यजुर्वेद]], [[अथर्ववेद]], इत्यादि) से उन छन्दों को उद्धृत किया जो उनके मतानुसार अयोध्या को एक पवित्र तीर्थ और श्रीराम का जन्मस्थान सिद्ध करते हैं। उन्होंने तुलसीदास की दो कृतियों से नौ छन्दों (तुलसी दोहा शतक से आठ दोहे, और कवितावली से एक कवित्त) को उद्धृत किया जिनमें उनके कथनानुसार अयोध्या में मन्दिर के तोड़े जाने और विवादित स्थान पर मस्जिद के निर्माण का वर्णन है।<ref name="rjbm-sa-verdict"/> प्रश्नोत्तर के दौरान उन्होंने रामानन्द सम्प्रदाय के इतिहास, उसके [[:en:Matha|मठों]], [[:en:Mahant|महन्तों]] के विषय में नियमों, [[:en:Akhara|अखाड़ों]] की स्थापना और संचालन, और तुलसीदास की कृतियों का विस्तृत वर्णन किया।<ref name="rjbm-sa-verdict"/> मूल मन्दिर के विवादित स्थान के उत्तर में होने के प्रतिपक्ष द्वारा रखे गए तर्क का निरसन करते हुए उन्होंने स्कन्द पुराण के अयोध्या महात्म्य में वर्णित राम जन्मभूमि की सीमाओं का वर्णन किया, जोकि न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल द्वारा विवादित स्थल के वर्तमान स्थान से मिलती हुई पायी गयीं।<ref name="rjbm-sa-verdict"/>
 
== जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय ==
पंक्ति 125:
== रामचरितमानस की प्रामाणिक प्रति ==
[[चित्र:JagadguruRamabhadracharya008.jpg|thumb|right|जगद्गुरु रामभद्राचार्य अपने द्वारा सम्पादित रामचरितमानस की प्रामाणिक प्रति (भावार्थबोधिनी टीका सहित) भारत की राष्ट्रपत्नी [[प्रतिभा पाटिल]] को अर्पित करते हुए]]
गोस्वामी तुलसीदास ने अयुताधिक पदों से युक्त रामचरितमानस की रचना १६वी शताब्दी ई में करी थी। ४०० वर्षों में उनकी यह कृति उत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय बन गयी, और इसे पाश्चात्य [[भारतविद्या|भारतविद्]] बहुशः '''उत्तर भारत की बाईबिल''' कहते हैं।<ref>{{cite book | language=अंग्रेज़ी | last = लौख्टैफेल्ड | first = जेम्स जी | id=ISBN 978-0-8239-3180-4 | title = The Illustrated Encyclopedia of Hinduism: N-Z | language=अंग्रेज़ी | year = २००१ | publisher=रोज़ेन प्रकाशन ग्रुप | pages=पृष्ठ ५५९}}</ref><ref>{{cite book | location=व्हाईटफ़िश, मोंटाना, संयुक्त राज्य अमरीका | last = मैक्फ़ी | first = जे एम | id=ISBN 978-1-4179-1498-2 | title = The Ramayan of Tulsidas or the Bible of Northern India | date = मई २३, २००४ | publisher=केसिंजर पब्लिशिंग एल एल सी | pages=पृष्ठ vii | chapter=Preface | quote=The choice of the subtitle is no exaggeration. The book is indeed the Bible of Northern India | url=http://books.google.com/books?id=AbG4yfdE1b4C&printsec=frontcover&dq=isbn:9781417914982&hl=en&ei=4dADTtKeHqTV0QG9poS4Cw&sa=X&oi=book_result&ct=result&resnum=1&ved=0CCoQ6AEwAA#v=onepage&q&f=false | language=अंग्रेज़ी | <!-- accessdate=June 24, 2011 -->}}</ref> इस काव्य की अनेकों प्रतियाँ मुद्रित हुई हैं, जिनमें श्री वेंकटेश्वर प्रेस (खेमराज श्रीकृष्णदास) और रामेश्वर भट्ट आदि पुरानी प्रतियाँ, और [[गीता प्रेस]], [[मोतीलाल बनारसीदास]], कौदोराम, कपूरथला और पटना से मुद्रित नयी प्रतियाँ सम्मिलित हैं।<ref name="toi-fia">{{cite web | language=अंग्रेज़ी | title = Fury in Ayodhya over Ramcharitmanas | url = http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2009-11-01/india/28068936_1_seers-editions-disciples | date =नवम्बर १, २००९ | publisher=दि टाईम्स ऑफ इण्डिया | first=मंजरी; अरोड़ा, वी एन | last=मिश्र | first1=वी एन | last1=अरोड़ा | accessdate=जून २५, २०११}}</ref> मानस पर अनेक टीकाएँ लिखी जा चुकी हैं, जिनमें मानसपीयूष, मानसगूढार्थचन्द्रिका, मानसमयंक, विनायकी, विजया, बालबोधिनी इत्यादि सम्मिलित हैं।<ref name="rcmtp-prologue">रामभद्राचार्य २००६, पृष्ठ १-२७।</ref> बहुत स्थानों पर इन प्रतियों और टीकाओं में छन्दों की संख्या, मूलपाठ, प्रचलित वर्तनियों (यथा [[:en:Anusvara#Anunasika|अनुनासिक]] प्रयोग), और प्रचलित व्याकरण नियमों (यथा विभक्त्यन्त स्वर) में भेद हैं।<ref name="rcmtp-prologue"/> कुछ प्रतियों में एक आठवाँ [[काण्ड]] भी परिशिष्ट के रूप में मिलता है, जैसे कि मोतीलाल बनारसीदास और श्री वेंकटेश्वर प्रेस की प्रतियों में।<ref>प्रसाद १९९९, पृष्ठ ७९५–८५२</ref><ref>{{cite web | title = तुलसीकृत रामायण: पण्डित ज्वालाप्रसाद मिश्र द्वारा हिन्दी में अनूदित (विशिष्ट संस्करण) | url = http://www.khe-shri.com/details.asp?id=1858b&grpno=33&grpname=Ramayana | accessdate = जून ३०, २०११ | publisher=Shri Ventakeshwar Steam Press, Bombay | quote=लवकुशकाण्ड सहित}}</ref>
 
२०वी शताब्दी में वाल्मीकि रामायण और महाभारत का विभिन्न प्रतियाँ के आधार पर सम्पादन और प्रामाणिक प्रति ({{lang-en|critical edition}}) का मुद्रण क्रमशः बड़ौदा स्थित [[:en:Maharaja Sayajirao University of Baroda#Oriental_Institute|महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय]] और पुणे स्थित [[:en:Bhandarkar Oriental Research Institute|भण्डारकर प्राच्य शोध संस्थान]] द्वारा किया गया था,<ref>{{cite web | language=अंग्रेज़ी | title = The Mahabharata | url = http://www.bori.ac.in/mahabharata.htm | publisher=भण्डारकर प्राच्य शोध संस्थान | accessdate = अप्रैल २५, २०११}}</ref><ref>{{cite book | pages=पृष्ठ xxv | chapter=Introduction | title = Critical Inventory of Ramayana Studies in the World: Indian Languages and English | first=के | last=कृष्णमूर्ति | year=१९९२ | publisher=साउथ एशिया बुक्स | id=ISBN 978-81-7201-100-0}}</ref> स्वामी रामभद्राचार्य बाल्यकाल से २००६ ई तक रामचरितमानस की ४००० आवृत्तियाँ कर चुके थे।<ref name="rcmtp-prologue"/> उन्होंने ५० प्रतियों के पाठों पर आठ वर्ष अनुसन्धान करके एक प्रामाणिक प्रति का सम्पादन किया।<ref name="toi-fia"/> इस प्रति को तुलसी पीठ संस्करण के नाम से मुद्रित किया गया।
आधुनिक प्रतियों की तुलना में तुलसी पीठ प्रति में मूलपाठ में कई स्थानों पर अंतर है - मूल पाठ के लिए स्वामी रामभद्राचार्य ने पुरानी प्रतियों को अधिक विश्वसनीय माना है।<ref name="toi-fia"/> इसके अतिरिक्त वर्तनी, व्याकरण और छन्द सम्बन्धी प्रचलन में आधुनिक प्रतियों से तुलसी पीठ प्रति निम्नलिखित प्रकार से भिन्न है।<ref name="rcmtp-prologue"/><ref>{{cite web | last=शुक्ल | first=राम सागर | publisher=वेबदुनिया | title = रामचरित मानस की भाषा और वर्तनी | url = http://hindi.webdunia.com/samayik/article/article/0911/11/1091111004_1.htm | date = नवम्बर ९, २००९ | accessdate=जून २५, २०११}}</ref>
# गीता प्रेस सहित कईं आधुनिक प्रतियाँ २ पंक्तियों में लिखित १६-१६ मात्राओं के चार चरणों की इकाई को एक चौपाई मानती हैं, जबकि कुछ विद्वान एक पंक्ति में लिखित ३२ मात्राओं की इकाई को एक चौपाई मानते हैं।<ref>{{cite book | title = तुलसी जन्म भूमि: शोध समीक्षा | first=राम गणेश | last=पाण्डेय | publisher=भारती भवन प्रकाशन | year=२००८ | edition=संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण | location=चित्रकूट, उत्तर प्रदेश, भारत | origyear=प्रथम संस्करण २००३ | quote=हनुमान चालीसा ... इसकी भाषा अवधी है। दोहा-चौपाई छन्द हैं। इसमें ४० चौपाइयाँ और २ दोहे हैं। | pages=पृष्ठ ५४}}</ref> रामभद्राचार्य ने ३२ मात्राओं की एक चौपाई मानी है, जिसके समर्थन में उन्होंने [[हनुमान चालीसा]] और [[आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] द्वारा [[पद्मावत]] की समीक्षा के उदाहरण दिए हैं। उनके अनुसार इस व्याख्या में भी चौपाई के चार चरण निकलते हैं क्यूंकि हर १६ मात्राओं की अर्धाली में ८ मात्राओं के बाद यति है। परिणामतः तुलसी पीठ प्रति में चौपाइयों की गणना फ़िलिप लुट्गेनडॅार्फ़ की गणना जैसी है।<ref>{{cite book | year=१९९१ | title = The Life of a Text: Performing the 'Ramcaritmanas' of Tulsidas | last=लुट्गेनडॅार्फ़ | first=फ़िलिप | publisher=कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय प्रेस | place=बर्कली, कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमरीका | id=ISBN 978-0-520-06690-8 | chapter=The Text and the Research Context | pages=१४}}</ref>
# कुछ अपवादों (पादपूर्ति इत्यादि) को छोड़कर तुलसी पीठ की प्रति में आधुनिक प्रतियों में प्रचलित कर्तृवाचक और कर्मवाचक पदों के अन्त में उकार के स्थान पर अकार का प्रयोग है। रामभद्राचार्य के मतानुसार उकार का पदों के अन्त में प्रयोग त्रुटिपूर्ण है, क्यूंकि ऐसा प्रयोग अवधी के स्वभाव के विरुद्ध है।
# तुलसी पीठ की प्रति में विभक्ति दर्शाने के लिए अनुनासिक का प्रयोग नहीं है जबकि आधुनिक प्रतियों में ऐसा प्रयोग बहुत स्थानों पर है। रामभद्राचार्य के अनुसार पुरानी प्रतियों में अनुनासिक का प्रचलन नहीं है।
# आधुनिक प्रतियों में कर्मवाचक बहुवचन और मध्यम पुरुष सर्वनाम प्रयोग में संयुक्ताक्षर न्ह और म्ह के स्थान पर तुलसी पीठ की प्रति में क्रमशः न और म का प्रयोग है।
पंक्ति 144:
; [[महाकाव्य]]
* [[:en:Sribhargavaraghaviyam|''श्रीभार्गवराघवीयम्'']] (२००२) – एक सौ एक श्लोकों वाले इक्कीस सर्गों में विभाजित और चालीस संस्कृत और प्राकृत के छन्दों में बद्ध २१२१ श्लोकों में विरचित संस्कृत महाकाव्य। स्वयं महाकवि द्वारा रचित हिन्दी टीका सहित। इसका वर्ण्य विषय दो राम अवतारों ([[परशुराम]] और राम) की लीला है। इस रचना के लिए कवि को २००५ में संस्कृत के [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया था।<ref name="sa2005">{{cite web | title = साहित्य अकादमी सम्मान २००५ | year=२००५ | publisher=नेशनल पोर्टल ऑफ इण्डिया | url = http://india.gov.in/knowindia/sakademi_awards05.php | accessdate = अप्रैल २४, २०११}}</ref><ref>{{cite web | last=पी टी आई | first= | publisher=डी एन ए इंडिया | title = Kolatkar, Dalal among Sahitya Akademi winners | url = http://www.dnaindia.com/india/report_kolatkar-dalal-among-sahitya-akademi-winners_1003524 | date = दिसम्बर २२, २००५| accessdate=जून २४, २०११ | language=अंग्रेज़ी}}</ref> जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
* ''[[अष्टावक्र (महाकाव्य)|अष्टावक्र]]'' (२०१०) – एक सौ आठ पदों वाले आठ सर्गों में विभाजित ८६४ पदों में विरचित हिन्दी महाकाव्य। यह महाकाव्य [[अष्टावक्र]] ऋषि के जीवन का वर्णन है, जिन्हें विकलांगों के पुरोधा के रूप में दर्शाया गया है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
* ''[[अरुन्धती (महाकाव्य)|अरुन्धती]]'' (१९९४) – १५ सर्गों और १२७९ पदों में रचित हिन्दी महाकाव्य। इसमें ऋषि दम्पती वसिष्ठ और [[अरुन्धती]] के जीवन का वर्णन है। राघव साहित्य प्रकाशन निधि, राजकोट द्वारा प्रकाशित।
; खण्डकाव्य
पंक्ति 188:
; प्रस्थानत्रयी पर संस्कृत भाष्य
* ''श्रीब्रह्मसूत्रेषु श्रीराघवकृपाभाष्यम्'' – ब्रह्मसूत्र पर संस्कृत में रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
* ''श्रीमद्भगवद्गीतासु श्रीराघवकृपाभाष्यम्'' – भगवद्गीता पर संस्कृत में रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
* ''कठोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम्'' – [[कठ उपनिषद्|कठोपनिषद्]] पर संस्कृत में रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।
* ''केनोपनिषदि श्रीराघवकृपाभाष्यम्'' – [[केनोपनिषद|केनोपनिषद्]] पर संस्कृत में रचित भाष्य। श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास, चित्रकूट द्वारा प्रकाशित।