"पादप वर्गीकरण": अवतरणों में अंतर

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'''पादप जगत''' (Plantae) में शैवाल (एल्गी), ब्रायोफाइट, टेरिडोफाइट, अनावृतबीजी तथा आवृतबीजी आते हैं।
 
== शैवाल या एलजी ==
{{मुख्य|शैवाल}}
 
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'''रोडोफाइटा''' (Rhodophyta) या '''लाल शैवाल''' - यह शैवाल लाल रंग का होता है। इसके अंतर्गत लगभग 400 वंश (genus) और 2,500 जातियाँ हैं, जो अधिकांश समुद्र में उगती हैं। इन्हें सात गणों में बाँटा जाता है। लाल शैवाल द्वारा एक वस्तु एगार एगार (agar agar) बनती है, जिसका उपयोग मिठाई और पुडिंग बनाने तथा अनुसंधान कार्यों में अधिकतम होता है। इससे कई प्रकार की औषधियाँ भी बनती हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि शैवाल द्वारा ही लाखों वर्ष पहले भूगर्भ में [[पेट्रोल]] का निर्माण हुआ होगा।
 
== ब्रायोफाइटा ==
तीन वर्गों में बाँटा जाता है :
 
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ऐसा सोचा जाता है कि ब्रायोफाइटा की उत्पत्ति हरे शैवाल से हुई होगी।
 
=== हिपैटिसी ===
इसमें लगभग 8,500 जातियाँ हैं, जो अधिकांश छाएदार नम स्थान पर उगती हैं। कुछ एक जातियाँ तो जल में ही रहती हैं, जैसे टिकासिया फ्लूइटंस और रियला विश्वनाथी। हिपैटिसी में ये तीन गण मान्य हैं :
 
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स्पीरोकॉर्पेलीज़ में तीन वंश हैं - स्फीरोकर्पस (Sphaerocarpus), जीओथैलस (Geothallus) और रिएला (Riella)। पहले दो में लैंगिक अंग एक प्रकार के छत्र से घिरे रहते हैं और रिएला में वह अंग घिरा नहीं रहता। रिएला की एक ही जाति रिएला विश्वनाथी भारत में काशी के पास चकिया नगर में पाई गई है। इसके अतिरिक्त रिएला इंडिका अविभाजित भारत के लाहौर नगर के पास पाया गया था।
 
==== मारकेनटिएलींज़ (Marchantiales) ====
यह सबसे प्रमुख गण है और इसमें 32 वंश और 400 जातियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें छह कुलों में रखा जाता है। इनमें जनन लैंगिक और अलैंगिक दोनों होते हैं। रिकसियेसी कुल में तीन वंश हैं। दूसरा कुल है कारसीनिएसी। टारजीओनिएसी का टारजीओनिया पौधा सारे संसार में पाया जाता है। इस गण का सबसे मुख्य कुल है मारकेनटिएसी, जिसमें 23 वश हैं। इनमें मारकेनटिया मुख्य है।
 
==== जंगरमैनिएलीज़ (Jungermaniales) ====
इन्हें पत्तीदार लीवरवर्ट भी कहते हैं। ये जलवाले स्थानों पर अधिक उगते हैं। इनमें 190 वंश तथा लगभग 8,000 जातियाँ हैं। इनके प्रमुख वंश हैं रिकार्डिया (Riccardia), फॉसॉम्ब्रोनिया (Fossombronia), फ्रूलानिया (Frullania) तथा पोरेला (Porella)। कैलोब्रियेलिज़ गण में सिर्फ दो वंश कैलोब्रियम (Calobryum) और हैप्लोमिट्रियम (Haplomitrium) रखे जाते हैं।
 
=== ऐंथोसिरोटी (Anthocerotae) ===
इस उपवर्ग में एक गण ऐंथोसिरोटेलीज़ है, जिसमें पाँच या छह वंश पाए जाते हैं। प्रमुख वंश ऐंथोसिरॉस (Anthoceros) और नोटोथिलस (Notothylas) हैं। इनमें युग्मकजनक (gametocyte), जो पौधे का मुख्य अंग होता है, पृथ्वी पर चपटा उगता है और इसमें बीजाणु-उद्भिद (sporophyte) सीधा ऊपर निकलता है। इनमें पुंधानी और स्त्रीधानी थैलस (thallus) के अंदर ही बनते हैं। पुंधानी नीचे पतली और ऊपर गदा या गुब्बारे की तरह फूली होती हैं।
 
=== मससाई (Musci) ===
इस वर्ग में मॉस [[पादप]] आते हैं, जिन्हें तीन उपवर्गों में रखा जाता है। ये हैं:
 
* (1) स्फैग्नोब्रिया,
* (2) ऐंड्रोब्रिया तथा
* (3) यूब्रिया
 
पहले उपवर्ग के स्फ़ैग्नम (sphagnum) ठंडे देशों की झीलों में उगते हैं तथा एक प्रकार का "दलदल" बनाते हैं। ये मरने पर भी सड़ते नहीं और सैकड़ों हजारों वर्षों तक झील में पड़े रहते हैं, जिससे झील दलदली बन जाती है। दूसरे उपवर्ग का ऐंड्रिया (Andrea) एक छोटा वंश है, जो गहरे कत्थई रंग का होता है। यह काफी सर्द पहाड़ों की चोटी पर उगते हैं। यूब्रेयेलीज़ या वास्तविक मॉस (True moss), में लगभग 650 वंश हैं जिनकी लगभग 14,000 जातियाँ संसार भर में मिलती हैं। इनके मध्यभाग में तने की तरह एक बीच का भाग होता है, जिसमें पत्तियों की तरह के आकार निकले रहते हैं। चूँकि यह युग्मोद्भिद (gametophytic) आकार है, इसलिये इसे पत्ती या तना कहना उचित नहीं हैं। हाँ, उससे मिलते जुलते भाग कहे जा सकते हैं। पौधों के ऊपरी हिस्से पर या तो पुंधानी और सहसूत्र (paraphysis) या स्त्रीधानी और सहसूत्र, लगे होते हैं।
 
== टेरिडोफाइटा ==
इनकी उत्पत्ति करीब 35 करोड़ वर्ष पूर्व हुई होगी, ऐसा अधिकतर वैज्ञानिकों का कहना हैं। प्रथम टेरिडोफाइट पादप साइलोटेलिज़ (Psilotales) समूह के हैं। इनकी उत्पत्ति के तीन चार करोड़ वर्ष बाद तीन प्रकार के टेरिडोफाइटा इस पृथ्वी पर और उत्पन्न हुए - लाइकोपीडिएलीज़, हार्सटेलीज़ और फर्न। तीनों अलग अलग ढंग से पैदा हुए होंगे। टेरिडोफाइटा मुख्यत: चार भागों में विभाजित किए जाते हैं : साइलोफाइटा (Psilophyta), लेपिडोफाइटा (Lepidophyta), कैलेमोफाइटा (Calamophyta) और टेरोफाइटा (Pterophyta)।
 
=== साइलोफाइटा ===
ये बहुत ही पुराने हैं तथा अन्य सभी संवहनी पादपों से जड़रहित होने के कारण भिन्न हैं। इनका संवहनी ऊतक सबसे सरल, ठोस रंभ (Protostele) होता है। इस भाग में दो गण हैं : (1) साइलोफाइटेलीज, जिसके मुख्य पौधे राइनिया (Rhynia) साइलोफाइटान (Psilophyton), ज़ॉस्टेरोफिलम (Zosterophyllum), ऐस्टेरोक्सिलॉन (Asteroxylon) इत्यादि हैं। ये सबके सब जीवाश्म हैं, अर्थात् इनमें से कोई भी आजकल नहीं पाए जाते है। करोड़ों वर्ष पूर्व ये इस पृथ्वी पर थे। अब केवल इनके अवशेष ही मिलते हैं।
 
=== लेपिडोफाइटा ===
इसके अंतर्गत आनेवाले पौधों को साधारणतया '''लाइकोपॉड''' कहते हैं। इनके शरीर में तने, पत्तियाँ और जड़ सभी बनती हैं। पत्तियाँ छोटी होती हैं, जिन्हें माइक्रोफिलस (microphyllous) कहते हैं। इस भाग में चार गण हैं :
 
* (1) लाइकोपोडिएलीज़ की बीजाणुधानी समबीजाणु (homosporous) होती है, अर्थात् सभी बीजाणु एक ही प्रकार के होते हैं। इनमें कुछ पौधे तो जीवाश्म हैं और कुछ आजकल भी उगते हैं। इसका प्रमुख वंश प्रोटोलेपिडोडेंड्रॉन (Protolepidodendron) है और जीवित पौधा लाइकोपोडिय (Lycopodium)।
 
* (2) सेलैजिनेलेलीज़ (Selaginellales) गण का वंश सैलाजिनेला है। इसमें गुरु बीजाणुधानी (megasporangia) और लघुबीजाणुधानी (microsporangia) बनती हैं। इसकी एक जाति [[चकिया]] के पहाड़ों पर काफी उगती है और इन्हें बाजार में संजीवनी बूटी के नाम से बेचते हैं।
 
* (3) लेपिडोडेंड्रेलीज़ गण जीवाश्म हैं। ये बड़े वृक्ष की तरह थे। लेपिडोडेंड्रॉन (Lepidodendron), बॉथ्रियोडेंड्रॉन (Bothriodendron) तथा सिजिलेरिया (Sigillaria) इसके मुख्य पौधे थे।
 
* (4) आइसोइटेलीज़ गण के वंश भी जीवाश्म हैं। केवल एक वंश आइसोइटीज़ (Isoetes) ही आजकल उगता है और इसे जीवित जीवाश्म भी कहते हैं। यह पौधा ताल तलैया तथा धान के खेत में उगता है। प्लिउरोमिया (Pleuromia) भी [[जीवाश्म]] पौधा था।
 
=== कैलेमोफाइटा ===
ये बहुत पुराने पौधे हैं जिनका एक वंश एक्वीसीटम (Equisetum) अभी भी उगता है। इस वर्ग में पत्तियाँ अत्यंत छोटी होती थीं। इन्हें हार्सटेल (Horsetails), या घोड़े की दुम की आकारवाला, कहा जाता है। इसमें जनन के लिये बीजाणुधानियाँ (sporangia) "फोर" पर लगी होती थीं तथा उनका एक समूह साथ होता था। ऐसा ही एक्वीसीटम में होता है, जिसे शंकु (Strobites) कहते हैं। यह अन्य टेरिडोफाइटों में नहीं होता। इसमें दो गण हैं : (1) हाइनिऐलीज़ (Hyeniales), जिसके मुख्य पौधे हाइनिया (Heyenia) तथा कैलेमोफाइटन (Calamophyton) हैं। (2) स्फीनोफिलेलीज़ दूसरा वृहत् गण है। इसके मुख्य उदाहरण हैं स्फीनोफिलम (Sphenophyllum), कैलेमाइटीज़ (Calamites) तथा एक्वीसीटम।
 
=== टीरोफाइटा ===
इसके सभी अंग काफी विकसित होते हैं, संवहनी सिलिंडर (vascular cylinder) बहुत प्रकार के होते हैं। इनमें पर्ण अंतराल (leaf gap) भी होता है। पत्तियाँ बड़ी बड़ी होती हैं तथा कुछ में इन्हीं पर बीजाणुधानियाँ लगी होती हैं। इन्हें तीन उपवर्गों में बाँटते हैं-
 
==== प्राइमोफिलिसीज़ (Primofilices) ====
इस उपवर्ग में तीन गण (1) प्रोटोप्टेरिडेलीज़ (Protopteridales), (2) सीनॉप्टेरिडेलीज़ (Coenopteridales) और (3) आर्किअॅपटेरिडेलीज़ (Archaeopteridales) हैं, जिनमें पारस्परिक संबंध का ठीक ठीक पता नहीं है। जाइगॉप्टेरिस (Zygopteris), ईटाप्टेरिस (Etapteris) तथा आरकिआप्टेरिस (Archaeopteris) मुख्य उदाहरण हैं।
 
==== यूस्पोरैंजिएटी (Eusporangiatae) ====
जिसमें बीजाणुधानियों के एक विशेष स्थान पर बीजाणुपर्ण (sporophyll) लगे होते हैं, या एक विशेष प्रकार के आकार में होते हैं, जिसे स्पाइक (spike) कहते हैं, उदाहरण ऑफिओग्लॉसम (Ophioglossum), बॉट्रिकियम (Botrychium), मैरैटिया (Marattia) इत्यादि हैं।
 
==== लेप्टोस्पोरैंजिएटी ====
जो अन्य सभी फर्न से भिन्न हैं, क्योंकि इन बीजाणुधानियों के चारों ओर एक "जैकेट फर्नों स्तर" होता है और बीजाणु की संख्या निश्चित रहती है। इसका फिलिकेलीज़ गण बहुत ही बृहत् है। इस उपवर्ग को निम्नलिखित कुलों में विभाजित करते हैं-
 
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इन सब कुलों में अनेक प्रकार के फ़र्न है। ग्लाइकीनिया में शाखाओं का विभाजन द्विभाजी (dichotomous) होता है। हाइमिनोफिलम को फिल्मी फर्न कहते हैं, क्योंकि यह बहुत ही पतले और सुंदर होते हैं। सायेथिया तो ऐसा फर्न है, जो ताड़ के पेड़ की तरह बड़ा और सीधा उगता है। इस प्रकार के फर्न बहुत ही कम हैं। डिक्सोनिया भी इसी प्रकार बहुत बड़ा होता है। पालीपोडिएसी कुल में लगभग 5,000 जातियाँ हैं और साधारण फर्न इसी कुल के हैं। टेरिस (Pteris), टेरीडियम (Pteridium), नेफ्रोलिपिस (Nephrolepis) इत्यादि इसके कुछ उदाहरण हैं। दूसरा गण है मारसीलिएलीज़, जिसका चरपतिया (Marsilea) बहुत ही विस्तृत और हर जगह मिलनेवाला पौधा है। तीसरा गण सैलवीनिएलीज है, जिसके पौधे पानी में तैरते रहते हैं, जैसे सैलवीनिया (Salvinia) और ऐज़ोला (Azolla) हैं। ऐज़ोला के कारण ही तालाबों में ऊपर सतह पर लाल काई जैसा तैरता रहता है। इन पौधों के शरीर में हवा भरी रहती है, जिससे ये आसानी से जल के ऊपर ही रहते हैं। इनके अंदर एक प्रकार का नीलाहरा शैवाल ऐनाबीना (Anabaena) रहता है।
 
== अनावृतबीजी पौधे (Gymnosperm) ==
संवहनी पौधों में फूलवाले पौधों को, जिनके बीज नंगे होते हैं, अनावृतबीजी कहते हैं। इसके पौधे मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं। एक तो साइकस की तरह मोटे तनेवाले होते हैं, जिनके सिरे पर एक झुंड में लंबी पत्तियाँ निकलती हैं और मध्य में विशेष प्रकार की पत्तियाँ होती हैं। इनमें से जिनमें परागकण बनते हैं उन्हें लघुबीजाणुपर्ण (Microsporophyll) तथा जिनपर नंगे बीजाणु लगे होते हैं उन्हें गुरुबीजाणुपर्ण (Megasporophyll) कहते हैं। इस समूह को सिकाडोफिटा (Cycadophyta) कहते हैं और इनमें तीन मुख्य गण हैं :
* (1) टेरिडोस्पर्म (Pteridosperms) या सिकाडोफिलिकेलीज़ (Cycadofilicales),
* (2) बेनिटिटेलीज़ या सिकाडिआयडेलीज़ (Bennettitales or Cycadeoidales) और
* (3) साइकडेलीज़ (Cycadales)।
 
पहले दो गण जीवाश्म हैं। इनके सभी पौधे विलुप्त हो चुके हैं। इनके बहुत से अवशेष पत्थरों के रूप में [[राजमहल पहाड़ियाँ|राजमहल पहाड़ियों]] में मिलते हैं। मुख्य उदाहरण है लिजिनाप्टेरिस (Lyginopteris), मेडुलोज़ा (Medullosa) तथा विलियम्सोनिया (Williamsonia)। तीसरे गण सिकाडेलीज़ के बहुत से पौधे विलुप्त हैं और नौ वंश अब भी जीवित हैं। प्रमुख पौधों के नाम हैं, साइकैस (Cycas), ज़ेमिया (Zamia), एनसेफैलोर्टस (Encephalortos), स्टैनजीरिया (Stangeria) इत्यादि।
 
अनावृतबीजी पौधों का दूसरा मुख्य प्रकार है कोनिफरोफाइटा (Coniferophyta), जिसमें पौधे बहुत ही बड़े और ऊँचे होते हैं। संसार का सबसे बड़ा और सबसे ऊँचा पौधा सिक्वॉय (Sequoia) भी इसी में आता है। इसमें चार मुख्य गण हैं :
* (1) कॉरडेआइटेलीज़ (Cordaitales),
* (2) जिंगोएलीज़ (Ginkgoales),
* (3) कोनिफरेलीज़ (Coniferales) और
* (4) निटेलीज़ (Gnetales)
 
अब सभी कॉरडेआइटेलीज़ जीवाश्म हैं और इनके बड़े बड़े तनों के पत्थर अब भी मिलते हैं। ज़िगोएलीज़ के सभी सदस्य विलुप्त हो चुके हैं। सिर्फ एक ही जाति अभी जीवित है, जिसका नाम जिंगोबाइलोबा (Ginkgobiloba), या मेडेन हेयर ट्री, है। यह चीन में पाया जाता है तथा भारत में इसके इने गिने पौधे वनस्पति वाटिकाओं में लगाए जाते हैं। यह अत्यंत सुंदर पत्तीवाला पेड़ है, जो लगभग 30 से 40 फुट ऊँचाई तक जाता है।
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पहले दो तो भारत में मिलते हैं और तीसरा वेलविचिया मिराबिलिस (Welwitschia mirabilis)। सिर्फ पश्चिमी अफ्रीका के समुद्रतट पर मिलता है। एफीड्रा सूखे स्थान का पौधा है, जिसमें पत्तियाँ अत्यंत सूक्ष्म होती हैं। इनसे एफीड्रीन नामक दवा बनती है। आजकल वैज्ञानिक इन तीनों वंशों को अलग अलग गणों में रखते हैं। इन सभी के अतिरिक्त कुछ जीवाश्मों के नए गण समूह भी बनाए गए हैं, जैसे राजमहल पहाड़ का पेंटोक्सिली (Pentoxylae) और रूस का वॉजनोस्कियेलीज़ (Vojnowskyales) इत्यादि।
 
== आवृतबीजी पौधे (Angiosperms) ==
आवृतबीजी पौधों में बीज बंद रहते हैं और इस प्रकार यह अनावृतबीजी से भिन्न हैं। इनमें जड़, तना, पत्ती तथा फूल भी होते हैं। आवृतबीजी पौधों में दो वर्ग हैं :
* (1) द्विबोजपत्री (dicotyledon) और
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आवृतबीजीय पादप में अलग अलग प्रकार के कार्य के लिये विभिन्न अंग हैं, जैसे जल तथा लवण सोखने के लिये पृथ्वी के नीचे जड़ें होती हैं। ये पौधों को ठीक से स्थिर रखने के लिये मिट्टी को जकड़े रहती हैं। हवा में सीधा खड़ा रहने के लिये तना मजबूत और शाखासहित रहता है। यह आहार बनाने के लिये पत्तियों को जन्म देता है और जनन हेतु पुष्प बनाता है। पुष्प में पराग तथा बीजाणु बनते हैं।
 
== संदर्भ ==
<references/>