"सोयाबीन": अवतरणों में अंतर
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'''सोयाबीन''' एक फसल है। यह दलहन के बजाय तिलहन की फसल मानी जाती है।
== सोयाबीन की खेती ==
=== भूमि का चुनाव एवं तैयारी ===
सोयाबीन की खेती अधिक हल्कीरेतीली व हल्की भूमि को छोड्कर सभी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक की जा सकती है परन्तु पानी के निकास वाली चिकनी दोमट भूमि सोयाबीन के लिए अधिक उपयुक्त होती है। जहां भी खेत में पानी रूकता हो वहां सोयाबीन न लें।
ग्रीष्म कालीन जुताई 3 वर्ष में कम से कम एक बार अवश्य करनी चाहिए। वर्षा प्रारम्भ होने पर 2 या 3 बार बखर तथा पाटा चलाकर खेत को तैयार कर लेना चाहिए। इससे हानि पहॅचाने वाले कीटों की सभी अवस्थाएं नष्ट होगीं। ढेला रहित और भूरभुरी मिटटी वाले खेत सोयाबीन के लिए उत्तम होते होते हैं। खेत में पानी भरने से सोयाबीन की फसल पर प्रितकूल प्रभाव पड्ता है अत: अधिधक उत्पादन के लिलए खेत में जल निकास की व्यवस्था करना आवश्यक होता है। जहां तक संभव हो आखरी बखरनी एवं पाटा समय से करें जिससे अंकुरित [[खरपतवार]] नष्ट हो सके। यथा संभव मेंड् और कूड् रिज एवं फरो बनाकर सोयाबीन बोएं।
=== बीज दर ===
1.1 छोटे दाने वाली किस्में – 70 किलो ग्राम प्रति हेक्टर
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1.3 बडे़ दाने वाली किस्में – 100 किलो ग्राम प्रति हेक्टर
=== बोने का समय ===
जून के अन्तिम सप्ताह में जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का सयम सबसे उपयुक्त है बोने के समय अच्छे अंकुरण हेतु भूमि में 10 सेमी गहराई तक उपयुक्त नमी होना चाहिए। जुलाई के प्रथम सप्ताह के पश्चात बोनी की बीज दर 5- 10 प्रतिशत बढ़ा देनी चाहिए।
=== पौध संख्या ===
4 – 5 लाख पौधे प्रति हेक्टर ‘’ 40 से 60 प्रति वर्ग मीटर ‘’ पौध संख्या उपयुक्त है। जे.एस. 75 – 46 जे. एस. 93 – 05 किस्मों में पौधों की संख्या 6 लाख प्रति हेक्टेयर उपयुक्त है। असीमित बढ़ने वाली किस्मों के लिए 4 लाख एवं सीमित वृद्धि वाली किस्मों के लिए 6 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर होना चाहिए।
=== बोने की विधि ===
सोयाबीन की बोनी कतारों में करना चाहिए। कतारों की दूरी 30 सेमी. ‘’ बोनी किस्मों के लिए ‘’ तथा 45 सेमी. बड़ी किस्मों के लिए उपयुक्त है। 20 कतारों के बाद कूड़ जल निथार तथा नमी संरक्षण के लिए खाली छोड़ देना चाहिए। बीज 2.5 से 3 सेमी. गहराई तक बोयें। बीज एवं खाद को अलग अलग बोना चाहिए जिससे अंकुरण क्षमता प्रभावित न हो।
=== बीजोपचार ===
सोयाबीन के अंकुरण को बीज तथा मृदा जनित रोग प्रभावित करते है। इसकी रोकथाम हेतु बीज को थीरम या केप्टान 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या थायोफेनेट मिथीईल 1 ग्राम मिश्रण प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए अथवा ट्राइकोडरमा 4 ग्राम एवं कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज से उपचारित करके बोयें।
=== कल्चर का उपयोग ===
फफूँदनाशक दवाओं से बीजोपचार के पश्चात बीज को 5 ग्राम राइजोबियम एवं 5 ग्राम पी.एस.बी.कल्चर प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित करें। उपचारित बीज को छाया में रखना चाहिए एवं शीघ्र बोनी करना चाहिए। ध्यान रहें कि फफूँदनाशक दवा एवं कल्चर को एक साथ न मिलाऐं।
=== समन्वित पोषण प्रबंधन ===
अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद (कम्पोस्ट) 5 टन प्रति हेक्टर अंतिम बखरनी के समय खेत में अच्छी तरह मिला देवें तथा बोते समय 20 किलो नत्रजन 60 किलो स्फुर 20 किलो पोटाश एवं 20 किलो गंधक प्रति हेक्टर देवें। यह मात्रा मिटटी परीक्षण के आधर पर घटाई बढ़ाई जा सकती है तथा संभव नाडेप, फास्फो कम्पोस्ट के उपयोग को प्राथमिकता दें। रासायनिक उर्वरकों को कूड़ों में लगभग 5 से 6 से.मी. की गहराई पर डालना चाहिए। गहरी काली मिटटी में जिंक सल्फेट 50 किलो ग्राम प्रति हेक्टर एवं उथली मिटिटयों में 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टर की दर से 5 से 6 फसलें लेने के बाद उपयोग करना चाहिए।
=== खरपतवार प्रबंधन ===
फसल के प्रारम्भिक 30 से 40 दिनों तक खरपतवार नियंत्रण बहुत आवश्यक होता है। बतर आने पर डोरा या कुल्फा चलाकर खरपतवार नियंत्रण करें व दूसरी निंदाई अंकुरण होने के 30 और 45 दिन बाद करें। 15 से 20 दिन की खड़ी फसल में घांस कुल के खरपतवारो को नष्ट करने के लिए क्यूजेलेफोप इथाइल एक लीटर प्रति हेक्टर अथवा घांस कुल और कुछ चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए इमेजेथाफायर 750 मिली. ली. लीटर प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव की अनुशंसा है। नींदानाशक के प्रयोग में बोने के पूर्व फलुक्लोरेलीन 2 लीटर प्रति हेक्टर आखरी बखरनी के पूर्व खेतों में छिड़के और अवा को पेन्डीमेथलीन 3 लीटर प्रति हेक्टर या मेटोलाक्लोर 2 लीटर प्रति हेक्टर की दर से 600 लीटर पानी में घोलकर फलैटफेन या फलेटजेट नोजल की सहायकता से पूरे खेत में छिड़काव करें। तरल खरपतवार नाशियों के मिटटी में पर्याप्त पानी व भुरभुरापन होना चाहिए।
=== सिंचाई ===
खरीफ मौसम की फसल होने के कारण सामान्यत: सोयाबीन को सिंचाई की आवश्यकता नही होती है। फलियों में दाना भरते समय अर्थात सितंबर माह में यदि खेत में नमी पर्याप्त न हो तो आवश्यकतानुसार एक या दो हल्की सिंचाई करना सोयाबीन के विपुल उत्पादन लेने हेतु लाभदायक है।
=== पौध संरक्षण ===
==== कीट ====
सोयाबीन की फसल पर बीज एवं छोटे पौधे को नुकसान पहुंचाने वाला नीलाभृंग (ब्लूबीटल) पत्ते खाने वाली इल्लियां, तने को नुकसान पहुंचाने वाली तने की मक्खी एवं चक्रभृंग (गर्डल बीटल) आदि का प्रकोप होता है एवं कीटों के आक्रमण से 5 से 50 प्रतिशत तक पैदावार में कमी आ जाती है। इन कीटों के नियंत्रण के उपाय निम्नलिखित है:
===== कृषिगत नियंत्रण =====
खेत की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें। मानसून की वर्षा के पूर्व बोनी नहीं करे। मानसून आगमन के पश्चात बोनी शीघ्रता से पूरी करें। खेत नींदा रहित रखें। सोयाबीन के साथ ज्वार अथवा मक्का की अंतरवर्तीय खेती करें। खेतों को फसल अवशेषों से मुक्त रखें तथा मेढ़ों की सफाई रखें।
===== रासायनिक नियंत्रण =====
बुआई के समय थयोमिथोक्जाम 70 डब्लू एस. 3 ग्राम दवा प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित करने से प्रारम्भिक कीटों का नियंत्रण होता है अथवा अंकुरण के प्रारम्भ होते ही नीला भृंग कीट नियंत्रण के लिए क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत या मिथाइल पेराथियान (फालीडाल 2 प्रतिशत या धानुडाल 2 प्रतिशत ) 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टर की दर से भुरकाव करना चाहिए। कई प्रकार की इल्लियां पत्ती छोटी फलियों और फलों को खाकर नष्ट कर देती है इन कीटों के नियंत्रण के लिए घुलनशील दवाओं की निम्नलिखित मात्रा 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। हरी इल्ली की एक प्रजाति जिसका सिर पतला एवं पिछला भाग चौड़ा होता है सोयाबीन के फूलों और फलियों को खा जाती है जिससे पौधे फली विहीन हो जाते हैं। फसल बांझ होने जैसी लगती है। चूकि फसल पर तना मक्खी, चक्रभृंग, माहो हरी इल्ली लगभग एक साथ आक्रमण करते हैं अत: प्रथम छिड़काव 25 से 30 दिन पर एवं दूसरा छिड़काव 40-45 दिन की फसल पर आवश्यक करना चाहिए।
===== जैविक नियंत्रण =====
कीटों के आरम्भिक अवस्था में जैविक कट नियंत्रण हेतु बी.टी एवं ब्यूवेरीया बैसियाना आधरित जैविक कीटनाशक 1 किलोग्राम या 1 लीटर प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के 35-40 दिन तथा 50-55 दिन बाद छिड़काव करें। एन.पी.वी. का 250 एल.ई समतुल्य का 500 लीटर पानी में घोलकर बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। रासायनिक कीटनाशकों की जगह जैविक कीटनाशकों को अदला बदली कर डालना लाभदायक होता है।
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1.4. तने की मक्खी के प्रकोप के समय छिड़काव शीघ्र करें
==== रोग ====
1 . फसल बोने के बाद से ही फसल निगरानी करें। यदि संभव हो तो लाइट ट्रेप तथा फेरोमेन टयूब का उपयोग करें।
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अधिकांश पत्तियों के सूख कर झड़ जाने पर और 10 प्रतिशत फलियों के सूख कर भूरी हो जाने पर फसल की कटाई कर लेना चाहिए। पंजाब 1 पकने के 4 – 5 दिन बाद, जे.एस. 335 , जे.एस. 76 – 205 एवं जे.एस. 72 – 44 जे.एस. 75 – 46 आदि सूखने के लगभग 10 दिन बाद चटकने लगती हैं। कटाई के बाद गडढ़ो को 2 – 3 दिन तक सुखाना चाहिए जब कटी फसल अच्छी तरह सूख जाये तो गहराई कर दोनों को अलग कर देना चाहिए। फसल गहाई थ्रेसर, ट्रेक्टर, बेलों तथा हाथ द्वारा लकड़ी से पीटकर करना चाहिए। जहां तक संभव हो बीज के लिए गहराई लकड़ी से पीट कर करना चाहिए, जिससे अंकुरण प्रभावित न हो।
=== अन्तर्वर्तीय फसल पद्धति ===
सोयाबीन के साथ अन्तर्वर्तीय फसलों के रूप में निम्नानुसार फसलों की खेती अवश्य करें
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अरहर एवं सोयाबीन में कतारों की दूरी 30 से.मी. रखें।
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://opaals.iitk.ac.in/deal/embed.jsp?url=crops-type.jsp&url2=11&url3=%E0%A4%A6%E0%A4%B2%E0%A4%B9%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%AB%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%82&url4=%E0%A4%AB%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%82&url5=%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%A8&url6=HI सोयाबीन की खेती]
* [http://thatshindi.oneindia.in/news/bizarre/2008/09/soybeans-benefit-awa.html सोयाबीन रोगियों के लिए फ़ायदेमंद]
* [http://hindi.webdunia.com/news/business/agriculture/0712/11/1071211050_1.htm सोयाबीन के स्वास्थ्य लाभ एवं घरेलू उत्पाद ] (वेबदुनिया)
* [http://www.hort.purdue.edu/newcrop/nexus/glycine_max_nex.html New Crop Resource Online Program] - Large collection of Soybean information
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